छोटी उम्र में शादी घर की बरबादी


                                          (बाल मुकुन्द ओझा)


 अक्षय तृतीया या आखातीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। इस वर्ष आखातीज 7 मई को है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। इस दिन अबूझ सावे के कारण देशभर में हजारों की संख्या में विवाह होते है। मगर आखातीज का मतलब मनमानी नहीं है। लोग इस दिन अपनी कन्याओं का छोटी उम्र में विवाह कर देते है जो कानूनी दृष्टि से अपराध है। इस दिन बड़ी संख्या में विवाह होते हैं जिनमें बाल विवाह शामिल हैं। बाल विवाह का अर्थ है छोटी आयु में शादी। अर्थात् 21 वर्ष से कम आयु के लड़के और 18 वर्ष से कम आयु की लड़की का विवाह होना। भारत में बाल विवाह की प्रथा का अनादिकाल से प्रचलन है। लाख कोशिशों के बाद भी हम इस कुप्रथा को समाप्त नहीं कर पाये हैं। सभ्य समाज के मुंह पर यह एक तमाचा है। यह मानव जीवन की सबसे बड़ी और दुःखदाई त्रासदी है। बाल विवाह की यह सामाजिक बुराई हिन्दी और अहिन्दी दोनों राज्यों में समान रूप से प्रचलित है। विशेषकर राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और पं. बंगाल में इसका सर्वाधिक बोलबाला है। शिक्षित और अशिक्षित दोनों समाज इसमें शामिल हैं।
छोटी आयु में विवाह का मुख्य कारण अशिक्षा गरीबी है। अभिभावक गरीबी के कारण अपनी बेटी का जल्दी विवाह कर एक सामाजिक आलेख
दायित्व से निवृत्त होना चाहते हैं। नासमझी और अशिक्षित होने के कारण उन्हें यह ज्ञान नहीं है कि वे अपनी बेटी को एक अंधे कुंए की ओर धकेल रहे हैं जिसमें से वह ताउम्र नहीं निकल पायेगी। छोटी आयु में विवाह के कारण लड़की को गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ता है। खेलने-कूदने के दिनों में वह सेक्स की शुरूआती एवं प्रारम्भिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती रहती है। इसके अलावा बालिका वधु को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है। शारीरिक रूप से अपरिपक्वता के साथ-साथ उसे शिक्षा से भी वंचित होना पड़ता है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में बाल विवाह घोर दण्डात्मक अपराध माना गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 40 प्रतिशत विवाह भारत में होते हैं। इनमें 49 प्रतिशत लड़कियों के विवाह 18 वर्ष से कम आयु में हो जाते हैं। लिंग भेद और अशिक्षा को सबसे बड़ा कारण माना गया है। रा,  स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
बाल विवाह के समर्थक इसकेजस्थान सहित बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पं. बंगाल आदि राज्यों में स्थिति सर्वाधिक खराब है।
बाल विवाह आज भी ज्वलन्त समस्या के रूप में हमारे सामने है। यह अनादिकाल से चली आ रही है। सामाजिक मान्यता मिलने के कारण इसे बढ़ावा मिला। इसी कारण इस कुप्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया। अशिक्षा एवं अंधविश्वासी समाज ने इस कुप्रथा को अपना लिया। बाल विवाह को बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन भी माना गया है। जब तक बच्चे बालिग या समझदार न हो जायें और अपने भले-बुरे की पहचान के योग्य नहीं हो जायें तब तक बाल विवाह किसी भी स्थिति में नहीं किये जाने चाहिये। यह भी वैज्ञानिक परिणामों से स्पष्ट है कि बाल विवाह से अच्छे स्वास्थ्य पक्ष में अनेक कुतर्कों का सहारा लेकर समाज को गुमराह करने का कुत्सित प्रयास करते हैं। अनेक अभिभावक यह मानते हैं कि जल्दी विवाह से लड़कियों को यौन हिंसा से बचाया जा सकता है। सामाजिक चेतना के अभाव और कानून की शिथिलता के कारण निश्चय ही बाल विवाह की सामाजिक कुरीति को बढ़ावा पोषण, शिक्षा का अधिकार, खेलने-कूदने के अवसर हासिल नहीं होते। कच्ची उम्र में शादी होने से स्वास्थ्य एवं जननांगों पर खराब असर पड़ता है जिसे बच्चों को ताउम्र झेलना पड़ता है।
यह भी सही है कि छोटी उम्र में विवाह से लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा अधिक हानि उठानी पड़ती है। असुरक्षित यौन सम्बन्धों से उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप अनेक भीषण बीमारियों से ग्रस्त होना आम बात हो गई है। बाल विवाह के कारण बार-बार गर्भधारण और असमय गर्भपात का सामना करना पड़ता है। नवजात शिशु के भी अकाल मौत का शिकार होने का अन्देशा बना रहता है। कुपोषण एवं खून की कमी से मां और बच्चे केमिलता है। बाल विवाह को रोकने के लिए समाज में जन चेतना के प्रयास आवश्यक हैं। पिछले कुछ दशकों से इस दिशा में किये गये प्रयासों का असर देखने को मिला है। शिक्षित समाज ने इस सामाजिक बुराई को समझा है। मगर ग्रामीण तबका आज भी बाल विवाह का पक्षधर है। इस तबके को समझाने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद के जरिये बाल विवाह को रोकने के सभी सम्भव प्रयास करने होंगे। इसके लिए बुजुर्गों का सहयोग जरूरी है। आखातीज पर बड़े स्तर पर बाल विवाह होते हैं जिन्हें रोकने के लिए सामाजिक चेतना और सामूहिक सहभागिता जरूरी है।