*अनुभूत दोहे*







1.सीढ़ी तो अविचल रहे,रहें आप गतिमान।

पग संचालन तय करे,अवनति या उत्थान।।

 

2.अवसर ऊंची बात है,रहें संतुलित आप।

   तिनका गिरकर आंख में,क्रोध बने अभिशाप।।

 

3. कमजोरों को मारकर, बनें बहादुर आप।

यह कमजोरी ही बने,खुशियों पर अभिशाप।।

 

4.प्रभुतायी पद,चार दिन,तज मत मृदु व्यवहार।

 कौन जानता कौन कब,बनता तारनहार।।

 

5.संभाषण हो संतुलित, सुमधुर स्वर के साथ।

  वैचारिक परिपक्वता, जगत सुने नत माथ।।

 

6.गलत बात को देख, सुन,रहे आप गर मौन।

 मूक समर्थन और शह,कहिए देता कौन।।

 

7.स्वाद मधुर,प्रियकर चखे,फिर भी कड़वे बोल।

  लाख पिलाएं पय मगर,सर्प वमन विष घोल।।

 

8.सूरत पर मत मर मिटें, सीरत पर हो गौर।

  अपराधी संग मित्रता, मांगे मिले न ठौर।।

 

9.काया भस्मीभूत है,पंचतत्व के नाम।

  शेष रहें व्यवहार हैं, औ जो उत्तम काम।।

 

10.खाकर होता क्षोभ पर,देकर पश्चाताप।

      धोखे की फितरत बने, खुशियों पर अभिशाप।।

 

11.अपनेपन की भावना, और मदद को हाथ।

     मिले पराए मुल्क में,अपनों जैसा साथ।।

 

12. वाचालों के बीच हों,रहिए चुप्पी साध।

       यही सुरक्षा पूर्ण है, वरना घेरे व्याध।।