विश्वप्रसिद्ध सोनपुर मेले का आगाज, यहां से कभी अंग्रेजों ने खरीदे थे लाखों घोड़े

पटना। बिहार के विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला का उद्घाटन बुधवार की शाम उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने किया। इस मेले का इतिहास सदियों पुराना है, लेकिन अंग्रेजों ने इसे बड़ा रूप दिया था।प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों ने यहां से डेढ़ लाख से अधिक उन्नत नस्ल के घोड़े खरीदे थे। गंगा और गंडक के पावन तट पर ऐतिहासिक सोनपुर मेला सज गया है। सजे- धजे घोड़े आकर्षिक कर रहे हैं। थिएटर के गीत दूर से ही बुला रहे हैं। चाट-पकौड़े की सुगंध फैल रही है। रंग-बिरंगी दुकानें भी सज गईं हैं। लोगों के आने का सिलसिला भी तेज हो गया है। बुधवार की शाम उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने मेले का विधिवत उद्घाटन किया। हाजापुर से गंडक पुल पार करते ही ग्रज-ग्राह की प्रतिमा सोनपुर क्षेत्र में होने का अहसास दिलाती है। थोड़ी दिलचस्पी दिखाने पर भगवान विष्णु के प्रकट होने की कहानी बच्चे-बच्चे तक सुना देंगे। इसके बाद हरिहर नाथ मंदिर और एशिया के सबसे बड़े पशु मेले की जानकारी दी जाएगी। बाबा हरिहर नाथ पर पुस्तक लिखने वाले ग्रामीण उदय प्रताप सिंह के शब्दों में इस क्षेत्र का बखान पुराण, श्रीमद्भागवत सहित कई धार्मिक पुस्तकों में है। सप्त ऋषियों में दो यहीं गंगा-गंडक के तट पर तपस्या किया करते थे। बाबा हरिहरनाथ मंदिर के सहायक पुजारी सदानंद पांडेय बताते हैं कि पद्म पुराण में हरिहर क्षेत्र का बखान है। पुराण में हरिहर नाथ, कुरुक्षेत्र, बाराह क्षेत्र और मुक्तिनाथ की चर्चा है। इसमें बाराह और मुक्तिनाथ नेपाल में हैं। सदानंद पांडेय के अनुसार हरिहर नाथ मंदिर की स्थापना शैव और वैष्णव संप्रदाय के बीच सद्भाव के लिए किया था। मंदिर के मुख्य पुजारी सुनील चंद्र शास्त्री का कहना है कि कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक गंगा-गंडक संगम में स्नान और बाबा हरिहरनाथ पर जलाभिषेक का विशेष महत्व है। आज भी नेपाल, असम, उत्तराखंड आदि से हजारों की संख्या में संत आते हैं। पहले सात दिनों का हरिहर नाथ मेला लगता था। इसमें धार्मिक और व्यावसायिक लाभ के साथ-साथ । मनोरंजन आदि की व्यवस्था रहती थी। बाबा हरिहर नाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग विश्व में अनूठा है। यह इकलौता शिवलिंग हैं जिसके आधे भाग में शिव और शेष में विष्ण की आकृति है। मान्यता है कि इसकी स्थापना 14,000 वर्ष पहले भगवान ब्रह्मा ने शैव और वैष्णव संप्रदाय को एक-दूसरे के  नजदीक लाने के लिए की थी। मंदिर के मुख्य पुजारी सुशील चंद्र शास्त्री के अनुसार इस क्षेत्र में शैव, वैष्णव और शक्ति संप्रदाय के लोग एक साथ कार्तिक पूर्णिमा का स्नान और जलाभिषेक करते हैं। देश-विदेश में ऐसे किसी पैराणिक शिवलिंग का प्रमाण नहीं है, जिस पर जलाभिषेक और स्तुति से महादेव और भगवान विष्णु दोनों प्रसन्न होते है। गंगा-गड़क के तट पर स्नान और धुनी का महत्व कई पुराणों और श्रीमद्भागवत में बताया गया है।