लेकिन इस घटना के एक सौ साल पूरा होने के मौके पर ब्रिटेन की संसद में इस बात की मांग उठी कि उस घटना पर एक बार चर्चा कराई जाए और उसके लिये औपचारिक तौर पर माफी मांगी जाए। हाउस ऑफ लॉर्ड्स के निचले सदन में ‘अमृतसर नरसंहार- शताब्दी’ के नाम से हुई चर्चा के दौरान ब्रिटिश मंत्री एनाबेल गोल्डी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकार ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के 100 साल पूरे होने के मौके को यथोचित व सम्मानित तरीके से याद किए जाने की योजना बनाई है। कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमैन द्वारा इसपर बहस कराई गई जिसमें हाउस ऑफ कॉमंस परिसर के वेस्टमिंस्टर हॉल में आयोजित बहस के दौरान ब्रिटिश विदेश मंत्री मार्क फील्ड ने कहा कि हमें उन बातों की एक सीमा रेखा खींचनी होगी जो इतिहास का ‘शर्मनाक हिस्सा’ हैं। ब्रिटिश राज से संबंधित समस्याओं के लिए बार-बार माफी मांगने से अपनी तरह की दिक्कतें सामने आती हैं। फील्ड ने कहा कि वह ब्रिटेन के औपनिवेशिक काल को लेकर थोड़े पुरातनपंथी हैं और उन्हें बीत चुकी बातों पर माफी मांगने को लेकर हिचकिचाहट होती है। उन्होंने कहा कि किसी भी सरकार के लिए यह चिंता की बात हो सकती है कि वह माफी मांगे। इसकी वजह यह भी हो सकती माफी मांगने में वित्तीय मुश्किलें हो सकती हैं। फील्ड ने कहा कि अगर हम माफी मांगते हैं तो कई घटनाओं के लिए मांगनी होगी। इससे मुद्रा भी गिर सकती है। यानि बीती बातों को लेकर ब्रिटेन को अफसोस तो है मगर उसे इस बात की चिंता अधिक है कि कहीं माफी मांगने से उसकी मुद्रा ना गिर जाए और उसे आर्थिक नुकसान ना झेलना पड़े। ऐसे में बीच का रास्ता निकालते हुए ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने संसद में औपचारिक तौर पर अफसोस जाहिर करते हुए यहां तक कहा कि हमें गहरा अफसोस है कि यह दुखद घटना हुई। जलियांवाला बाग नरसंहार पर दुख जताते हुए टेरेसा मे ने इसे ब्रिटेन-भारत इतिहास का शर्मनाक धब्बा भी बताया और यहां तक कहा, ”हमें अफसोस है जो कुछ हुआ और जिसकी वजह से लोगों को त्रासदी का सामना करना पड़ा।” थेरेसा मे ने कहा, ”1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार ब्रिटिश भारतीय इतिहास का शर्मनाक धब्बा है। जैसा कि महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 1997 में जलियांवाला बाग जाने से पहले कहा था कि यह भारत के साथ हमारे अतीत के इतिहास का दुखद उदाहरण है।” लेकिन खुल कर माफी मांगने से मे ने परहेज बरत लिया। हालांकि यह भी सच है कि औपचारिक माफी मांगकर ब्रिटेन उस जख्म को भर नहीं सकता लेकिन इससे मरहम तो लग ही सकता है। निश्चित ही आज नहीं तो कल ब्रिटेन को इसके लिये माफी मांगनी ही होगी वर्ना दोनों देशों के आपसी रिश्तों में एक खटास और दर्द भरी दूरी का माहौल बना ही रहेगा। |
जलियांवाला बाग की ज्वाला