पटना। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म भले ही सिवान के जीरादेई में हुआ, मगर पटना से भी उनका गहरा लगाव रहा। राष्ट्रपति बनने से पहले और बाद में, दोनों ही कालखंड में उनके जीवन का लंबा समय कर्जी के नजदीक स्थित बिहार विद्यापीठ में गुजरा। इसी में 28 फरवरी 1963 की रात उनका निधन हो गया। अतीत की दास्तां को समेटे खड़ी है। एक कुटिया के कण-कण में उनकी प्रसाद स्मतियां जीवंत हैं। बिहार विद्यापीठ में विद्यापीठ राजेंद्र स्मति संग्रहालय में आज भी उनकी यादें संजो कर रखी हुई हैं। यहां राजेंद्र बाबू का चरखा है, कपड़े हैं, छड़ी हैं, चश्मे हैं और सबसे खास उन्हें मिला भारत रत्न है। पटना में हाईकोर्ट की स्थापना के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद विद्यापीठ 1916 के मार्च में पटना आए। बाद विद्यापीठ में महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलनों में शिरकत की। वे वर्ष 1921 से 1946 तक बिहार विद्यापीठ परिसर में एक खपरैल मकान में रहा करते थे। यह जमीन मौलाना मजहरूल हक की थी, जिसे उन्होंने स्वाधीनता संग्राम के दौरान कांग्रेस को दे दी थी। राष्ट्रपति का दूसरा कार्यकाल खत्म होने के बाद जब वे 14 मई 1962 को दिल्ली से पटना आए तो अपने पुराने खपरैल मकान में ही ठहरे, जहां आजादी के पहले रहा करते थे। इस भवन में 28 फरवरी 1963 की रात बाब राजेंद्र प्रसाद का निधन हो गया। बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष विजय प्रकाश बताते है कि विद्यापीठ की स्थापना छह फरवरी 1921 में महात्मा गांधी के द्वारा की गई थी। विद्यापीठ की स्थापना के लिए गांधी ने झरिया के गुजराती व्यवसायी से चंदा लिया और फिर विद्यापीठ का निर्माण हुआ। काशी विद्यापीठ की स्थापना के पहले स्वतंत्रता सेनानी ब्रजकिशोर प्रसाद, मौलाना मजहरूल हक, राजेंद्र प्रसाद ने इसकी नींव रखी। विद्यापीठ के मंत्री डॉ. शिववंश पांडेय ने बताते है कि बनाया आशियाना राजेंद्र प्रसाद जब दिल्ली से लौटकर अस्थायी रूप से यहां रहने लगे तो कोई भी ऐसा दिन नहीं रहा जब नेताओं और आम लोगों का जमावड़ा नहीं । लगता था। भले ही वे आज दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनकी स्मृतियां आज भी उनके होने का अहसास कराती हैं। राजेंद्र स्मृति संग्रहालय के मुख्य द्वार से सटा बायां कमरा राजेंद्र प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी का है, जिसमें राजवंशी देवी का है, जिसमें उनसे जुड़ी कई यादें आज भी जिंदा है। कमरे के अंदर बड़ी सी चौकी और किनारे में रखी कतारबद्ध कुर्सियां यादों को ताजा कर देती हैं। चौकी पर सफेद चादर और इसपर राजेंद्र प्रसाद द्वारा अपनी पत्नी को लिखा पत्र आज भी मौजूद है। वर्ष 1934 में मुंबई में हुए कांग्रेस अधिवेशन के मौके पर राजेंद्र प्रसाद और उनकी पत्नी राजवंशी की तस्वीर देखने को मिलती है। पास में जमीन पर चादर बिछी है, जिसपर चरखा रखा है। इसके ठीक दायीं ओर राजेंद्र प्रसाद का शयनकक्ष है। यहां आज भी सलीके से चौकी और कुर्सी रखी है। कमरे के बाहर बड़ा सा आंगन और इसके एक किनारे पर रसोई घर है, जहां उनकी पत्नी राजवंशी देवी भोजन बनाया करती थीं। आंगन के बीचों बीच तुलसी का पौधा लगा है। आंगन के ठीक उपर बरामदे में लकड़ी के छेटे-छेटे तख्त फर्श पर रखे हैं। इस तख्त पर बैठकर राजेंद्र बाब भोजन तख्त पर बैठकर राजेंद्र बाबू भोजन किया करते थे। कमरे के हर कोने में उनसे जुड़ी कई तस्वीरों के साथ उनके प्रयोग में लाई गई वस्तुओं को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वे आज भी हमारे साथ हैं। बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष विजय प्रकाश व सचिव डॉ. राणा अवधेश बताते हैं कि राजेंद्र बाबू ने जीवन के अधिकांश समय इसी पुराने खपरैल भवन में गुजारा। जब राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत होकर पटना आए तो उनके लिए नया भवन बनाया गया, जो विद्यापीठ के दूसरे छोर पर था।
एक राष्ट्रपति जिसने पद से हटने के बाद बंगले को छोड़ कुटिया को बनाया आशियाना