दो दिनों से चल रहा भाजपा का सांगठनिक कुंभ समाप्त हो गया। इस पर पूरे देश की नजर थी। चुंकि आम चुनावों की तैयारियों को निर्णायक रूप देने के क्रम में इस अधिवेशन का आयोजन किया गया था लिहाजा यह तो पहले से ही तय था कि सांगठनिक मसलों से ज्यादा यह चुनाव पर ही केन्द्रित रहेगा। लिहाजा उम्मीद थी कि इस मंच का इस्तेमाल करते हुए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन तमाम मसलों के बारे में अपनी सोच को उजागर करेगा जिसको आगे रख कर वह देश से दोबारा जनादेश मांगने के लिये चुनाव मैदान में उतरने वाला है। लेकिन कायदे से देखा जाये तो उन लोगों को इस पूरी कवायद से निराशा ही हाथ आई है जो बड़ी उम्मीदों के साथ इस आयोजन की हर गतिविधि को टकटकी लगाकर देख रहे थे। ना तो भाजपा ने इस मंच के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि दोबारा जनादेश हासिल करने के बाद वह किस दिशा में आगे बढ़ेगी और ना ही यह बताने की पहल की कि पिछले चुनाव के दौरान किये गये वायदों में से कितने ऐसे वायदे रहे जो पूरे नहीं किया जा सके और पूरा न हो पाने की क्या वजहें रहीं। सच पूछा जाये तो यह कहना गलत नहीं होगा कि कई मायनों में यह पूरी तरह दिशाहीन आयोजन रहा जिसमें कुछ भी अलग या नया उभर कर सामने नहीं आया। बैठक का औपचारिक तौर पर आगाज करने के क्रम में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने ना तो उन मसलों को लेकर कोई स्पष्ट बात कही जिसके बारे में पूरा देश भाजपा से जानना चाहता है और ना ही भविष्य को लेकर कोई ऐसी उम्मीद बंधाई जिसे पूरा करने के लिये आम लोगों में मोदी सरकार को दोबारा जनादेश देने के बारे में उत्साह का संचार हो सके। यहां तक कि बैठक के समापन में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिये गये सवा घंटे के भाषण में भी कोई नयी बात उभर कर सामने नहीं आई। अधिवेशन का औपचारिक तौर पर समापन करने के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने जो भाषण प्रस्तुत किया वह पूरी तरह चुनावी भाषण ही था। कायदे से तो लोकसभा चुनाव से कुछ ही दिन पूर्व आयोजित किये गए इस सांगठनिक कार्यक्रम में उन्हें कार्यकर्ताओं को समुचित मार्गदर्शन देना था और आगामी चुनाव को लेकर पार्टी को दिशा दिखानी थी लेकिन कुल सवा घंटे के भाषण में उन्होंने अधिकांश समय विपक्ष पर तीखा हमला करने और अपनी साढ़े चार साल की उपलब्धियां बखानने में ही खर्च किया जबकि अधिवेशन में मौजूद कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन देने में उन्होंने महज दस मिनट से भी कम का समय ही खर्च किया। अपने पूरे भाषण में उन्होंने कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों की नाकामियां गिनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी बल्कि यहां तक कह दिया कि अगर देश के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल को सत्ता संभालने का मौका मिला होता अथवा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को एक कार्यकाल और काम करने का मौका मिल गया होता तो आज देश की तस्वीर ही दूसरी होती। मोदी के मुताबिक कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार ने अर्थव्यवस्था, विदेश नीति व आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर देश को ऐसे मंझधार में लाकर फंसा दिया था जहां अगर भाजपा को सत्ता संभालने का मौका नहीं मिला होता तो कितने बुरे हालातों का सामना करना पड़ सकता था इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि एक बार फिर विरोधी दलों की कोशिश है कि देश में ऐसी मजबूर सरकार बने जिससे उन्हें अपने पुराने पापों को छिपाने व नए सिरे से देश को लूटने का मौका मिल सके लेकिन प्रधानमंत्री ने पूरे विश्वास के साथ कहा कि पूरा देश विपक्ष की इस साजिश से अच्छी तरह अवगत है और देशवासियों की चाहत है कि अबकी बार फिर मजबूर नहीं बल्कि मजबूत सरकार बने। माना कि मोदी की नजर में देश के लिये मजबूत सरकार बेहद आवश्यक है लेकिन उस मजबूती का क्या फायदा जो पार्टी के मूलभूत मसलों को लेकर कोई निर्णय ही ना कर सके। यह बात समझ से परे है कि आखिर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन मसलों को चिमटे से छूने से भी परहेज क्यों बरत रहा है जिनको आगे रखने के कारण ही भारतीय राजनीति में उसकी एक अलग पहचान रही है। जहां तक विकास का सवाल है तो यह निश्चित ही सतत प्रक्रिया है जिसके लिये किसी को किसी का आभारी होने की कोई जरूरत ही नहीं है। पिछले चुनाव में भी अगर मोदी के बजाय मनमोहन को ही तीसरी बार सरकार बनाने का जनादेश मिला होता तब भी मंगल पर भारत के कदम तय समय पर ही पड़ते। हो सकता था कि राफेल की खरीद में थोड़ी देरी होती या बुलेट ट्रेन की परियोजना कुछ विलंब से भारत में आती। लेकिन यह सोचना को दिमागी दिवालियापन ही होगा कि मोदी नहीं आते तो देश में विकास होता ही नहीं। बल्कि जो भी सरकार सत्ता में आती है उसकी जिम्मेवारी देश को सही दिशा में आगे ले जाने की ही होती है और यही काम सब करते भी हैं। अंतर सिर्फ इतना होता है कि किसी के कार्यकाल में कुछ अलग दिशाओं में विकास की गति तेज रहती है तो किसी अन्य की प्राथमिकता सूची में कुछ अलग काम होते हैं। लिहाजा सिर्फ विकास के लिये ही सरकार बनानी होगी तो मोदी में कौन से सुर्खाब के पंख लगे हैं? यह काम तो हर वह पार्टी या नेता करेगा ही जिसे देश की जनता नेतृत्व की बागडोर सौंपेगी। लेकिन भाजपा की पूरी कोशिश यही दिखाई पड़ी कि कांग्रेस के नेतृत्व को भ्रष्ट और निकम्मा साबित किया जाए, ऐसा माहौल बनाया जाए मानो आजादी के बाद से अब तक काम कम और भ्रष्टाचार ही अधिक हुआ है और लोगों के मन में यह बात गहरे तक बिठा दी जाए कि अगर मोदी को दोबारा मौका नहीं मिला तो देश का रसातल में जाना तय है। निश्चित ही भय का माहौल बनाकर दोबारा जनादेश हासिल करने की भाजपा की कोशिश काफी हद तक बचकानी ही है। कायदे से भाजपा को लोगों ने सिर्फ सुधार और विकास के लिये नहीं चुना है बल्कि उसके साथ कई ऐसी अपेक्षाएं भी जुड़ी हैं जिसके बारे में आम धारणा है कि इस काम को भाजपा के अलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता। इस लिहाज से देखें तो अधिवेशन के इस मंच ने वाकई निराश ही किया है।
अधिवेशन में उपेक्षित रहीं अपेक्षाएं