आम चुनाव का वक्त करीब होने के कारण देश के भीतर जारी सियासी शोर के बीच कई ऐसी खबरें हैं जिनकी आवाज दब कर रह जाती है। लेकिन विश्व बिरादरी के बीच वे ही खबरें चर्चा का का विषय बन रही हैं। ऐसी ही खबर सामने आई है अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानि आईएमएफ के मंच से जो यह बताती है कि समूचे विश्व की औसत विकास दर को सकारात्मक बनाए रखने की जद्दोजहद के बीच भारत ही ऐसा देश है जो ना सिर्फ विश्व के विकास का केन्द्र बना हुआ है बल्कि आर्थिक मोर्चे पर सारथी बन कर दुनिया को राह भी दिखा रहा है। इतना ही नहीं बल्कि देश की सियासत का ऊंट भले ही किसी भी करवट बैठे लेकिन भारत के विकास की गाड़ी ने ऐसी रफ्तार पकड़ ली है कि अब वह आने वाले कई सालों तक विकास के मामले में विश्व की अगुवाई ही करता रहेगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की ‘वल्र्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ नामक रिपोर्ट में साफ शब्दों में यह स्वीकार किया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की जड़ें काफी मजबूत हैं और लगातार इतनी मजबूत होती जा रही हैं कि उसे उखाड़ पाना तो दूर की बात रही बल्कि उसे हिला पाना भी किसी भी देश के लिये अब संभव नहीं रह गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि जिन कारणों से दुनिया के विकास में तेज गिरावट आई है उन्हीं वजहों को भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपने विकास के लिये खाद-पानी के तौर पर इस्तेमाल कर लिया है। मसलन तेल के मूल्यों में गिरावट ने जहां एक ओर तमाम देशों के विकास में रूकावट का काम किया है वहीं इस वैश्विक समस्या ने भारत को तेजी से आगे बढ़ने में सहायता प्रदान की है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट में तीव्र विकास दर का एक अन्य कारण धीमा मुद्रा संकुचन बताया गया है। यानि परोक्ष तौर पर आईएमएफ ने भी माना है कि पहले नोटबंदी और बाद में कैशलेस की ओर बढ़ते भारत के कदम ने देश की अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती दी है। रिपोर्ट की मानें तो विश्व भर के देशों के लिये चीन और अमेरिका के बीच चल रहा अघोषित आर्थिक युद्ध यानि ट्रेड वार भले ही एक बड़ी सिरदर्दी के तौर पर सामने आया है लेकिन भारत की सेहत पर इस समस्या ने कोई बड़ा प्रभाव नहीं डाला है। 2018-19 के लिए भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर का पूर्वानुमान 7.3 प्रतिशत स्थिर है वहीं रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019-20 के लिए आर्थिक विकास दर अपेक्षाकृत अधिक 7.5 प्रतिशत रहेगी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट के अनुसार भारत की विकास दर चीन की विकास दर से अधिक बताई गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इन दोनों वर्षों में चीन की आर्थिक विकास दर मात्र 6.2 प्रतिशत रही है। रिपोर्ट की मानें तो बीते दो सालों में जिस तरह से भारत ने आर्थिक विकास दर के मामले में समूचे विश्व को पछाड़ा है वह सिलसिला अभी कतई थमनेवाला नहीं है और आने वाले कई सालों तक भारत ही विश्व में सबसे तेज विकास दर वाला देश बना रहेगा। यानि इसका स्पष्ट मतलब यही है कि वैश्विक उतार चढ़ाव का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। जबकि बाकी समूचे विश्व के लिये अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता व्यापारिक तनाव और अस्थिर तेल मूल्य का मसला ऐसा है जिसने सबकी नींद हराम की हुई है और इन मसलों के कायम रहते हुए विश्व की औसत प्रगति दर में सुधार की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। विश्व के बाकी देशों की आर्थिक सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा किये गये विश्लेषण ने वैश्विक आर्थिक प्रगति में अभी और अधिक गिरावट का अनुमान व्यक्त किया है। रिपोर्ट में विश्व की औसत विकास दर के लिये 2019 में मात्र 0.2 तथा 2020 के लिए सिर्फ 0.1 प्रतिशत अंक का ही अनुमान लगाया गया है। यानि दूसरे शब्दों में कहें तो आने वाले सालों में समूचा विश्व बमुश्किल ही सकारात्मक विकास दर को कायम रख पाएगा और कागजी तौर पर विश्व के सकारात्मक विकास दर के आंकड़े को भी भारत की तेज गति से हो रही आर्थिक तरक्की ही थामे रखेगी। इसका सीधा असर यह होने जा रहा है कि अब विश्व में भारत की रैंकिंग में इजाफा होगा और इसके बारे में अंतर्राष्ट्रीय पेशेवर संस्था प्राइसवाटर-कूपर ने भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी रिपोर्ट वाले दिन ही अपनी एक रिपोर्ट में सहमति की मुहर लगा दी है। रिपोर्ट में लिखा गया है कि भारत तथा फ्रांस 2019 में ब्रिटेन को वैश्विक अर्थव्यवस्था के मामले में पोचवे स्थान से धकेलकर सातवें स्थान पर पहुंचा देंगे। लेकिन विकास की तेज रफ्तार को बढ़ाने में भारत को भी कई जटिल समस्याओं का सामना करना ही होगा जिसके बारे में आईएमएफ की रिपोर्ट ने भी आगाह किया है। मसलन अपर्याप्त रोजगार सृजन को भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौती माना गया है। भारत में प्रत्येक घर के लिए एक निश्चित धन उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु एकसमान मूल आय अर्थात यूबीआई लागू करने पर भी चर्चा चल रही है। यूबीआई को लागू करने के लिए कुछ राज्य गम्भीरता से विचार कर रहे हैं। इस एकसमान न्यूनतम आय योजना को भारत सरकार द्वारा सामाजिक कल्याण की एक सशक्त नीति के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि इसकी राह में बाधाएं भी हैं क्योंकि वित्तीय समावेशन और सरकारी फाइनेंस में डिजिटल ढांचे की पर्याप्त प्रगति नहीं हो सकी है। लेकिन इस तरह की समाजवादी व खुशहाली लानेवाली योजनाओं का असर विकास की गति पर पड़ना स्वाभाविक ही है क्योंकि सरकारी खजाने पर पड़नेवाला हर अनुत्पादक बोझ कहीं ना कहीं विकास की गति को कम ही करता है क्योंकि उस धन का अगर विकास के उत्पादक ढ़ाचे पर खर्च हो तो विकास की गति में इजाफा ही होगा। इसके अलावा आर्थिक प्रगति की गति बनाए रखने में मौद्रिक स्थिरता की गुणवत्ता भी एक चिंता का विषय है। महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट में बताया गया है कि मौद्रिक स्थिरता की गुणवत्ता एक चिंता का विषय है और दीर्घावधि की मैक्रो-आर्थिक स्थिरता एवं आर्थिक प्रगति पर दुष्प्रभाव डाल सकती है। जीएसटी दरों से जुड़े नए कर सुधार भी एक और चर्चा का विषय बन गए हैं। जीएसटी के सुगमतापूर्वक क्रियान्वयन में अनेक दरों का होना भी एक बाधा माना जाता है। हालांकि दीर्घावधि में मजबूत विकास दर बनाए रखने में वस्तु एवं सेवा कर अर्थात जीएसटी और दिवालिया कानून जैसे मूलभूत कर सुधार सहायक ही सिद्ध होंगे। साथ ही भारत की मजबूत आर्थिक प्रगति की राह में कृषि संकट एक बड़ी समस्या है। बढ़ती हुई असमानता आर्थिक प्रगति की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए एक खतरा है। यानि तरक्की और खुशहाली के बीच एक संतुलन की जरूरत है जिसके लिये आवश्यक है कि देश में सियासी समझदारी दिखाई पड़े और लालच व बहकावे की राजनीति को बढ़ावा ना दिया जाए।
भारतीय अर्थव्यवस्था का बज रहा डंका