फिरोज़ाबाद में राम गोपाल से पुराना हिसाब-किताब बराबर करेंगे शिवपाल






प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के राष्ट्रीय संयोजक शिवपाल सिंह यादव ने अपने भाई रामगोपाल यादव से पुराना हिसाब-किताब बराबर करने के लिए पूरा जाल बिछा दिया है। अब चूड़ियों के शहर फिरोज़ाबाद में चूड़ियों की खनक की जगह कुनबे की कलह से उठने वाला सियासी कोहराम गूंज उठा है। सीट की दावेदारी को लेकर चाचा-भतीजे आमने-सामने हो गये हैं क्योंकि चाचा शिवपाल सिंह यादव ने फिरोज़ाबाद की संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इस सीट से समाजवादी पार्टी की तरफ से रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव सांसद हैं। साफ है कि परिवार की निजी लड़ाई फिरोजाबाद सीट से शुरू होकर यूपी की बाकी सीटों पर भी देखने को मिलेगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि शिवपाल के ऐलान के बाद क्या समाजवादी पार्टी दोबारा अक्षय यादव को फिरोजाबाद से उतारना चाहेगी?

 

अक्षय यादव फिरोजाबाद से मोदी-लहर के बावजूद चुनाव जीते थे। यूपी से सबसे कम उम्र के सांसद भी वो बने। लेकिन अब अपने ही चचेरे भाई राम गोपाल यादव के बेटे के राजनीतिक कैरियर पर शिवपाल सिंह यादव ग्रहण लगा दिया हैं तभी उन्होंने फिरोजाबाद से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।

 

सही मायने में राम गोपाल यादव से शिवपाल सिंह यादव पुराना हिसाब बराबर करना चाहते हैं। दरअसल, जब समाजवादी पार्टी के आधिपत्य की जंग छिड़ी तो अखिलेश के साथ राम गोपाल कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। राम गोपाल यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोपों के चलते तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित भी कर दिया था। ये भी आरोप लगे कि यादव परिवार की महाभारत के पीछे असली दिमाग रामगोपाल यादव का था।

 

राम गोपाल की ही वजह से शिवपाल आखिरी तक संघर्ष के बावजूद ‘साइकिल’ की चाबी नहीं पा सके। अब जब नई पार्टी बनी तब जाकर उन्हें चुनाव आयोग से ‘चाबी’ तो मिली लेकिन चुनाव चिन्ह के रूप में। लेकिन एक वक्त वो भी था जब ‘साइकिल’ के दो पहिए मुलायम सिंह और शिवपाल यादव ही माने जाते थे। शिवपाल का कद पार्टी में मुलायम सिंह की ऊंचाई की वजह से छोटा नहीं था जिसे बाद में कतरने में राम गोपाल ने चाणक्य की भूमिका निभाई।

 

अखिलेश से बढ़े विवाद के बाद जब शिवपाल अकेले पड़ गए तो अपने सियासी वजूद को बचाने के लिए दूसरी पार्टी बना डाली। नई पार्टी को भी उन्होंने मुलायम सिंह यादव को ही समर्पित किया। हालांकि मुलायम कभी भी शिवपाल के समर्थन में खुलकर सामने नहीं आए। भाई के साथ स्नेह पर पुत्र-प्रेम हावी रहा। शिवपाल के सियासी मंच पर मुलायम सिंह समाजवादी पार्टी को जिताने की अपील कर गए।

 

नई पार्टी बनाने के बाद शिवपाल आक्रमक कम और भावुक ज्यादा दिखे। उन्होंने सफाई देते हुए बार-बार कहा कि पार्टी में सम्मान न मिलने और उपेक्षा होने की वजह से ही उन्हें प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनानी पड़ी।

 

शिवपाल सिंह यादव पूछ रहे हैं कि मुलायम ने मायावती को बहन नहीं बनाया तो वो अखिलेश की बुआ कैसे हो गईं? शिवपाल ने ये भी कहा कि मुलायम सिंह को 'गुंडा' और समाजवादी पार्टी को 'गुंडों की पार्टी' कहने वाली मायावती के साथ अखिलेश का गठबंधन पिता और चाचा का अपमान है।

 

जाहिर तौर पर अखिलेश यादव से ये सारे सियासी सवाल शिवपाल यादव परिवार के पांच संसदीय क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के वक्त भी पूछेंगे। शिवपाल ने पहले अखिलेश पर निशाना साधा था कि जो बाप का नहीं वो किसी का क्या होगा तो अब वो इसी डायलॉग के जरिए एसपी-बीएसपी गठबंधन पर भी सवाल उठाएंगे।