एक बार फिर चीन ने भारत की एकता और अखडता को खंडित करने वाली ताकतों का साथ देकर अपने दूषित चाल, चरित्र और चेहरे को दुनियां के सामने जाहिर कर दिया है। हिंदी चीनी भाई भाई की दुहाई देने वाला चीन बार बार भारत के साथ विश्वासघात करने से बाज नहीं आरहा है। विश्व मंच पर भारत की तरक्की और प्रगति चीन को फूटी आंखे नहीं सुहाती है यह उसके आचरण से स्पष्ट है। भारत की आजादी के बाद से ही चीन लगातार भारत के साथ वैमनष्यता का बर्ताव रखता है यह किसी से छिपा नहीं है। पहले उसने भारत पर हमला किया और हमारी लाखों वर्ग किमी भूमि को दबाया। फिर लगातार सीमा पर अपनी घुसपैठ और मनमानी करता रहा। डोकलाम विवाद में मुंह की खाने के बाद चीन भारत को नीचा दिखाने का हर संभव प्रयास करता रहा है। भारत जैसे लोकतान्त्रिक और शांतिप्रिय देश की जगह उसे पाकिस्तान जैसा आतंकवादी देश ज्यादा पसंद है जहाँ वह अपनी मनमानी करने को स्वतंत्र है। जब तक चीन की सिट्टी पिट्टी गुम नहीं होगी तब तक वह अपनी गैरवाजिब हरकतों से बाज नहीं आएगा। इसके लिए जरुरी है वैश्विक शक्तियों की एकजुटता। ड्रैगन का मुकाबला करने के लिए सभी लोकतान्त्रिक शक्तियों को एक होकर उसका डरावना चेहरा सब को दिखाना होगा।
ताजा प्रकरण आतंकी मसूद मजहर से सम्बंधित है। पाकिस्तान से संचालित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की राह में चीन ने एक बार फिर अड़ंगा लगा दिया है। मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर फैसले से कुछ मिनट पहले चीन ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए प्रस्ताव पर रोक लगा दी। 2017 में भी चीन ने ऐसा ही किया था। बीते 10 साल में संयुक्त राष्ट्र में अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने का यह चैथा प्रस्ताव था जिस पर वीटो का प्रयोग कर चीन ने अपने इरादे जाहिर कर दिए।
चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने संबंधी प्रस्ताव पर बुधवार को तकनीकी रोक लगा दी और प्रस्ताव की पड़ताल करने के लिए और वक्त की मांग की। फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 अल कायदा प्रतिबंध समिति’ के तहत मसूद को आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव 27 फरवरी को पेश किया था। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमलावर ने सीआरपीएफ के काफिले पर हमला किया था, जिसमें 40 जवानों की मौत हो गई थी।
यह बिलकुल साफ है की चीन कभी भारत का हितैषी नहीं रहा है। वह गाहे बगाहे भारत की अस्मिता से छेड़छाड़ करता रहता है। भारत को वैश्विक और घरेलू स्तर पर चीन से निपटने के लिए अपनी नई नीति बनानी होगी। इस नीति में सबसे पहले चीनी सामान का बहिष्कार कर उसे आर्थिक झटका देना होगा। चीनी माल के बहिष्कार की मांग करने वाले लोगों का मानना होता है कि इससे चीन पर दबाव बनाया जा सकता है। अखिल भारतीय व्यापारी महासंघ ने चीनी सामान के बहिष्कार की अपील करते हुए कहा है की चीनी सामान का भारत एक बड़ा बाजार है जिसे बेदखल कर चीन की अर्थव्यवस्था को तकड़ा झटका दिया जा सकता है।
भारत और चीन के आपसी कारोबार पर नजर डालें तो पत्ता चलेगा 2017-18 में चीन के साथ व्यापार घाटा 63 अरब डॉलर का हो गया है जबकि पिछले साल यह 51 अरब डॉलर था। पिछले दस सालों के दौरान हमारा चीन को निर्यात महज 2.5 अरब डॉलर का बढ़ा है जबकि आयात 50 अरब डॉलर का। जहां 2013-14 में हमारे कुल आयात का 11.6 फीसदी चीन से होता था, 2017-18 में यह बढ़कर 20 फीसदी हो गया है। 2013-14 में चीन से आयात की विकास दर 9 फीसदी थी जो अब बढ़कर 20 फीसदी हो गई है। यह बहुत बड़ा अंतर है जिसे पाटना नामुमकिन है। आधे दशक में यह व्यापार घाटा छह गुना हो गया है। बताया जाता है की लाभ और घाटे के इस गणित के पीछे चीन सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी है जो चीन के उद्योगों को दी जाती है। भारत सरकार ने संसद में बताया कि चीन में बने उत्पाद को इसलिए सस्ता बताया जाता है क्योंकि चीन सरकार अपने देश में बने सामान पर अलग से सब्सिडी देती है और इसी वजह से उनका सामान सस्ता होजाता है।
अगर चीन के सामान का बहिष्कार करना है तो खुद के सामान को सस्ता बेचना होगा। उसे लोगों की पहुंच तक ले जाना होगा। लोग खुद-ब-खुद अपने घर का सामान खरीदना शुरू कर देंगे। दीया बनाने और फिर उसे बेचने में कितनी मुश्किलें हैं इसे सरल करना होगा और किसी भी थोक की दुकान से ज्यादा सामान खरीदकर छोटी दुकान में आसानी से बेचने के अंतर को अगर नहीं समझेंगे तो शायद ऐसे ही तुलना करेंगे जैसे कि अभी कर रहे हैं।