*कहो कोई कैसे मुस्काये*
(आभा चौधरी)
तप्त हृदय हो
अभिशप्त समय हो
उस पर हर दिन
स्याह अचल हो
कहो कोई कैसे मुस्काये...
पंछी बेघर
पंख हो जर्जर
अंधड़ उड़ाए
सारे तरु वर
कहो कोई कैसे मुस्काये...
शहर बेगाना
पथ अनजाना
मुश्किल गांव को
वापस जाना
कहो कोई कैसे मुस्काये...
अजब देश ये
गजब वेश ये
मुखौटों में
छुपे लोग ये
कहो कोई कैसे मुस्काये...
अपनी साँसें
नहीं हाथ में
अंतर्मन यूँ
बिखरा जाये
कहो कोई कैसे मुस्काये....
तुम भी मुझे
दगा ही दोगे
जब ये बात
समझ आ जाए
कहो कोई कैसे मुस्काये...