भाजपा ने आज अपना संकल्प पत्र जारी कर दिया। हालांकि इसमें पार्टी ने तमाम उन मसलों को छूने की कोशिश की है जिससे समाज के सभी वर्गों का किसी ना किसी रूप में सरोकार हो। समाज से लेकर राष्ट्र तक और व्यक्ति से लेकर समष्टि तक के मसलों को इसमें छुआ गया है। आम आदमी की रोजी-रोटी की भी चिंता की गई है और भारत को संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता दिलाने की बात भी कही गई है। वास्तव में देखा जाये तो केन्द्र में दोबारा सरकार बनाने की जद्दोजहद में जुटी भाजपा ने संकल्प पत्र के नाम से लोकसभा चुनाव के लिए अपना जो घोषणापत्र जारी किया है वह वास्तव में ‘उम्मीदों’ का घोषणापत्र ही है। उम्मीदें सबको बंधाई गई हैं। भगवान राम से लेकर आम आवाम तक को। सरहद पर तैनात जवान से लेकर खेत में काम करने वाले किसान तक को। बुजुर्ग से लेकर नौजवान तक को। यहां तक कि लिंग निरपेक्ष इंसान तक को भाजपा ने सुनहरे भविष्य की उम्मीदें बंधाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक ओर राष्ट्रावाद के ज्वार और भावनात्मक मसलों के उभार को आगे बढ़ाने का प्रयास किया गया है तो दूसरी ओर विकास की बयार और भावी लक्ष्यों की तेज बौछार से सराबोर करने का भी भरसक प्रयास किया गया है। लेकिन इस बहुआयामी प्रयास को समग्रता में समझते हुए अगर पचास पन्नों के संकल्प पत्र में दर्ज आजादी की 75वीं वर्षगांठ के लिये तय किये गये 75 लक्ष्यों को तथ्यात्मक तौर पर जांचा-परखा जाये तो यह काफी हद तक असीमित सपनों को साकार करने के लिये भागीरथ प्रयास करने के ऐसे संकल्प को प्रदर्शित करता है जिस पर तभी यकीन किया जा सकता है जब यह मान लिया जाए कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’।
हालांकि ‘काम करे जो, उम्मीद उसी से हो’ के नारे को विस्तार देने के क्रम में हर संभावित लक्ष्य के पीछे घोषणा पत्र में यह तथ्य भी परोसा गया है इस दिशा में बीते पांच सालों में क्या पहलकदमी हो चुकी है। लेकिन बीते पांच सालों को आधार बनाकर भविष्य के लिये जो तस्वीर उकेरी गई है उसके बारे में पक्के तौर पर यह कहना बेहद मुश्किल है कि वाकई यह तस्वीर सुनहरी है या ‘श्याम-श्वेत’ तस्वीर को नए सुनहरे चश्मे से दिखाने की कोशिश हुई है। दरअसल पूरे घोषणा पत्र में गिनी-चुनी जगहों पर ही ठोस बातें कही गईं है जिसे यथारूप में भाजपा के वायदे के तौर पर देखा जा सकता है। मसलन देश की कुल आबादी में गरीबों की तादाद को इकाई के फीसद में लाने, 2022 तक हर गरीब को पक्का मकान दिलाने, 2025 तक पांच लाख करोड़ डॉलर की और 2030 तक 10 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाकर देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनाने, जम्मू-कश्मीर से धारा 35ए हटाने, 2024 तक बुनियादी ढ़ांचा क्षेत्र में 100 लाख करोड़ का पूंजीगत निवेश करने, 2024 तक एमएसएमई क्षेत्र को एक लाख करोड़ का कर्ज आवंटित करने, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के दायरे में सभी किसानो को लाने, वर्ष 2022 तक दस हजार नए किसान उत्पादक संगठनों के गठन को प्रोत्साहन देने, राष्ट्रीय व्यापारी कल्याण बोर्ड की स्थापना व खुदरा व्यापार के लिये राष्ट्रीय नीति बनाने, जीएसटी के तहत पंजीकृत व्यापारियों को 10 लाख का दुर्घटना बीमा देने, उद्यमियों को बिना सिक्योरिटी के 50 लाख तक का कर्ज मुहैया कराने, पड़ोसी देशों में प्रताड़ित हो रहे धार्मिक अल्पसंख्यकों (हिन्दू, जैन, बौध और सिख) के संरक्षण के लिये सिटिजन अमेंडमेंट बिल लागू कर उन्हें भारत की नागरिकता मुहैया कराने, वर्ष 2024 तक हर परिवार को नल से जल की सुविधा मुहैया कराने, 60 हजार किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने, 100 नए हवाई अड्डों का परिचालन आरंभ करने, 400 रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण व पचास शहरों में मेट्रो परिचालन आरंभ करने और देश के सभी 100 फीसदी गांवों को ग्रामीण सड़कों से जोड़ने सरीखी बातें ऐसी हैं जिसके बारे में ठोस तौर पर सीधी, सपाट व स्पष्ट बात कही गई है।
लेकिन इससे इतर अधिकतर बातों को गोल-मोल तरीके से ही प्रस्तुत किया गया है जिसके बारे में आशा करनी होगी कि ‘मोदी है तो मुमकिन है।’ मसलन राष्ट्रवाद व भावनात्मकता को उफान पर लाने के लिये मंदिर मसले को भी छुआ गया है और धारा 370 की बात भी कही गई है लेकिन ना तो साफ शब्दों में यह ऐलान किया गया है कि अमुक तारीख तक पक्के तौर पर अयोध्या की विवादित जमीन पर भगवान राम का मंदिर बन जाएगा और ना ही धारा 35ए की तर्ज पर अनुच्छेद 370 को जम्मू कश्मीर से रद्द किये जाने की सीधी सपाट बात कही गई है। इसी प्रकार छोटे व सीमांत किसानों और खुदरा व्यापारियों को 60 साल की उम्र के बाद पेंशन देने की बात तो कही गई है लेकिन कब से व कितना दिया जाएगा यह साफ नहीं किया गया है। एक बार फिर कहा गया है कि विदेशी खातों में जमा काला धन वापस लाया जाएगा और भगोड़े अपराधियों पर शिकंजा कसा जाएगा लेकिन कहां से कितना धन आएगा यह साफ नहीं है। इसी प्रकार एक साथ चुनाव की बात कही गई है लेकिन यह कब तक होगा इसकी कोई समय सीमा नहीं दी गई है। कहा गया है कि रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा लेकिन उस दिशा में पहलकदमी के तौर पर सिर्फ अमेठी में लगाए गए एके-203 राईफल प्लांट का उदाहरण दिया गया है। यानि ऊंट के मूंह में जीरा डालकर उसका पेट पूरा भरने की आस बंधाई गई है। समान नागरिक संहिता के मूल मुद्दे को तीन तलाक और निकाह हलाला तक में समेट दिया है और गऊ हत्या की दिशा में झांका भी नहीं गया है। ऐसे किसी मुद्दे को ज्यादा तूल नहीं दिया गया है जिसके लिये भाजपा को अलग से जाना, माना और पहचाना जाता है। लेकिन कोई सीधे तौर पर यह इल्जाम भी नहीं लगा सकता कि उसने अपने मूल मुद्दों से किनारा कर लिया है। यानि कहने को सब कुछ कह दिया गया है और बचने के सारे रास्ते भी तलाश लिये गये हैं। इससे इतना तो साफ है कि पार्टी ने अपने कोर वोटर को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह किसी मुद्दे को भूली नहीं है जबकि नए मतदाताओं को यह समझाने का प्रयास किया गया है कि अब ये वह भाजपा नहीं है जिसकी पहचान के साथ गाय, गंगा और गोबर को जोड़कर उससे नाक-भौं सिकोड़ा जा सके। यानि उम्मीदों के इस घोषणापत्र में संतुलन और संयम का भरपूर परिचय दिया गया है और यह शगूफा भी कि ‘मोदी है तो मुमकिन है।’