मैं अभिव्यक्ति हूँ
गूँथ कर शब्दों के मोती
मन के भाव पिरोती हूँ
एहसासों से ह्र्दय आसन पर
श्रृंगार सृजन का करती हूँ।
मैं ही कविता मैं ही गीत
मैं ग़ज़ल कहलाती हूँ
धड़कन की हर लय ताल पर
जीवन राग सुनाती हूँ
साँसों से जुड़ी है सरगम
प्रेम राग बरसाती हूँ।
मैं चंचल भी शांत नीरव सी
मैं कण कण में व्याप्त सदा सी
मैं उजास सी श्यामल रात सी
मैं हूँ कंठ की मुक्त वाहिनी
मैं हूँ धारा की चंचल रागनी
मैं सुहास हूँ मैं बयार हूँ
वीणा सुर सी मधुर झंकार हूँ
ह्र्दयतल के अंतर्मन पर
शब्द शब्द पिघलाती हूँ।
अश्रु की अविरल धारा सी
पीर का नीर बहाती हूँ
दर्द समेटे ह्रदय में कितने
आँचल से मुस्काती हूँ
मैं ही रहस्य मैं ही मूल हूँ
मैं ही तुझमें तेरी हर बात में हूँ
मैं ही भक्ति मैं ही प्रीत हूँ
मैं ही श्रद्धा मैं विश्वास हूँ
मैं वो रचना है जग जिससे
मैं सृष्टि की अनमोल कृति हूँ।