ललित गर्ग
सेना में बाॅर्डर पर महिलाओं की तैनाती को लेकर समस्याएं हैं। विशेषतः बच्चों को लेकर उनकी विशेष जिम्मेदारियां इसमें बाधक बनती है। दूसरी बड़ी बाधा है कि बाॅर्डर से ताबूत यानी शहीदों के शव भी आते हैं। जिस दिन बाॅडी बैग आने शुरू होंगे, उनके बच्चों का क्या होगा? प्रश्न तो गंभीर है, लेकिन क्या दहेज में महिलाओं की हत्या नहीं होती, तब बच्चों का क्या होता है। लालन-पालन का प्रश्न भी है। लेकिन प्लेन उड़ाते वक्त शायद ही कोई महिला पायलट अपने बच्चों को काम पर ले जाती हो। हमारे यहां औरत यह बात अच्छी तरह से समझती हैं कि अगर उसे अपने पैर पर खड़ा होना है तो घर और बाहर दोनों जगह की जिम्मेदारी उसे खुद ही लेनी होगी, उसका काम बढ़ जाएगा, क्योंकि आज भी उसे घर से बाहर निकलने, पढ़ने और नौकरी पर जाने के लिए घरवालों की इजाजत लेनी पड़ती है। वह जानती है कि अगर वह नौकरी करने जाएगी, तो खुद उसका काम बढ़ेगा, क्योंकि मायके या ससुराल से नौकरी की इजाजत मिलना ही अपने आप में एक जंग है। लेकिन भारत की महिलाएं ऐसी जंग सदियों से लड़ती आयी है। सेना में महिलाओं की तैनाती के ताजा परिदृश्यों में नारी की अस्मिता एवं अस्तित्व को एक नयी पहचान मिलेगी। अब महिला समाज सेना में राष्ट्र की सुरक्षा के लिये अपने आपको प्रस्तुत करते हुए बलिदान को तत्पर होगी। इस निर्णय से महिलाओं में आत्मविश्वास जागेगा। अगर इस तरह का निर्णय होता है तो महिलाएं जान देने से डरने वाली नहीं है।
कुपोषण की शिकार महिलाएं रोजाना न जाने कितनी तादाद में बच्चा पैदा करते हुए मारी जाती हैं। लेकिन क्या इन वजहों से लड़कियों ने, महिलाओं ने अपने यहां किसी भी तरह से हार मानी? कभी भी उन्होंने नहीं कहा कि हमें बस घर में बैठना है, बच्चे पालने हैं। अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने और अपने ढंग से जीने के लिए लड़कियां हर दौर में बगावत करती आई हैं, अपने परिवार से, माता-पिता से, समाज से ताकि इसी समाज में उसे इज्जत की नजर से देखा जाए, पुरुषों के बराबर समझा जाए। किसी तरह माता-पिता ने पढ़ाई पूरी करवा दी, तो काॅलेज या नौकरी पर जाने के दौरान घूरती, छेड़ती आंखों से जंग करती, कंपटीशन की दुनिया में बराबरी के लिए होड़ करती महिलाएं, घर, बच्चों और आॅफिस के काम में बैलेंस बनाने के लिए जद्दोजेहद करती महिलाओं में आपने ऐसे कौन सी महिला देख ली, जो डरपोक हो? जो ताबूत में जाने से घबराती हो। जहां तक बच्चों को बाॅर्डर में ना ले जा पाने की बात है, तो इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले हर शख्स को इस बात का ज्ञान जरूर होगा।
जड़ जीवन से नारी को मुक्ति दिलाने की दिशा में सेना में उसकी तैनाती एवं योगदान एक मील का पत्थर साबित होगा। इस तरह के निर्णय होने से वे खुश होगी। यह महज शुरुआत होगी। उन्हें अभी लंबी दूरी तय करनी है। सेना में उनकी भूमिका का मतलब है कि गर्व के साथ जीना। शेर चलते हुए आगे भी देखता है और पीछे मुड़कर भी देखता है। आज प्रश्न केवल भारतीय महिला समाज का ही नहीं है, बल्कि दुनिया के सम्पूर्ण महिला समाज का है, वह आज जिस पड़ाव पर खड़ा है, वहां से जब उसके आगे बढ़ते कदमों को देखा जाता है तो उनकी क्षमताओं का विस्तार हुआ है, आज वह हर क्षेत्र में अग्रणी है, चाहे ओटो चलाना हो या हवाई जहाज। चाहे घर चलाना हो या राष्ट्र। चाहे नौकरी करना हो या लोगों से काम लेना। चाहे पत्रकारिता हो, चाहे वकालत हो, चाहे व्यापार हो, चाहे डाॅक्टरी का पेशा, चाहे इंजीनियरिंग हो या कोई भी तकनीकी क्षेत्र- महिलाओं ने सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये हैं। उसके कर्तृत्व का परचम हर क्षेत्र में फहरा रहा है। महानगरों में फैलती हुई सडकों की तरह महिलाओं का कार्यक्षेत्र भी अब फैलता जा रहा है। निःसंदेह महिलाओं ने ज्ञान-विज्ञान से अपने कद को ऊंचा उठाया है लेकिन इस पड़ाव पर ठहर कर जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो कई प्रश्न उत्तर पाने कि प्रतीक्षा में खड़े नजर आते हैं। वे प्रश्न हैं- कहीं कैरियर कोन्सियनेस की प्रतिस्पद्र्धा उनका मानसिक तनाव को तो नहीं बढ़ा रही है? सीमा पर तैनात जवान अपनी छुट्टियों के लिए तरसता है। बाॅर्डर के खतरों से बचने के लिए अक्सर पुरुषों को पीस यानी शांतिपूर्ण इलाकों में पोस्टिंग के लिए मारामारी करते हुए देखा गया है। लेकिन महिलाओं की तरफ से गारंटी है कि देश सेवा के इस मौके की राह महिलाओं के लिए खोलकर तो देखिए, वे आपको निराश नहीं करेंगी। देश के लिए सीने पर गोली खाना और झंडे में लिपट कर ताबूत में अपने घर, मायके या बच्चों के पास लौटना उस मौत से लाख गुना बेहतर है, जो सिर्फ दहेज के लालच, बलात्कार, घरेलू हिंसा जैसी घिनौनी वजहों से होती हैं।
विकास तभी संभव हो सकता है जब मूल सुदृढ़ हो, टिकेंगे वे ही, जिनकी जड़े मजबूत हो। पत्ते, पुष्प और फल वृक्ष के परिणाम हैं, मूल नहीं। ये वृक्ष की शोभा बढ़ाने वाले हैं, आधार नहीं। महिला समाज के लिये, बाहरी विकास यानी शिक्षा, कैरियर, वाहन चलाना, सेना में तैनाती, यश-प्रतिष्ठा ये वृक्ष के पत्ते, फूल, फल हैं। किन्तु वृक्ष की जड़े हैं भीतर का विकास। भीतर के विकास के लिए महिलाओं को त्याग एवं बलिदान की भावना को शिखर देने होंगे, अपने चित्त को निर्मल एवं पवित्र बनाना होगा, संस्कारों की खाद डालनी होगी, निरंतर अभ्यास के जल से उसे सींचना होगा। अब महिलाओं को संकल्प की शक्ति को जगाना है। नैतिक एवं साहसिक मूल्यों के आधार पर अपने चरित्र का निर्माण करना है। महिला समाज का जीवन एक ऐसा भव्य द्वार बने जिसके दो मजबूत स्तंभ हो। एक स्तंभ पर कर्तव्य के लेख लिखें हो, जिस पर यशोध्वजायें फहरायें तथा दूसरे स्तंभ पर चरित्र की उज्ज्वलता अंकित हो जिस पर तेजस्विता की धवल ध्वजा फहराये। लक्ष्य की पूर्ति के लिये चरैवेति-चरैवेति मंत्र का अजपा जाप करते हुए उन्हें कदम-कदम आगे बढ़ना है। महिलाओं के विकास का सार्थक लक्ष्य यही हो सकता है कि विकास बाहर भी हो और भीतर भी।
इसी सोच को विकसित करके महिलाएं सदियों से चले आ रहे पुरुषों के पारंपरिक नजरिया को बदल सकती है, जहां पुरुष को स्त्री के मालिक के रूप में ही देखने का नजरिया रहा है। इसलिए अब तक सारे अहम फैसलों में पुरुष का ही वर्चस्व बना रहा है। नारी को दोयम दर्जा ही मिला हुआ है। कैसी दुर्भाग्यपूर्ण विसंगति है कि नारी का शिक्षित, आत्मनिर्भर एवं कर्तृत्व सम्पन्न होने पर भी उसका शोषण समाप्त होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। जबकि सच यह है कि पुरुष ने नारी को आधार बनाकर ही उच्च सोपानों को छुआ है। पुरुष की मानसिकता महिलाओं की प्रगति को कुछ समय के लिये बाधित कर सकती है लेकिन रोक नहीं पायेंगी क्योंकि परिवार, समाज और राष्ट्र का हित नारी प्रगति में ही निहित है। नारी की समता, साहस और क्षमता से न केवल परिवार में संतुलन रहता है बल्कि समाज एवं राष्ट्र को संरक्षण भी मिलता है।
नारी समाज में अभिनव स्फूर्ति एवं अटूट आत्मविश्वास भरने के लिये पुरुषों की मानसिकता बदलना जरूरी है। जहां केवल पुरुष की मर्जी चलती हो, स्त्री की मर्जी कोई मायने न रखती हो, वहां स्त्री पुरुष की चल संपत्ति या वस्तु जैसी हो जाती है, उसके प्रति भेदभाव का नजरिया पनपने लगता है, उसे कमजोर समझा जाने लगता है, वस्तुतः एक महिला प्रकृति से तो कमजोर होती ही है, उसे शक्ति से भी इतना कमजोर बना दिया जाता है कि वह अपनी मानसिक सोच को भी उसी के अनुरूप ढाल लेती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सेना में महिलाओं की तैनाती की सोच एवं उसकी जागरूकता नारी पर सदियों से चले आ रहे दुर्भाग्य को मिटाकर उसे गौरव के साथ जीने का धरातल देंगी। इसी से नारी के जीवन में उजाला होगा और वह सदियों से उस पर लादी जा रही हीनता एवं दुर्बलता की ग्रंथियों से मुक्त हो सकेगी।