गाजियाबाद। अवैध निर्माण गिराने गई जीडीए की टीम पर पथराव होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन प्रवर्तन ज़ोन आठ स्थित निठौरा रोड के पास बसी अवैध कॉलोनियों के ध्वस्तीकरण के दौरान हुए हमले में एक सुपरवाइज़र सहित दो लोगों के चोटिल होने और शेष लोगों के पहले भागने और फिर पुलिस के मोर्चा संभालने के बाद वापस आने से जीडीए की तैयारियों पर सवालिया निशान लग चुके हैं? क्योंकि यह न तो पहली घटना है और न ही अंतिम समझी जा सकती है। खबर है कि निठौरा रोड पहुंची पुलिस को हालात संभालने के लिए हवाई फायरिंग भी करनी पड़ी, चिंता की बात है।अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है जब गत 11 जुलाई को भी अवैध रूप से बसी बालाजी एंक्लेव में जीडीए की टीम पर एक बिल्डर के गुर्गों ने हमला किया था जिसमें एक जेई घायल हो गए थे। इसलिए सवाल फिर वही कि किसी भी आक्रामक कार्रवाई से पहले जीडीए कर्मियों को महफूज रखने के एहतियाती उपाय क्यों नहीं किए जाते, और यदि किए भी जाते हैं तो किस स्तर पर चूक हो जाती है जिससे कोई न कोई जीडीए कर्मी ऐसी कार्रवाई के दौरान घायल हो जाता है।क्योंकि इससे भी पहले 20 दिसंबर 2017 को डूब क्षेत्र को खाली करवाने गई जीडीए टीम पर भी हमला हुआ था, बावजूद इसके न तो जीडीए प्रवर्तन दस्ता चेता और न हीं उसके अधिकारीगण। वो भी तब जबकि इससे एक माह पहले ही 10 नवंबर 2017 को मोदी नगर एरिया में एक बैंक्विट हॉल की सीलिंग के दौरान लोगों का काफी विरोध झेलना पड़ा था।यही नहीं, 12 जुलाई 2017 को भी संजय नगर में एक मिठाई की दुकान की सीलिंग के दौरान भी जमकर हंगामा हुआ था। इससे पूर्व भी 19 सितंबर 2013 को कौशाम्बी में एक आश्रम को तोड़ने गई जीडीए की टीम पर पथराव के साथ डंडे से भी हमला किया गया था। सवाल तो यह भी है कि ऐसी अवैध कॉलोनियों को पहले बसवाने और फिर उसे उजड़वाने के पीछे कोई संगठित रैकेट तो काम नहीं कर रहा स्थानीय पुलिस से सांठगांठ करके, जैसी की चर्चा आम है! यदि ऐसा है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।सवाल है कि आखिरकार अपने ही गरीब लोगों को पहले बसाने और फिर उजाड़ने का खेल कबतक चलेगा! आखिरकार कुकुरमुत्ते की तरह उग आईं अवैध कॉलोनियों के कालोनाइजर के गिरेबान तक सक्षम प्रशासन के हाथ क्यों नहीं पहुंच रहे,जबकि यही हाथ गरीबों को आसानी से मसलते प्रतीत हो रहे हैं। आखिर में यह
सिलसिला कब थमेगा, यक्ष प्रश्न यही है।
सिलसिला कब थमेगा, यक्ष प्रश्न यही है।