प्रत्येक बच्चे का अधिकार है टीकाकरण

राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस हर साल 16 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बाशिंदों को टीकाकरण के प्रति जागरूक करना है। हर माँ और बाप की यही चाहत रहती हैं की उसका बच्चा कभी बीमार ना हो और ऐसा तभी संभव हैं जब आपके बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होगी। टीकाकरण प्रत्येक बच्चों का अधिकार है। इससे शिशु मृत्यु दर में कमी आती है। किसी बीमारी के विरुद्ध प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित करने के लिये जो दवा खिलायी पिलायी या किसी अन्य रूप में दी जाती है उसे टीका कहते हैं। इसे ही हम बोलचाल की भाषा में टीकाकरण कहते है। भारत में ऐसी कई बीमारियां हैं, जिनका टीकाकरण अगर सही समय पर नहीं किया जाता है तो वो घातक बीमारी का रूप ले सकती हैं। जागरूकता ना होने की वजह से हमारे देश में बहुत से बच्चे और गर्भवती महिलाएं समय पर टीकाकरण नहीं करवा पाते हैं जो आगे जाकर इनकी सेहत के लिए जानलेवा साबित होता है। 


टीकाकरण कार्यक्रम के तहत 7 जानलेवा बीमारियों के टीके लगाए जाते हैं। इन बीमारियों में-तपेदिक , पोलियो , हेपेटाइटिस-बी , डिप्थीरिया , काली खांसी, टेटनस और खसरा शामिल हैं। कुछ राज्यों और जिलों में हीमोफिलस इनफ्लुएंजा टाइप बी और जापानी इन्सेफेलाइटिस के भी टीके लगाए जाते हैं। शिशु को खसरे के टीके के साथ विटामिन ए ड्रॉप्स भी ली जाती है। देश के कुछ चुने हुए शहरों में हेपेटाइटिस बी के टीके को भी इस कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया है।
भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने टीकाकरण के अंतर्गत बच्चों को सभी प्रकार के टीके लगें, इसके लिए मिशन इंद्रधनुष की शुरुआत की गयी है। इसके तहत तीन करोड़ 39 लाख से ज्यादा बच्चों और 87 लाख से ज्यादा महिलाओं को टीके लगाये जा चुके हैं। टीकाकरण कार्यक्रम को मजबूती प्रदान करने से शिशु मृत्यु दर वर्ष 2014 के 39 से घटकर 2017 में 32 प्रति हजार रह गयी है। इंद्रधनुष के सात रंगों को प्रदर्शित करने वाले इस मिशन का उद्देश्य देश के सभी बच्चों को 2020 तक टीकाकरण के दायरे में लाना है। हर साल देश में सामान्य टीकाकरण के नौ करोड़ सत्र होते हैं। इस काम को पूरा करने के लिए 27,000 कोल्ड चेन स्टोर की मदद ली जाती है। भारत में पूर्ण टीकाकरण की दिशा में राष्ट्रीय औसत 61 फीसदी है और डीपीटी-3 की कवरेज 72 प्रतिशत है। देश में जिन जिलों में डीपीटी-3 के मामले में कवरेज 80 फीसदी से कम है, उनकी संख्या कुल 601 में से 403 है। यानी 67 फीसदी जिलों में अभी कवरेज 80 फीसदी से कम है। भारत में उन बच्चों की संख्या सबसे बड़ी है, जिनका डीपीटी-3 के तहत टीकाकरण नहीं हुआ है। यह संख्या है 74 लाख।
हरेक राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस पर 17.2 करोड़ बच्चों को पोलियो का टीका दिया जाता है। भारत के पोलियो टीकाकरण अभियान के अंतर्गत हर साल 80 करोड़ बच्चों का पोलियो टीकाकरण होता है। देश के 13.5 करोड़ बच्चों को खसरे का दूसरा टीका सुनिश्चित करने के लिए तीन वर्षीय अभियान चलाया गया, जिसके तहत अकेले 2012-13 में सात करोड़ बच्चों को कवर किया गया।
भारत में हर साल 2.7 करोड़ बच्चे पैदा होते हैं। करीब 18.3 लाख बच्चे अपना पांचवां जन्मदिन मनाने से पहले ही मर जाते हैं। कम आय अर्जित करने वाले परिवारों के ज्यादातर बच्चे बीमारियों का शिकार होते हैं। भारत में रिकॉर्ड तौर पर 5 लाख बच्चे टीकाकरण से ठीक होने वाली बीमारियों के चलते हर साल दम तोड़ देते हैं। टीकाकरण से ठीक होने वाली बीमारियों के कारण बाल मृत्युदर सबसे अधिक है जबकि भारत के 30 फीसदी बच्चे हर साल पूर्ण टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक देशभर में 89 लाख बच्चों को या तो केवल कुछ ही टीके लग पाते या तो कई बिल्कुल ही इससे वंचित रह जाते हैं। भारत में प्रत्येक 3 बच्चों में एक बच्चा यूआईपी के तहत उपलब्ध पूर्ण टीकाकरण का लाभ नहीं ले पाता है। शहरी क्षेत्रों के पांच प्रतिशत जबकि ग्रामीण इलाकों में आठ प्रतिशत बच्चे टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं। भारत सरकार ने बाल मृत्यु रोकने के लिए सबसे कम लागत में प्रभावी टीकाकरण शुरू करने का कार्यक्रम चलाया है। भारत का व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम देश में सबसे बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों में से एक है जिसके तहत देश भर के 35 राज्यों में 27,000 वैक्सीन भंडारण इकाइयों के साथ एक व्यापक वैक्सीन वितरण प्रणाली काम कर रही है। पूर्ण टीकाकरण लाखों बच्चों को बीमारियों और उन्हें असमायिक मौत से बचाएगा। यह सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।