खबर है कि गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में विभाजित कचैड़ा गांव से शुरू हुआ यह भाजपा विरोधी अभियान मुख्य शहर की कनावनी तक पहुंच गया है जो चिंता की बात है। क्योंकि रविवार को थाना इंदिरापुरम क्षेत्र स्थित कनावनी गांव के सभी ग्रामवासियों ने भी बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और उसके किसी भी नेता की गांव में एंट्री पर रोक लगा दी है। आश्चर्य की बात है कि एक बोर्ड पर कुछ इस तरह के शब्द लिखे हुए हैं- "गांव कनावनी में बीजेपी नेताओं का आना सख्त मना है।"
बताया जा रहा है कि अपनी मांगें पूरी नहीं होने पर कनावनी के लोगों ने ऐसा कदम उठाया है। उनका कहना है कि उनका गांव नगर निगम क्षेत्र में होने के बावजूद विकास के नाम पर पिछड़ा हुआ है। आरोप है कि बीजेपी नेता गांव के विकास के नाम पर लोगों से वोट लेने का काम तो करते हैं, लेकिन जब विकास की मांग गांव वालों द्वारा किया जाता है तो सिर्फ और सिर्फ आश्वासन ही दिया जाता है। जिससे विकास को लेकर यहां के लोग तरस रहे हैं। यही कारण है कि लोगों ने रविवार को बीजेपी के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए अपने गांव की प्रवेश सीमा पर उक्त बोर्ड लगा दिया। जिससे जनपद भाजपा में हड़कंप मचा हुआ है।
स्थानीय राजनीतिक टीकाकारों का कहना है कि 2014 से गुर्जर समाज बीजेपी का मजबूत वोट बैंक बन चुका है। बता दें कि पिछड़ा वर्ग की यह मजबूत जाति जबसे सपा और बसपा से छिटक कर भाजपा से चिपकी है, बीजेपी मजबूत हुई है और सपा-बसपा कमजोर। लेकिन सवर्ण जनाधार वाली भाजपा द्वारा इन्हें जोड़े रखने में विफल रहने से पार्टी का जनाधार संतुलन गड़बड़ा जाए तो हैरत की बात नहीं होगी।
वैसे तो केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह जो गाजियाबाद के सांसद भी थे और अभी लखनऊ संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने बड़ी चतुराई पूर्वक गुर्जरों को अपने पाले में कर लिया था और त्रिस्तरीय पंचायती राज निकायों सहित हरेक जगह पर इस जाति के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व दिलवाया था। लेकिन केंद्र में मोदी और यूपी में योगी सरकार को बनवाने में अहम भूमिका निभाने के बावजूद जिस तरह से इस जाति के नेता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, उससे उनमें रोष व्याप्त है।
खबर है कि कहीं उनके नेताओं की उपेक्षा हो रही है तो कहीं उनके युवाओं के एनकाउंटर किये जा रहे हैं। गत नगर निगम चुनाव में भी गुर्जर जाति के कई मजबूत नेताओं के टिकट अंतिम समय में काट दिए गए थे। राज्य मंत्रिमंडल और केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी पश्चिमी उत्तरप्रदेश में मजबूत जनाधार रखने वाले गुर्जर नेताओं की उपेक्षा हुई है। यही वजह है कि मीरापुर के बीजेपी विधायक और मेरठ तथा फरीदाबाद के पूर्व कांग्रेसी सांसद अवतार सिंह भड़ाना फिर से कांग्रेस में वापस चले गए। यही नहीं, कई और गुर्जर नेता जो 2014 और 2017 के बाद सपा, बसपा और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं, अपने अपने पुराने दलों के नेताओं के सम्पर्क में हैं, क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस-शिवपाल गुट वाली प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के बीच सियासी समझदारी विकसित होने से बीजेपी का कमजोर होना स्वाभाविक है, जिससे ये नेता डरे हुए है।
शायद यही वजह है कि गुर्जर बहुल गांव कचैड़ा से कनावनी तक स्थानीय गुर्जर नेता जिस तरह से भाजपा का धुर विरोध कर रहे हैं, वह अनायास नहीं है, बल्कि स्वजातीय बड़े नेताओं के इशारे पर यह सबकुछ किया जा रहा है, जिससे भाजपा समय रहते ही सावधान हो जाए तो यह उसके लिए अच्छा रहेगा। अन्यथा नई दिल्ली और लखनऊ की जीती बाजी भी भाजपा गंवा सकती है निकट भविष्य में!