केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार के विकास सम्बन्धी अपने दावे प्रतिदावे हैं, जबकि उसके चक्कर में उलझी हुई जनता की अपनी अपनी और अलग अलग परेशानियां, जिसके समक्ष सबका साथ-सबका विकास का नारा बेमानी प्रतीत हो रहा है। स्वाभाविक है कि लोकलुभावन बजटीय दावों और ठोस जमीनी हकीकत की उपेक्षा करना किसी भी पक्ष के लिए सम्भव नहीं होगा।
अमूमन, सरकारीकरण से ऊबी हुई अवाम जब निजीकरण की बेशुमार कोशिशों के बावजूद छली जा रही हो, जनसुविधाओं के बदले व्यवस्थागत असुविधाएं और दांव-प्रतिदांव ही मयस्सर हो तो, सम्बन्धित जवाबदेह लोकतांत्रिक व्यवस्था से विश्वास भले ही ना डिगे, लेकिन कतिपय सवाल तो उठेंगे ही। शायद इन्हीं सुलगते हुए सवालों का माकूल उत्तर देना राजनेताओं की स्वार्थी समझ से परे है और नौकरशाही की भूलभुलैया तो ऐसी कि आम आदमी भी ठगा ठगा सा रह जाता है, बुझा बुझा सा दिख जाता है।
कहना न होगा कि जिस देश में रोटी, कपड़ा और मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान से जुड़ी सियासत से इतर जातीय आरक्षण, साम्प्रदायिक तुष्टीकरण और व्यवस्थागत बंदरबांट वाली सियासत को ही तरजीह दिए जाने की होड़ मची हो, अनपढ़ अथवा कम पढ़े लिखे और आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों से संसद, विधानमंडल और त्रिस्तरीय पंचायती निकाय भरे पड़े हों, वहां बजट के मौलिक पहलुओं पर प्रकाश डालना और सब्सिडी से जुड़े ब्लाइंड गेम की मीन मेख निकलना सहसा सम्भव नहीं।
....और इससे बिल्कुल मुंह फेरना तो किसी भी बुद्धिजीवी के बस की बात ही अब नहीं रही! लेकिन सवाल है कि नक्कारखाने में तूती की आवाज को सुनेगा कौन, क्योंकि जहां बहस होनी चाहिए, वहां तो शोरगुल का शर्मनाक आलम सत्र दर सत्र बढ़ता ही जा रहा है।शायद यही वजह है कि जनहित की भावना अब दम तोड़ रही है और व्यवस्था हित को संरक्षित करने के लिए वर्ग हित की वकालत को कतिपय लोग तरजीह देने को आतुर दिख रहे हैं। यही वजह है कि कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल द्वारा 2019 के अंतरिम बजट हेतु किए गए बजटीय प्रावधान भी उपर्युक्त बातों-जज्बातों के ही कठघड़े में खड़े हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि देश में समावेशी विकास को तरजीह देने वाली मोदी बजट एक्सप्रेस यदि इस बार बेपटरी हुई है तो इसके पीछे राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकारों की हुई करारी हार और विभिन्न संसदीय उपचुनावों में भी बीजेपी को मिली मातों से उसकी विकास प्राथमिकताएं बदली हैं और वह भी कांग्रेसी सरकारों की बजट बाजीगरी की ओर उन्मुख हुई है, ताकि मिशन 2019 को किसी की नजर न लगे। यही वजह है कि नोटबन्दी, जीएसटी और कतिपय सख्त वित्तीय फैसले करने वाली पूंजी परस्त मोदी सरकार अब किसानों, मजदूरों, मध्यमवर्गीय परिवारों और वीर जवानों की बढ़ती जरूरतों के मद्देनजर हितकारी बजट बनाने को मजबूर हुई है।
स्पष्ट है कि चुनावी वर्ष में केंद्र सरकार कोई भी बजटीय जोखिम उठाने को तैयार नहीं थी, इसलिए उसने सत्ता की अंतिम बेला में विष रस भरा कनक घट जैसा वित्तीय प्रावधान लागू करने की पहल तो कर चुकी है, लेकिन उसकी इस पहल को कितना जनसमर्थन मिलेगा, यह तो आम चुनाव 2019 के परिणामों से ही जाहिर होगा। हां, इस बात का भी डर लोगों को बना रहेगा कि इतना लोकलुभावन अंतरिम बजट प्रस्तुत करने के बाद भी यदि मोदी सरकार दोबारा सत्ता में नहीं लौटती है तो आने वाली नई सरकार क्या गुल खिलाएगी, कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
यही वजह है कि जब केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की तबियत नासाज हो, तब उनके ही कार्यवाहक उत्तराधिकारी द्वारा विगत के पांच वित्तीय बजट प्रावधानों से इतर लोकलुभावन बजट प्रावधान पेश करना कतिपय सवाल तो खड़े करेगा ही! बहरहाल, केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने अंतरिम बजट प्रावधानों के माध्यम से किसानों, मजदूरों और मध्यम वर्ग के दूरगामी हितों को ध्यान में रखते हुए जो कई बड़े ऐलान किए हैं, और दो टूक कहा है कि यह बजट सबके लिए हितकारी है। मसलन, किसान उन्नति से लेकर कारोबारियों की प्रगति तक, इनकम टैक्स से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक, हाउसिंग से लेकर हेल्थ केयर तक, इकोनॉमी को नई गति देने से लेकर नए भारत के नवनिर्माण तक, वाकई इस बजट में सबका ध्यान रखा गया है, जिससे हमारा गरीब सशक्त होगा, किसान को आर्थिक सम्बल मिलेगा, श्रमिकों को लाभ मिलेगा एवं अभी तक सबसे उपेक्षित रहे मध्यम वर्ग को आर्थिक स्वावलम्बन भी मिलेगा। तभी तो इस बजट से जहां आयकरदाताओं में खुशी की लहर दौड़ गई, वहीं अन्य गोलबंद हो रहे वर्गों को भी कुछ न कुछ मिला है, या फिर मिलने की उम्मीद जगी है।
यही नहीं, जीएसटी का सफल समायोजन भी मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि समझी जा रही है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है, जहां सालों से देश में किसानों की हालत खराब रही है। खासकर उनकी आत्महत्या की विचलित करने वाली ख़बरों के बीच हर साल के बजट में यह उम्मीद जगी रहती है कि सरकार किसानों के लिए कुछ विशेष पहल करते हुए कुछ नई घोषणाएं भी करेगी। इस रूप में अंतरिम बजट 2019 में कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने किसानों के हित में सराहनीय पहल की है, बशर्ते कि इससे उनकी शिकायतें दूर हो जाएं।जो बजट प्रस्तुत किया जिसके लिए वो व् मोदी सरकार की समस्त मंत्री, सांसद एवं अन्य प्रतनिधिगण बंधाई के पात्र हैं।