कश्मीर को लेकर बातचीत की बात तो तब पैदा होती है जब इसे दोनों देशों के बीच का मुद्दा या मसला माना जाए। सच तो यह है कि पूरा कश्मीर सिर्फ भारत का ही है जिस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा किया हुआ है। लिहाजा भारत में सरकार चाहे किसी की भी हो मगर बात होगी तो सिर्फ गुलाम कश्मीर से पाकिस्तान का कब्जा हटवाने के मसले पर ही होगी। यानि अगर इमरान ने यह उम्मीद पाली हुई है कि भविष्य में वे कश्मीर मुद्दे को बातचीत से हल कर लेंगे तो उन्हें सबसे पहले यही बात समझ लेनी चाहिये कि भारत के लिये कश्मीर कोई मसला या मुद्दा नहीं है जिस पर पाकिस्तान के साथ कोई समझौता किया जाएगा। भारत की कोई भी सरकार पाकिस्तान के साथ कश्मीर के मसले पर इस बात के अलावा कोई समझौता कभी कर ही नहीं सकती है कि गुलाम कश्मीर से पाकिस्तान अपना कब्जा हटा ले। जाहिर तौर पर इमरान यह समझौता बातचीत से तो कतई नहीं करेंगे। लिहाजा बेहतर होगा कि कश्मीर का राग आलापना बंद कर दें और कोशिश करेें कि कश्मीर की बात को अलग रखते हुए बाकी मसलों को आपस में मिल बैठ कर सुलझा लिया जाए। सुलझाने के लिये दोनों मुल्कों के बीच बहुत सारे मसले हैं। मसलन सबसे बड़ा मसला तो आतंकवाद का ही है जिसको लेकर इमरान ही नहीं बल्कि पाकिस्तान का निजाम और आवाम भी इमानदार नहीं है। अगर इमरान आतंक के मसले को लेकर इमानदार होते तो सवाल ही नहीं था कि पाकिस्तान की जमीन से भारत के खिलाफ कोई षड़यंत्र कामयाब हो पाता। लेकिन सीधी जंग में चार दफा पिटाई खाने के बाद अब पाकिस्तान में जंग करने का हौसला तो बचा नहीं है लिहाजा वह भारत को नुकसान पहुंचाने की चाहत रखनेवाले दहशतगर्दों के कांधे पर रखकर बंदूक चलाने की नीति पर अमल कर रहा है। इसी प्रकार नदी-जल बंटवारे का मसला है।
करतारपुर और शारदापीठ का पेंच है। व्यापार से जुड़े मुद्दे हैं। ऐसे तमाम मसले हैं जिन्हें दोनों मुल्कों को आपस में मिल बैठकर तय करने की जरूरत है। इस सबमें कश्मीर का तो कोई मसला ही नहीं है। बेहतर होगा कि पाकिस्तान वहां यथास्थिति को बरकरार रखते हुए नियंत्रण रेखा का सम्मान करे और उसका उल्लंघन करने की कोशिशों व खुराफातों से परहेज बरते। दूसरी ओर इमरान का यह कहना भी निहायत ही बेवकूफाना है कि अगर भारत में अगली सरकार कांग्रेस की बनती है तो वह पाकिस्तान के साथ बेघड़क समझौता करने में भयभीत हो सकती है। सच तो यह है कि पाकिस्तान के साथ भारत की कोई भी सरकार कतई बेधड़क होकर कोई भी समझौता नहीं कर सकती है। अब तक जितनी बार भी भारत की ओर से दोस्ती की कोशिश की गई, हर बार बदले में धोखा ही मिला। लिहाजा अब दोस्ती की आड़ में दुश्मनी निकालने का मौका पाकिस्तान को हर्गिज नहीं दिया जा सकता है। दूसरी ओर कांग्रेस द्वारा कोई भी समझौता करने से परहेज बरते जाने की जो आशंका इमरान ने जताई है उसके पीछे अगर उनका आशय कश्मीर को लेकर है तो यह बात उन्हें बेहतर पता होनी चाहिये कि कश्मीर पर भारत के हक को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ने के अलावा ना तो कांग्रेस के पास कोई दूसरा विकल्प है और ना ही भाजपा की मोदी सरकार के पास। रहा सवाल आतंक के मसले को लेकर तो इस मामले में भी सरकार किसी की भी क्यों ना हो लेकिन पाकिस्तान को आतंकवाद फैलाने की इजाजत कोई कैसे दे सकता है। हालांकि भारत में दलगत राजनीति के तहत थोड़ी नरमी-गरमी की उम्मीद पाकिस्तान अवश्य रख सकता है लेकिन यह नरमी गरमी बाकी मसलों पर तो हो सकती है लेकिन कश्मीर और आतंकवाद के मसले पर होने की तो कोई संभावना ही नहीं है। सच तो यह है कि इमरान ने यह बेमानी बातें विदेशी मीडिया के समक्ष कही हैं और इस मौके पर उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान में सक्रिय सभी आतंकवादी संगठनों को खत्म करने के लिए वे पूरी तरह संकल्पित है। यानि इमरान की ये अहमकाना बातें सिर्फ दुनिया को सुनाने के लिये थीं ताकि वे यह जता सकें कि अगर भारत में मोदी सरकार की वापसी भी होती है तो उन्हें इसका कोई डर नहीं है। जबकि सच तो यह है कि पूरी दुनिया को यह पता है कि मोदी का खौफ किस कदर पाकिस्तान के सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसा नहीं होता तो वहां के प्रधानमंत्री अमेरिका के सामने भारत के साथ बातचीत शुरू कराने के लिये कतई नहीं गिड़गिड़ाते और वहां के विदेश मंत्री भारत की ओर से होनेवाले संभावित हमले की दुहाई देकर हाय-तौबा नहीं मचा रहे होते जिसका कोई आधार ही नहीं है।