सत्ता का खेल

                    कविता


सत्ता   के   खेल   में   सारे  शातिर  आपस  मे  भिड़  गए।


किसानों के कर्जे माफी की होड़ में आपस मे ही लड़ गए।।






हर बार चुनाव के पहले कोई नया मुद्दा निकल आता है।

नेताओ के बहकाने पर आम आदमी ही ठगा जाता है।।

 

अबकी बार किसानों के नाम पर बहकाने की बारी है।

किसानों की कमर पर चढ़कर राजगद्दी पाने की तैयारी है।।

 

राजगद्दी  की  चाहत  देखो  नित  नया  खेल  दिखाती  है।

गरीबो के घर जा जा कर नेता नीचे बैठ संग खाना खाते है।।

 

चुनाव  के  बाद  राजगद्दी  पर  बैठने  वाले बदल जाते है।

उम्मीदों   से   गिरकर   आम   आदमी   ही   चोट  खाता  है,

राजगद्दी के भूखे नेताओ का कोई कुछ ना बिगाड़ पाता है।।