अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे जब सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने एक कार्यक्रम के दौरान पंजाब में खालिस्तान लहर के दोबारा उभरने के संकेत दिए थे। उनका यह बयान बेवजह नहीं था क्योंकि अगर हम पंजाब में अभी कुछ ही महीनों में घटित होने वाली घटनाओं पर नजर डालेंगें तो समझ में आने लगेगा कि । पंजाब में सब कुछ ठीक नहीं है। बरसों पहले जिस आग को बुझा दिया गया था उसकी राख में फिर से शायद किसी चिंगारी को हवा देने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। जी हाँ पंजाब की खुशहाली और भारत की अखंडता आज एक बार फिर कुछ लोगों की आँखों में खटकने लगी है। 1931 में पहली बार अंग्रेजों ने सिक्खों को अपनी हिंदुओं से अलग पहचान बनाने के लिए उकसाया था। 1940 में पहली बार वीर सिंह भने ने खालिस्तानः शब्द को गढ़ा था। इस सब के बावजूद 1947 में भी ये लोग अपने अलगाववादी इरादों में कामयाब नहीं हो पाए थे। लेकिन 80 के दशक में पंजाब अलगाववाद की आग में ऐसा झुलसा कि देश लहूलुहान हो गया। आज एक बार फिर उसी आतंक के पुनः जीवित होने की आहट सुनाई दे रही है। क्योंकि हाल ही में कश्मीर के कुख्यात आतंकी जाकिर मूसा समेत जैश ए महोम्मद के 6 -7 आतंकवादियों के पंजाब में दाखिल होकर छुपे होने की खुफिया जानकारी मिली थी। इसके कुछ ही दिन बाद 2016 के पठानकोट हमले की तर्ज पर चार संदिग्ध एक बार फिर पठानकोठ के पास माधोपुर से एक इनोवा कार लूट लेते हैं। इसके अलावा पंजाब पुलिस के हाथ भीड़ भाड़ वाले स्थानों पर हमले और कुछ खास नेताओं की टारगेट किलिंग की तैयारी कर रहे खालिस्तान गदर फोर्स के आतंकी शबनम दीप सिंह लगता है जो कि पाकिस्तान खुफिया अधिकारी जावेद वजीर खान के संपर्क में भी था। इतना ही नहीं पजाब पुलिस की काउंटर इनटेलीजेंस विंग भी आईएसआई के एक एजेंट इंद्रजीत सिंह को मोहाली से गिरफ्तार करती । अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे जब पंजाब और जम्मू कश्मीर पुलिस की संयुक्त कार्यवाही में जालंधर के एक कॉलेज के हॉस्टल से तीन कश्मीरी छात्रों को ए के 47 और विस्फोटक सामग्री के साथ गिरफ्तार किया जाता है। इन में से एक यूसुफ रफीक भट्ट, ज़ाकिर मूसा का भतीजा है। जी हाँ वही मुसा जो कि भारतीय सुरक्षा बलों का मोस्ट वांटेड है और भारतीय सेना ने उस पर 12 लाख का ईनाम घोषित किया है और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस घटना के बाद पंजाब के अन्य कई कॉलेजों से कश्मीरी छात्र भूमिगत हो जाते हैं। अब अमृतसर में निरंकारी सत्संग पर आतंकवादी हमला होता है। जिसमें तीन लोगों की मौत जाती है और 20 घायल। अगर आपको लगता है कि ये कड़ियाँ आपस में नहीं मिल रहीं तो कुछ और जानकारियाँ भी हैं। इसी साल 12 अगस्त को लंदन में एक खालिस्तान समर्थक रैली का आयोजन होता है। और सबसे महत्वपर्ण बात कि, इन घटनाओं के समानांतर सिख फॉर जस्टिस नाम का एक अलगाववादी संगठन रेफरेंडम 2020 यानी खालिस्तान के समर्थन में जनमत संग्रह कराने की मांग जोर शोर से उठाने लगता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इसे आई एस आई का समर्थन प्राप्त है, जो इसे 6 जन 2020 को लॉच करने की योजना बना रहा है। जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यह तारीख कोई संयोग नहीं, ऑपरेशन ब्लू स्टार की 30 वीं बरसी है। इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि कनाडा अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों में रहने वाले सिखों को एकजुट करके पाकिस्तान अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की कोशिशों में लगा है। इसी साल के आरंभ में जब कनाडा के प्रधानमंत्री टूडो भारत आए थे तो पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उन्हें कनाडा में खालिस्तान आंदोलन फैलाने वाले लोगों के नाम की सूची सौंपी थी। दरअसल घाटी में आतंकी संगठनों पर सेना के बढ़ते दबाव के कारण वे अब पंजाब में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब के कॉलेजों से कश्मीरी युवकों का आधुनिक हथियारों के साथ पकड़ा जाना इस बात का सबूत हैं और अब आतंकवादी घटना को अंजाम देने के लिए निरंकारी भवन जैसे स्थान को चुनना इत्तेफाक नहीं एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। इस बहाने ये लोग सिक्ख समदाय और निरंकारी मिशन के बीच मतभेद का फायदा उठाकर पंजाब को एक बार फिर आतंकवाद की आग में झुलसाने की कोशिश कर रहे हैं। असल में घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर आतंकी अब पंजाब में पनाह तलाश रहे हैं। घाटी में उनकी दयनीय स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो कल तक कश्मीर की आजादी की दुहाई देकर आतंक फैलाने के लिए,सैनिकों का अपहरण और हत्या करते थे आज कश्मीर के ही बच्चों का अपहरण और हत्याएं कर रहे हैं। (मुखबिरी के शक में)। यह स्थिति भारतीय सेना के समक्ष उनके द्वारा अपनी हार को स्वीकार करने और उससे उपजी निराशा को व्यक्त करने जैसा है। कश्मीर का युवा अब बंदूक छोड़ कर अपने हाथों में लैपटॉप लेकर इन्हें अपना जवाब दे चुका है अब बारी पंजाब के लोगों की है। सरकार और सुरक्षा एजेंसियाँ अपना काम कर रही हैं लेकिन जवाब पंजाब के लोगों को देना है। और ये जवाब लड़कर नहीं, शांत रह कर देना है। अपने खेतों को हरा भरा रख कर देना है। उनकी हर साजिश को अपनी समझदारी से नाकाम कर देना है। जो पंजाब आतंक की गलियों को, खून से सने खेतों को, हथियारों के जखीरों को, बारूद की चिंगारियों को, घर घर जलती लाशों को, टूटती चूड़ियों की आवाजों को, उजड़ती मांगों को, अनाथ होते बच्चों के आंसूओं को बहुत पीछे छोड़ आया है, निस्संदेह आज उसे भूला नहीं है। आज पंजाब भले ही खुशहाल है। लेकिन जो सिसकियाँ खिलखिलाहट में बदल चुकी है उन्हें वो भूला नहीं है। और भूलना भी नहीं चाहिए। तभी शायद वो उसकी आह्ट को बहुत दूर से ही पहचान चुका है। इसलिए आतंकवाद को जवाब देश का आवाम देगा, पंजाब का बच्चा बच्चा देगा।
क्या यह दबी चिंगारी को हवा देने की कोशिश है?