*नया साल शुभ हो*







नन्हे नन्हे डग  से चलता आया साल नया,

यादों की दुनिया में अपना बीता साल गया,

साल ना जाने अब तक कितने आए और गए, 

लगता फिर भी सदा निराला आता साल नया।

 

दो राहे पर खड़ी सोचती ,कैसी विकट घड़ी,

हर्ष मनाउं आगत का या सुमिरूं विगत कड़ी ।

 

जाने वाला पल उदास है आगत की अगवानी,

रस्म यही है सारे जग की,समय सुरभि अभिमानी।

 

  उन्हीं पलों को स्मृत रखकर, आगे राह बनाते,

नीच ,ऊंच की बात न जानें, पग समतल रख आते।

 

सबके बीच में सद्भावों की कड़ियां रखें पिरोकर,

शुभता में,हंसते गाते, हम,  समय गंवाएं न रोकर।

 

भले काम के भले नतीजे, भली भलाई करिए,

होगी सबकी बेहतर" छाया",खुशियों से घर भरिए।