मौत के करीब ले जा रही है जहरीली हवा सामने आई भयानक तस्वीर

नई दिल्ली। वातावरण में बढ़ता प्रदूषण लोगों को हर वक्त मौत के करीब ले जा रहा है। यह हम नहीं कह रहे हैं। बल्कि इसका जीता जागता उदाहरण आप खुद अपनी आंखों से देखना चाहते हैं तो गंगाराम अस्पताल आइए। जहां प्रदूषण के घातक दुष्प्रभाव से हेपा फिल्टर से तैयार कृत्रिम फेफड़ा 48 घंटे (दो दिन) में ही सफेद से काला पड़ गया। प्रदूषण है 10 लाख लोगों की मौत का कारण डॉक्टर कहते हैं कि स्वास्थ्य के लिए यह प्रदूषण का घातक संकेत है। लोगों के फेफड़े भी इस तरह से काले होते जा रहे हैं। पर्यावरण के रखरखाव के लिए सरकार व लोग यदि अब भी सचेत नहीं हुए और कारगर कदम नहीं उठाए गए तो अस्थमा, ब्रांकाइटिस, निमोनिया, फेफड़े का कैसर, सांस की अन्य बीमारियां व हार्ट अटैक की बीमारी महामारी बनकर सामने आएंगी। इस वजह से आगामी कुछ वर्षों में प्री-मैच्योर मौत के मामले और बढ़ सकते हैं। वैसे भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने आगाह किया है कि भारत में करीब 10 लाख लोगों की असमय मौत का कारण प्रदूषण है। जानलेवा बन रहा है प्रदूषण डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016 में भारत में 1.10 लाख बच्चों की मौत प्रदूषण से हुई, जिसमें पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या 60,987 थी। इससे अंदाजा लाया जा सकता है कि प्रदूषण किस तरह जानलेवा बन रहा है। अस्पताल परिसर में लगाया कृत्रिम फेफड़ा यही साबित करने के लिए लंग केयर फाउंडेशन ने एक गैर सरकारी संगठन के साथ मिलकर गंगाराम अस्पताल में तीन नवंबर हेपा फिल्टर से तैयार कृत्रिम फेफड़ा अस्पताल परिसर में लगाया है। जो तीन नवंबर के दोपहर 12 बजे से लेकर पांच नवंबर को दोपहर 12 बजे तक उसका रंग काफी बदल चुका है। और काला दिखने लगा है। अस्पताल के थोरेसिक सर्जन व लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक डॉ. अरविंद कुमार ने कहा कि हमने जो सोचा था उससे कहीं ज्यादा भयानक तस्वीर सामने आई। उम्मीद थी कि इस हेपा फिल्टर को काला होने में आठ से 10 दिन लगेंगे। पर यह दो दिन में ही ऐसा हो गया। दिवाली की अगली सुबह तक तो यह बिल्कुल काला हो जाएगा। पिछले साल बेंगलुरु में इसे लगाया गया था, वहां 10-11 दिन में यह काला हुआ था। दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा में इतने भारी प्रदूषक तत्व हैं, जो फेफड़े को काला बना रहे हैं पर उसे झांक कर देखने का कोई रास्ता नहीं है। क्या होता है हेपा फिल्टर यह फाइबर का बना होता है, जिसमें बहुत सूक्ष्म छिद्र होते हैं। जो धूल कण और पार्टिकुलेट मैटर को रोक लेते हैं। ऑपरेशन थियेटर में जाने वाली हवा को साफ करने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। कुछ इसी तरह का काम फेफड़ा भी करता है।