मॉरिसस के प्रधानमंत्री अपनी पत्नी के साथ कुंभ मेले में आये और पवित्र डुबकी लगाई। उन्होंने ऋषि-मुनियों से मुलाकात भी की। साथ ही, उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सरकार वल्लभभाई पटेल की जीवनी पर स्थापित बीओसी की हाईटेक प्रदर्शनी भी देखी।इस बार के कुंभ को इसलिये भी ऐतिहासिक कहा जा सकता है क्योंकि यह पहली बार था जब कुल 24 करोड़ से अधिक लोगों ने कुंभ में आकर स्नान किया। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की ओर से जारी किये गये औपचारिक बयान के मुताबिक मकर सक्रांति, पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि सहित अनेक स्नान पर्वों पर कुल मिलाकर 24 करोड़ से अधिक लोगों ने प्रयागराज कुंभ में स्नान किये। कुंभ के इतिहास में पहली बार, मेले की पूरी अवधि के दौरान इतनी बड़ी अभूतपूर्व संख्या में श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। इतना ही नहीं बल्कि कुल तीन मामलों में इस कुंभ ने विश्व रिकार्ड भी बनाया। इस बार की साफ-सफाई को रिकार्ड में दर्ज में करते हुए गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में इसे स्थान दिया गया। इसके अलावा यातायात एवं भीड़ प्रबंधन तथा पेंट योर सिटी सरीखे मामलों में भी प्रयागराज कुंभ ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में सफलतापूर्वक दर्ज कराया। एक स्थान पर सबसे ज्यादा भीड़ एकत्र करने, सबसे बड़े स्वच्छता अभियान और सार्वजनिक स्थल पर सबसे बड़े चित्रकला कार्यक्रम के आयोजन के साथ प्रयागराज कुंभ मेला 2019 ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में शामिल करा लिया है। इसके लिए गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड की तीन सदस्यीय टीम ने प्रयागराज के कुंभ क्षेत्र का दौरा किया। उनकी उपस्थिति में 28 फरवरी से तीन मार्च के बीच चार दिन तक आयोजित हुई चित्रकला कार्यक्रम में काफी बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। इतनी बड़ी तादाद में एकत्र होकर चार दिनों तक लगातार चलाए गए ‘पेंट योर सिटी’ के अभियान को भी रिकार्ड में दर्ज किया गया। इसके अलावा 28 फरवरी को लगभग 503 शटल बसों की परेड हुई जिसने अलग ही रिकार्ड बनाया। साथ ही कुंभ की सफाई के लिए 10,000 कर्मियों ने योगदान दिया। इस दौरान सभी ने साथ-साथ ही अपनी ड्यूटी की। इन तीनों ही घटनाओं ने अनोखा विश्व रिकार्ड बनाया जिसे दर्ज करके इसका प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया गया है। हालांकि रिकार्ड बनाने के लिहाज से जो कार्यक्रम हुए वह मूल कार्यक्रम से अलग नहीं बल्कि उसका छोटा सा हिस्सा ही थे। वर्ना जिन 503 बसों की परेड को रिकार्ड में दर्ज किया गया उससे कई गुना अधिक बसें इस बार कुंभ तक लोगों को लाने में लगी रहीं। इसके अलावा स्वच्छता का ऐसा जोर था कि औपचारिक तौर पर सफाई कर्मी का काम करने के लिये नियुक्त किये गये लोगों से कई गुना अधिक लोगों ने इसके लिये स्वेच्छा से श्रमदान किया। साथ ही पेंट योर सिटी के जिस आयोजन को चार दिनों तक चलने के कारण रिकार्ड में दर्ज किया गया वह अभियान तो कुंभ के आयोजन से काफी पहले ही आरंभ हो गया था और उसी का नतीजा था कि पूरा प्रयागराज किसी चित्रकार के कैनवस पर उभरे मनमोहक चित्र की तरह सजा-धजा दिखाई दे रहा था। इसके अलावा भीड़ प्रबंधन का तो कहना ही क्या। पिछली बार इसी स्थान पर हुए कुंभ के दौरान रेलवे स्टेशन पर ऐसी अफरा तफरी मची की दर्जनों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। लेकिन इस बार रेलवे के बेहतरीन इंतजामों ने किसी को जरा भी परेशानी नहीं होने दी। देश के कोने-कोने से कुंभ स्पेशल गाड़िया चलीं। और लोगों ने भी धार्मिक श्रद्धा और उल्लास के साथ गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर बारिश और ठंडक को झेलते हुए बड़ी संख्या में आकर डुबकी लगाने का मौका हाथ से नहीं जाने दिया। प्रयागराज मेला प्राधिकरण के अनुसार महाशिवरात्रि के पवित्र अवसर पर कुंभ मेले के अंतिम दिन भी एक करोड़ 10 लाख से अधिक श्रद्धालुओं में त्रिवेणी में पवित्र डुबकी लगाई। मेला प्रशासन द्वारा किये गये इंतजामों पर नजर दौड़ाएं तो तीर्थ यात्रियों के लिए संगम और अन्य मेला क्षेत्रों में 8 किलोमीटर की लंबाई में 8 घाट बनाये किये थे। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 27 विशेष रेलगाडियां और हजारों बसें चलाई गई थीं। मेला क्षेत्र में और उसके आस-पास के क्षेत्रों में सुरक्षा का चाक-चैबंद प्रबंध था। यह मेला 3200 हैक्टेयर भूमि में फैला था और 20 क्षेत्रों में विभाजित था। विभिन्न क्षेत्रों को आपस में जोड़ने के लिए गंगा नदी पर 20 पीपा पुल बनाये गये थे। यानि सरकार की ओर से इस आयोजन को ऐतिहासिक तौर पर यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। इसमें केन्द्र और राज्य ने डबल इंजन की तरह अपनी जिम्मेवारी को निभाया। हालांकि विरोधी यह भी कह सकते हैं कि अर्धकुंभ होने के बावजूद 4200 करोड़ का भारी-भरकम बजट इसलिये खर्च किया गया क्योंकि इसका राजनीतिक लाभ लेने की मंशा थी। अगर चुनावी वर्ष नहीं होता तो इस पर इतना खर्च नहीं किया जाता। लेकिन कहनेवाले जो भी कहें मगर सच तो यही है कि इस आयोजन के माध्यम से भारत ने विश्व को दिखाया कि किस तरह 24 करोड़ लोगों की बड़ी भीड़ का आस्था व श्रद्धा के साथ प्रबंधन किया जा सकता है बल्कि स्वच्छता और सुरक्षा के मानदंडों को भी पूरा किया जा सकता है। सही मायने में इस कुंभ ने भारत की विश्व गुरू की छवि प्रस्तुत की है जिसे आने वाले कई वर्षों तक याद किया जाएगा।
भव्य-दिव्य व ऐतिहासिक कुंभ