मियां की जूती मियां के सिर

चुनावी सफलता के लिहाज से अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति की कमान संभालने के लिये किस कदर छटपटा रही है यह सर्वविदित ही है। भाजपा को शिकस्त देने के लिये उसने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है और उसकी कोशिश है कि भले ही इस बार के लोकसभा चुनाव में उसे अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा हासिल ना हो सके लेकिन कम से कम सत्ता की चाबी उसके हाथों में अवश्य आ जाए। यानि कांग्रेस ने जो लक्ष्य तय किया है उसके मुताबिक उसकी कोशिश रहेगी कि इस बार अगर उसे बहुमत ना मिले तो किसी अन्य दल को भी ना मिल सके और संसद में सबसे बड़े दल के तौर पर वह ही सामने आए। इसके लिये तमाम तरह की कूटनीतियां भी अपनाई जा रही हैं और हर तरह की रणनीतियों पर भी अमल किया जा रहा है। इसी क्रम में सूबाई स्तर पर तमाम गैर-भाजपाई ताकतों को अपने साथ जोड़ने की कोशिशों के साथ ही उसने भाजपा के बागियों और असंतुष्ट बताए जाने वाले नेताओं पर भी अपनी नजरें गड़ा दी हैं। कांग्रेस की ओर से मिल रहे संकेतों से यह साफ तौर पर पता चल रहा है कि पार्टी ने सैद्धांतिक तौर पर यह तय कर लिया है कि अगर भाजपा का कोई मौजूदा सांसद, विधायक या केन्द्र व प्रदेश का शीर्ष पदाधिकारी अपनी पार्टी छोड़ने की मंशा का इजहार करता है तो उसके लिये 24 अकबर रोड का दरवाजा पूरी तरह खुला रखा जाएगा। नतीजन अपने बागी तेवरों से भाजपा के लिये सिरदर्दी का सबब बन चुके नेताओं को अब कांग्रेस में नया ठिकाना मिलने की उम्मीद काफी प्रबल दिख रही है। खास तौर से कीर्ति आजाद और शत्रुघ्न सिन्हा सरीखे जिन सांसदों को इस बार भाजपा से लोकसभा चुनाव का टिकट मिलने की संभावना बेहद कम है उनके लिये कांग्रेस ने अपने दरवाजे अभी से खोल दिये हैं। बताया जाता है कि कीर्ति और शत्रुघ्न के साथ कांग्रेस के नेताओं की बातचीत शुरू हो चुकी है और माना जा रहा है कि भाजपा से टूटकर कांग्रेस के साथ जुड़ने वाले नेताओं की फेहरिश्त काफी बड़ी हो सकती है क्योंकि भाजपा ने अभी से यह संकेत देना शुरू कर दिया है कि इस बार लोकसभा चुनाव में कम से कम 40 फीसदी सांसदों के टिकट अवश्य काटे जाएंगे। ऐसे में कांग्रेस की ओर से इन नेताओं के लिये अभी से यह प्रस्ताव दिया जा रहा है कि अगर वे चाहें तो उसका हाथ थाम कर लोकसभा में अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर सकते हैं। इसी संकेत को मजबूती देने की कोशिशों के तहत कांग्रेस की मंशा है कि कीर्ति सरीखे नेताओं को चुनावी सरगर्मी की शुरूआत में ही तोड़ लिया जाए ताकि उनकी देखादेखी भाजपा के और भी असंतुष्ट नेता खुल कर सामने आने के लिये प्रोत्साहित हो सकें। बताया जाता है कि कांग्रेस ने कीर्ति और शत्रुघ्न को उनकी परंपरागत सीट दरभंगा और पटना साहिब के बजाय दिल्ली से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया है लेकिन फिलहाल ये दोनों ही नेता अपनी परंपरागत सीट पर ही डटे रहने कोशिश कर रहे हैं। हालांकि कांग्रेस की ओर से दिया जा रहा प्रस्ताव बेहद लुभावना भी है और इन दोनों को दिल्ली में अग्रिम मोर्चे पर तैनात करने का भरोसा भी दिलाया जा रहा है ऐसे में यह कहना कठिन है कि ये दोनों कब तक अपनी जिद पर अड़े रह पाते हैं। बीते दिनों कांग्रेस के शीर्ष संचालक परिवार के सदस्यों के अलावा पार्टी की दिल्ली इकाई के आला नेताओं के साथ भी कीर्ति की बातचीत होने की बातें सियासी गलियारों में कानाफूसी की शक्ल में तैर रही हैं। बताया जा रहा है कि कीर्ति को दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया गया है। वैसे भी कीर्ति पूर्व में गोल मार्केट विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी रह चुके हैं और कीर्ति के पिता व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद कांग्रेस के बड़े नेताओं में गिने जाते थे। साथ ही कीर्ति की पत्नी पूनम झा पहले ही कांग्रेस का दामन थाम चुकी हैं। ऐसे में कीर्ति का कांग्रेस के साथ जुड़ना उनकी घर वापसी के तौर पर ही प्रचारित किया जाएगा। बताया जाता है कि दिल्ली के 40 फीसदी पूर्वांचली मतदाताओं को रिझाने के लिये जिस तरह से भाजपा ने मनोज तिवारी के हाथों में दिल्ली प्रदेश की कमान सौंपी हुई है उसी तर्ज पर कांग्रेस अब कीर्ति को आगे करके दिल्ली का चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। दूसरी ओर शत्रुघ्न सिन्हा को भी कांग्रेस दिल्ली की राजनीति में ही आगे करने की कोशिश कर रही है और प्राप्त जानकारी के मुताबिक कांग्रेस की पुरजोर कोशिश है कि ये दोनों नेता उसके साथ जुड़ कर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हो जाएं। इसी प्रकार अन्य सूबों के उन नेताओं पर भी कांग्रेस की नजरें टिकी हुई हैं जो भाजपा के मौजूदा नेतृत्व से असंतुष्ट बताये जाते हैं और जिन्हें अब भाजपा में अपना हित सुरक्षित महसूस नहीं हो रहा है। यानि कांग्रेस ने भाजपा के बागियों को ही हथियार बनाकर भगवा खेमे पर प्रहार करने की रणनीति बना ली है और उस पर अमल भी आरंभ कर दिया है। वैसे यह सवाल जरूर उठता है कि जो भाजपा के सगे साबित नहीं हुए वे कांगे्रस के लिये किस हद तक लाभदायक साबित होंगे। लेकिन कांग्रेस के लिये इस सवाल पा विचार करने की फिलहाल ना तो फुर्सत है और ना ही जरूरत। उसका पूरा ध्यान तात्कालिक सफलता हासिल करने पर टिका हुआ है और इसके लिये वह भाजपा के किसी भी नेता को अपने साथ जोड़ने के लिये पूरी तरह तैयार है। निश्चित ही कांग्रेस की यह रणनीति भाजपा के लिये चिंताजनक हो सकती है क्योंकि मोदी सरकार के कार्यकाल में पनपी एंटी-इंकम्बेंसी से निपटने के लिये उसने बड़ी तादाद में मौजूदा सांसदों का टिकट काटने की जो मंशा दिखाई है उस पर अमल करने के नतीजे में भाजपा के असंतुष्टों की फौज कांग्रेस का हाथ मजबूत करने के लिये आगे आ सकती है। ऐसे में अब भाजपा को अपने प्रत्याशी का चयन करने में काफी सावधानी बरतनी होगी ताकि उसे ‘मियां की जूती मियां के सिर’ वाली कहावत का शिकार ना होना पड़े।