अगर ये सभी चुनाव लड़ रहे होते तो इनकी जीत के प्रति तो निश्चिंत हुआ ही जा सकता था। यानि इनके नहीं लड़ने से तात्कालिक नुकसान की संभावना तो मौजूदा निजाम को ही है जिसके लिये इस बार के चुनाव में हर एक सीट बेहद ही महत्वपूर्ण है। मोदी-शाह की जोड़ी ने तो इस बार के चुनाव में यह व्यवस्था लागू करने की भी कोशिश की कि 75 वर्ष से अधिक उम्र वालों को केवल सत्ता या संगठन में जिम्मेवारी देने पर प्रतिबंध लगा रहने दिया जाए लेकिन उनके चुनाव लड़ने को प्रतिबंधित ना किया जाए। लेकिन शायद इस जुगल जोड़ी की बात को लेकर संघ व संगठन में आम सहमति नहीं बन सकी। सच तो यह है कि पार्टी के संस्थापकों व बुजुर्ग नेताओं को सत्ता व संगठन से अलग करने संबंधी फैसला लेने की हैसियत और क्षमता भी इन दोनों के पास नहीं है।
भले ही मौजूदा दौर में भारतीय राजनीति के आकाश में ये दोनों धूमकेतु की तरह चमक रहे हों लेकिन इन दोनों को भी पता है कि आखिरकार संगठन के सहयोग ने ही इन्हें यह चमक दी है और यह संगठन अगर इनको चमका-दमका सकता है तो किसी और को इनसे भी आगे ले जाना संगठन के लिये कोई बड़ी बात नहीं है। आज ये दोनों जैसे भी हैं वह संगठन के कारण ही हैं। लिहाजा इन्हें अपनी हैसियत और स्थिति का पता ना हो ऐसा होना तो संभव ही नहीं है। तभी तो इन दोनों के नेतृत्व में संचालित हो रही पार्टी अपनी ओर से सुमित्रा महाजन को टिकट से वंचित करने का फैसला नहीं ले पा रही थी। वह तो बाद में पार्टी का असमंजस दूर करने के लिये सुमित्रा ने खुद ही ऐलान कर दिया कि वे इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी। उनके इस ऐलान के पीछे सांगठनिक अनुशासन के अनुपालन और मर्यादा की रक्षा का दबाव ही था। रहा सवाल आडवाणी का तो उन्हें 2009 के चुनाव में ही बता दिया गया था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा। लेकिन अंतिम समय तक सत्ता का मोह छोड़ना आडवाणी को गवारा नहीं हुआ लिहाजा पार्टी को मजबूर उन्हें 2014 में लोकसभा का टिकट देना पड़ा। लेकिन इस बार भी जब आडवाणी ने अपनी ओर से राजनीति से सन्यास का ऐलान करने की पहल नहीं की तो विवश होकर पार्टी को उन्हें टिकट से वंचित करना पड़ा। वैसे भी संस्थापक बुजुर्गों को अगर मोदी-शाह की जोड़ी ने अपनी मनमानी नीति के तहत दूध में पड़ी मक्खी की तरह सत्ता व संगठन से निकाल फेंकने की जुर्रत की होती तो संघ से लेकर संगठन तक में विद्रोह और बगावत का कितना भयानक ज्वालामुखी सुगल उठा होता इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। लेकिन किसी दूसरे के कुछ बोलने की बात तो दूर रही अलबत्ता जिनका टिकट कटा है और जिन्हें किनारे लगाया गया है वे भी अपना विरोध दर्ज नहीं करवा पा रहा हैं तो इसकी इकलौती वजह यही है कि इन मामलों में मोदी-शाह की कोई भूमिका ही नहीं है।
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