(डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा)
सच ही कहा है कि समय बड़ा बलवान होता है। यह समय का ही परिणाम है कि एक समय बाॅलीबुड की शान समझा जाने वाला आरके स्टूडियों बिक गया है और बीते जमाने की तस्वीरों में या बाॅलिवुड के इतिहास की किताबों में ही आरके स्टूडियों को देखा या पढ़ा जा सकेगा। 70 साल से भी अधिक पुराने आरके स्टूडियों को गोदरेज इंडस्ट्रीज द्वारा खरीदे जाने के समाचार है। एक कयास के अनुसार आरके स्टूडियों का सौदा करीब 40 से 50 करोड़ के बीच माना जा रहा है। दरअसल 2017 में आरके स्टूडियों में लगी आग के बाद कपूर परिवार उभर ही नहीं पाया और फिर कपूर परिवार ने स्टूडियों को अंततः सबकी राय से बेचने का निर्णय कर ही लिया। 2017 में लगी आग में आरके स्टूडियों लगभर पूरी तरह नष्ट हो गया था। यही नहीं आरके स्टूडियों में रखे बेशकीमती और एतिहासिक धरोहर कास्टूम्स सहित सबकुछ जलकर राख हो गया। मशहूर सिने कलाकार और सिनेजगत के पहले शोमैन राज कपूर ने 1948 में आरके स्टूडियों की स्थापना की थी। करीब 2.20 एकड़ में फैले आरके स्टूडियों की 33000 वर्गफूट भूमि पर विस्तारित आरके स्टूडियों का स्थान अब लक्जरियस अपार्टमेंट और शाॅपिंग माॅल लेगा। इसके साथ ही आरके स्टूडियों इतिहास की बात रह जाएगा। आरके फिल्म्स की 90 फीसदी फिल्मेें आरके स्टूडियों की ही देन है। आरके स्टूडियों ने कई उतार-चढ़ाव देखें। यहां तक कि आरके स्टूडियों को गिरबी रखने की नोबत आई पर राजकपूर ने हिम्मत नहीं हारी। भारत और रुस में धूम मचा देने वाली आग जैसी फिल्म आरके स्टूडियों की ही देन है। आरके स्टूडियों ने आग, बरसात, श्री 420, संगम, बाॅबी, मेरा नाम जोकर, राम तेरी गंगा मेली जैसी अनेक यादगार फिल्में दी है। आरके स्टूडियों की होली भी अपनी अलग ही पहचान रखती थी। जानकारों के अनुसार आरके स्टूडियों में फिल्माया गया पहला सीन बरसात की रात का था जिसमें राजकपूर और नर्गिस के ड्रीम सीन फिल्माएं गए। यह अजीब संयोग रहा कि राजकपूर ने पहली फिल्म आग प्रस्तुत की पर वह बुरी तरह से पिट गई तो दूसरी फिल्म बरसात ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए। बरसात फिल्म की सफलता का ही परिणाम रहा कि राजकपूर ने आरके स्टूडियों का जो लोगो बनाया वह कोई और डिजाइन नहीं बल्कि बरसात फिल्म का एक सीन ही था। राजकपूर और आरके स्टूडियों फिल्मी दुनिया के पर्याय बने रहे। राजकपूर की फिल्मों ने देश दुनिया में अपनी पहचान बनाई और राजकपूर बाॅलीवुड के पहले शोमैन के रुप में सामने आए। साम्यवाद से प्रभावित राजकपूर की फिल्मों को विदेशों खासतौर से रुस में तहलका मचाया और भारत रुस को पास लाने में प्रमुख भूमिका भी निभाई। आवारा हूं जैसे गाने रुस सहित कई देशों के गैरहिन्दी भाषी लोगों की जुवान पर भी चढ़ गए। राजकपूर और आरके स्टूडियों का जादू लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा। आरके स्टूडियों ने बाॅलीवुड को अनेक मशहूर फिल्में दी। यहां पर अन्य निर्माता निर्देशकों की भी फिल्में फिल्माई जाती रही है। इसे अजीब संयोग ही कहा जाएगा कि राजकपूर के बेटे रणधीर कपूर ने प्रेम गं्रथ व आ अब लौट चले जैसी फिल्में यहां फिल्माई पर वह राजकपूर का इतिहास नहीं दोहरा सकी। आरके स्टूडियों में एशिया का सबसे बड़ा शूटिंग फ्लोर रहा है। यहां पर फिल्मों के साथ ही अनेक टीवी सीरियलों को भी फिल्मांकन हुआ है। पर समय के बदलाव और आग लगने के बाद इसे रिनोवेट कराना या संभाले रखना कपूर खानदान के बूते नहीं रहा और परिणामतः कपूर खानदान को इसे बेचने को मजबूर होना पड़ा है।
बदलती तकनीक और हालातों में आरके स्टूडियों ही नहीं फिल्मी दुनिया के अधिकांश जाने माने स्टूडियों बदहाली के शिकार हो गए हैं। चाहे वह कमाल अमरोही का स्टूडियों हो या फिल्मीस्तान या अन्य दूसरे। दरअसल जहां एक और तकनीक में जबरदस्त बदलाव आया है वहीं कम्प्यूटर ने दुनिया ही बदल कर रख दी है। कम्यूटर से एक से एक सीन तैयार कर लिए जाते हैं और उनकी लागत कम होने के साथ ही प्रभावशीलता भी बढ़ी है। ऐसे मेें अब फिल्म स्टूडियों अपनी यादों को समेटे हुए हैं और ना जान कब किस स्टूडियों का स्थान गगनचुंबी इमारते या शाॅपिंग माॅल लेलें। आखिर इनका रखरखाब भी मुश्किल भरा काम हो गया है। ऐसे में सरकार को आगे आने के साथ ही बाॅलीवुड के इतिहास को संग्रहित करते हुए एक संग्रहालय तो बनाना ही चाहिए जहां आरके स्टूडियों जैसे स्टूडियों की याद और इनकी हिन्दुस्तान के सीने जगत को दी गई देन से आने वाली पीढ़ी रुबरु हो सके।
अब आरके स्टूडियों केवल इतिहास की बात होने जा रहा है। देश के सिनेमाघर पहले ही इतिहास के पन्नों में समाने के साथ ही अब उनका स्थान मल्टीप्लेक्स सिनेमागृहों ने ले लिया है। हांलाकि यह सही ही कहा गया है कि जो समय के साथ नहीं बदलता वह अपनी पहचान खो ही देता है। हांलाकि टीवी चैनलों की भरमार और उनमें प्रसारित होने वाले सीरियलों के चलते स्टूडियों की मांग और संभावनाओं से नकारा नहीं जा सकता पर बदलते समय के अनुसार स्टूडियों को भी लागत कम और अधिक सुविधायुक्त बनाने के प्रयास करने होंगे जिससे अब जो भी स्टूडियों बचे हैं वे बीते जमाने की बात ना रहे। आज भले ही आरके स्टूडियों गोदरेज का हो गया हो पर सीने जगत में राजकपूर और आरके स्टूडियों को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।