सीओपीडी दिवस आज, यशोदा सुपर स्पेशलिटी होस्पिटल में आयोजित होगा हेल्थ टॉक




गाजियाबाद। पूरे विश्व में 21 नवंबर को मनाये जाने वाले विश्व सीओपीडी दिवस दीर्घकालीन दमा या काला दमा के अवसर पर यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कौशाम्बी, गाज़ियाबाद में मंगलवार को आयोजित एक प्रेस वार्ता आयोजित की गई। जिसमें वरिष्ठ श्वांस एवं फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ के के पांडेय, डॉ अर्जुन खन्ना, डॉ अंकित सिन्हा ने बताया कि सर्दी के मौसम में थोड़ी-बहुत खांसी होना आम बात है, लेकिन दवा लेने के बावजूद लंबे समय तक इसका ठीक न होना चिंता का विषय है। बढ़ते हुए प्रदूषण की वजह से ऐसी स्थिति में व्यक्ति को सावधान हो जाना चाहिए। क्योंकि यह श्वसन-तंत्र से संबंधित बीमारी सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) का भी लक्षण हो सकता है।डॉ के के पांडेय ने आंकड़ों की चर्चा करते हुए कहा कि 2020 तक सीओपीडी विश्व में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण होगा। उन्होंने बताया कि आपको जानकर हैरानी होगी कि सन् 2000 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सीओपीडी मौत का छठवां सबसे बड़ा कारण था जबकि 2020 तक ये दुनियाभर में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण होगा।यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर ने ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की अपील की। उन्होंने बताया कि पेड़ पौधे हवा में मौजूद कार्बन एवं विषैले पदार्थों को खींच कर हवा को शुद्ध करते हैं। इसलिए हमें इसे एक जान आंदोलन के रूप में ले लेना चाहिए। डॉ पी एन अरोड़ा एवं श्रीमती उपासना अरोड़ा ने अभी तक गाज़ियाबाद में 20,000 से ज्यादा पेड़ लगवा दिए हैं। इस प्रेस वार्ता में यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉ सुनील डागर, डॉ राहुल शुक्ल, डॉ अनुज अग्रवाल, डॉ विक्रम ग्रोवर एवं गौरव पांडेय मौजूद रहे।प्रेस वार्ता के दौरान डॉ अंकित सिन्हा ने बताया कि सीओपीडी  वास्तव में हमारे फेफडों और श्वसन-तंत्र से संबंधित समस्या है। जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस भी कहा जाता है। हमारे शरीर में फेफड़े फिल्टर की तरह काम करते हैं। दरअसल इसमें छोटे-छोटे वायु-तंत्र होते हैं, जिन्हें एसिनस कहा जाता है। जब हम सांस लेते हैं तो फेफड़े का यही हिस्सा शुद्ध ऑक्सीजन  को छान कर उसे हार्ट तक पहुंचाता है। फिर वहीं से ऑक्सीजन युक्त रक्त का प्रवाह पूरे शरीर में होता है। इसके बाद बची हुई हवा को फेफड़े दोबारा फिल्टर करके उसमें मौजूद नुकसानदेह तत्वों को सांस छोड़ने की प्रक्रिया के माध्यम से बाहर निकालते हैं। जब फेफड़े के इस कार्य में बाधा पहुंचती है तो इससे सीओपीडी की समस्या पैदा होती है।डॉ अंकित सिन्हा ने कहा कि हमें यदि प्रदूषण से बचने के लिए मास्क लेना ही है तो एन 95 क्वालिटी का मास्क लेना चाहिए और एक मास्क को 5 दिन से ज्यादा उपयोग नहीं करना चाहिए। 5 दिन बाद नया मास्क बदल लेना चाहिए। डॉ सिन्हा ने घरों में लगाए जाने वाले एयर प्यूरीफायर के बारे में बताते हुए कहा कि सस्ती क्वालिटी व कम दाम वाले एयर प्यूरीफायर कोई लाभ नहीं पहुंचाते, बल्कि उनमें से ओज़ोन गैस का खतरा और आयनाइजेशन की वजह से नुक्सान पहुंचने का भी ख़तरा बना रहता है। एयर प्यूरीफायर में हेपा फ़िल्टर होना चाहिए और उसमें एक इंडिकेटर भी होना चाहिए जो ये बताये कि उस एयर प्यूरीफायर ने एयर क्वालिटी इंडेक्स को कितना ठीक किया है।डॉ अर्जुन खन्ना ने कहा कि प्रदूषण की वजह से या ज्यादा  स्मोकिंग करने वाले लोगों के फेफड़ों और सांस की नलियों  में नुकसानदेह केमिकल्स और गैस जमा हो जाते हैं। इससे सांस की नलिकाओं की भीतरी दीवारों में सूजन पैदा होती है। आमतौर पर सांस की ये नलिकाएं भीतर से हलकी गीली होती हैं, लेकिन धुएं, धूल या हवा में मौजूद किसी अन्य प्रदूषण की वजह से श्वसन नलिकाओं के भीतर मौजृूद यह तरल पदार्थ सूखकर गाढ़ा और चिपचिपा बना जाता है। कई बार यह म्यूकस  सांस की नलियों की अंदरूनी दीवारों में चिपक जाता है। इससे व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है। बदलते मौसम में यह समस्या ज्यादा नजर आती है।चालीस वर्ष की उम्र के बाद लोगों में इस बीमारी की आशंका बढ जाती है क्योंकि उम्र बढने के साथ व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ने लगती है। रोग अवधि ओपीडी लम्बे समय तक बने रहने वाला (क्रोनिक) रोग है। लक्षणों की गंभीरता के आधार पर यह कुछ सप्ताहों से लेकर कई महीनों तक का हो सकता है। वर्तमान में सीओपीडी का कोई उपचार नहीं है। इस स्थिति का नियंत्रण औषधियों या जीवन शैली में परिवर्तन द्वारा किया जाना चाहिए।डॉ अर्जन खन्ना ने काला दमा के मरीजों में जाँच और परीक्षण के बारे रोग का निर्धारण शारीरिक परीक्षण और सुझाई गई अन्य जाँचों द्वारा होता है। इन जाँचों में हैं:- स्पाइरोमेट्री, रक्त या बलगम का परीक्षण, एक्स-रे और सीटी स्केन्स,आर्टीरीअल ब्लड गैस एनालिसिस और ओक्सिमेट्री। डॉ खन्ना ने फेफड़ूँ के रूगो से कैसे संभव है बचाव, इस विषय पर बोलते हुए कहा कि नियमित चेकअप कराएं और सभी दवाएं सही समय पर लें। सर्दियों में धूप निकलने के बाद मॉर्निग वॉक के लिए जाएं। धूम्रपान कभी न करें। ये सीओपीडी और अस्थमा दोनों का मुख्य कारण है।आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, दही और फ्रिज में रखी चीजों से बचने की कोशिश करें। सर्दियों में गुनगुना पानी पीएं। दिन के वक्त खिड़कियां खोलकर रखें, ताकि कमरे में ताजी हवा आ सके। तकियों की मदद से मरीज का सिरहाना थोड़ा ऊंचा रखें। इससे उसे सांस लेने में आसानी होगी। नियमित एक्सरसाइज और संतुलित खानपान से बढ़ते वजन को नियंत्रित रखें। मोटापे की वजह से सांस की नलियां अवरुद्ध  हो जाती हैं। इससे व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है। ऐसे में सीओपीडी के मरीजों की परेशानी और बढ जाती है।अगर इस समस्या के साथ व्यक्ति को डायबिटीज हो तो संयमित खानपान और दवाओं के सेवन से उसे शुगर का स्तर नियंत्रित रखना चाहिए। ज्यादा गंभीर स्थिति होने पर डॉक्टर की सलाह पर घर पर ही नेबुलाइजर, पल्स ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन सिलिंडर या कंसंट्रेटर की व्यवस्था रखें। अगर पल्स ऑक्सीमीटर में ऑक्सीजन का सैचुरेशन 88 प्रतिशत से कम हो तो मरीज को ऑक्सीजन देने की जरूरत पडती है। परिवार का कोई भी सदस्य मरीज को आसानी से ऑक्सीजन दे सकता है।अगर इन बातों का ध्यान रखा जाए तो सीओपीडी से पीड़ित व्यक्ति भी सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है।