(बाल मुकुन्द ओझा )
चुनावी राजनीति में इन दिनों आपत्तिजनक और विवादित बयानों को लेकर हंगामा मचा हुआ है। सियासत में विवादास्पद बयान को नेता भले अपने पॉपुलर होने का जरिया मानें, लेकिन ऐसे बयान राजनीति की स्वस्थ परंपरा के लिए ठीक नहीं होते। चुनावी सीजन आते ही नेताओं की गंदी बात शुरू होजाती है। यह बेहद दुखद है कि पिछले कुछ सालों से भारत में राजनीतिक-वैचारिक पतन तो हुआ ही है, साथ ही राजनीति की भाषा स्तरहीन और गंदी हो गई है। हमारे माननीय नेता आजकल अक्सर ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। देश के नामी-गिरामी और उच्च पदों पर बैठे नेता भी मौके-बेमौके कुछ न कुछ ऐसा बोल ही देते हैं, जिसे सुनकर कान बंद करने का जी करता है। निश्चय ही नेताओं की बदजुबानी देश में कम होते जनतंत्र का लक्षण है। इस प्रवृत्ति को जल्द ही बदला नहीं गया तो देश गहरे संकट में पड़ सकता है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कई बार भाषाई मर्यादा भूल जाते हैं और ऐसा बयान झाड़ देते हैं जिसकी वजह से वो अक्सर निशाने पर आ जाते हैं । ताजा मामला लाल कृष्ण आडवाणी को लेकर दिए उनके बयान का है। कांग्रेस के दोहरे चरित्र का एक बार फिर बीच बाजार भंडाफोड़ हो गया है। कल तक भाजपा के लौह पुरुष एल के आडवाणी के पक्ष में कसीदे काढ़ने वाली कांग्रेस ने आज अपशब्दों का इस्तेमाल कर राजनीति के गिरते चरित्र का परिचय दिया है। भाजपा ने इस चुनाव में तय किया था की 75 वर्ष पार करने वाले नेताओं को लोकसभा का टिकिट नहीं दिया जायेगा। इस पर भाजपा के नेताओं ने कोई एतराज नहीं जताया अपितु कांग्रेस के नेताओं ने बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना का रोल निभाया। कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सीताराम केसरी का उदहारण हमारे सामने है जब कांग्रेस मुख्यालय से उन्हें घसीट कर निकला गया। आश्चर्य होता है वही कांग्रेस आज बुजुर्ग नेताओं के पक्ष में बयानवीर हो रही है। यहाँ तक तो ठीक था मगर कांग्रेस ने गंदे बोल बोलकर अपना सियासी चेहरा प्रकट कर दिया। आडवाणी के पक्ष में कई दिनों से मुखर रहने वाले और भाजपा पर बुजुर्ग नेताओं का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने आडवाणी को जूते मारकर स्टेज से नीचे उतारने और लात मारकर बाहर निकालने का बयान देकर निश्चय ही अपनी ओछी मानसिकता का परिचय दिया। इससे भी आगे बढ़कर एक अन्य कांग्रेसी नेता शकील अहमद ने आडवाणी पर विवादास्पद बयान देते हुए घृणा फैलाने का आरोप जड़ दिया।
यहाँ विस्मय की बात यह है की कल तक राहुल गाँधी आडवाणी को सम्मान देने की बात पर भाजपा पर हमलावर हो रहे थे और आज मर्यादाहीन बयान देकर आखिर क्या सन्देश देना चाहते है। राहुल के इस बयान पर केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पलटवार करते हुए आडवाणी को पितातुल्य बताया और कांग्रेस अध्यक्ष को मर्यादा में रहने की नसीहत दी। सुषमा ने कहा राहुल जी - अडवाणी जी हमारे पिता तुल्य हैं। आपके बयान ने हमें बहुत आहत किया है. कृपया भाषा की मर्यादा रखने की कोशिश करें।
सियासत में गंदे बोल की कहानी हालाँकि बहुत पुरानी है। मगर एक दिन सराहना के बोल बोलकर दूसरे दिन इज्जत की धज्जियाँ उड़ाना बेहद शर्मनाक है। इससे हमारी स्वयं की मानसिकता जाहिर होती है। कांग्रेस दूसरों पर कीचड उछाड़ने से पहले अपने गिरहबान झांककर देखने की जरुरत है। पूर्व प्रधान मंत्री नरसिंगराव से उन्होंने कैसा व्यवहार किया था यह अभी कोई भुला नहीं होगा। लालकृष्ण आडवाणी कैसे है यह पूरा देश जानता है। उन्हें किसी सर्टिफिकेट की जरुरत नहीं है। उन्होंने हाल ही अपने एक बलाग में साफ लिखा है उनके लिए पहले देश ,फिर पार्टी और व्यक्ति विशेष है। उन्होंने यह भी लिखा है भाजपा अपने विरोधी को कभी देशद्रोही नहीं मानती है। आडवाणी के इस प्रकार के बयान निश्चय ही गरिमा लिए हुए है। उन्होंने यह भी कहा है पार्टी ने उन्हें फर्श से अर्श तक पहुँचाया है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आडवाणी के बयान की प्रशंसा की। आडवाणी को जानने वाले जानते है वे कभी गंदे बोल नहीं बोलते। व्यर्थ के बयान भी जारी नहीं करते और सदा अपनी बात मर्यादा में रह कर करते है। ऐसे नेता के विरुद्ध ओछे बोल हमारी गिरती सियासत के प्रतीक है जिस पर जनता को संज्ञान लेना चाहिए।