दीन हीन मतिछिन्न कांग्रेस






कांग्रेस की मौजूदा राजनतिक परिस्थितियों में क्या स्थिति है वह किसी से छिपी तो नहीं है। बीते लोकसभा चुनाव में उसके टिकट पर इतने लोग भी जीत कर नहीं आए कि विपक्ष के नेता के पद पर वह अपनी दावेदारी जता सके। बाद में भी कांग्रेस को अपना मोबाइल ऐप इस वजह से डिलट करना पड़ा क्योंकि उसे तमाम मशक्कत के बावजूद 15 हजार लोगों ने भी अपने मोबाइल में जगह देने की जहमत नहीं उठाई। निश्चित तौर पर इसके पार्टी के कर्णधारों की रीति, नीति और बातचीत का तौर तरीका ही जिम्मेवार है वर्ना अपनी कमजोरी के लिये विरोधी के ताकतवर या लोकप्रिय होने की बात कहना काफी हद तक ऐसा ही है जैसे चुनावी हार के लिये ईवीएम की काल्पनिक गड़बड़ियों को दोषी ठहराना। हालांकि कांग्रेस इतना तो मान रही है कि अपने पूरे इतिहास में उसका सबसे खराब वक्त वर्ष 2014 के बाद से ही चल रहा है जो अनवरत जारी है। लेकिन कोई भी कांग्रेसी यह मानने के लिये कतई तैयार नहीं है कि उसकी अपनी ही बातों और हरकतों के कारण पार्टी को ऐसे दुर्दिन का सामना करना पड़ रहा है कि उसकी राजनीतिक हैसियत बकौल प्रियंका गांधी वाड्रा, महज 'चुनावी वोटकटवा' की बन कर रह गई है। सच पूछा जाए तो कांग्रेस को इतिहास के सबसे कठिन दिनों का सामना सिर्फ इसलिये नहीं करना पड़ रहा है क्योंकि उसके विरोधी बेहद मजबूत और लोकप्रिय हैं। बल्कि कांग्रेस की मौजूदा हालत के लिये पार्टी के शीर्ष नेताओं व रणनीतिकारों की रीति, नीति और बातचीत ही सीधे तौर पर जिम्मेवार है। वर्ना जिस कांग्रेस ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने में निर्णायक भूमिका निभाई हो, जिस कांग्रेस ने भारत के खिलाफ आंख उठाकर देखने की जुर्रत करने वाले मुल्क का हमेशा के लिये भूगोल बिगाड़ कर रख दिया हो, जिस कांग्रेस को गांधी, नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना आजाद से लेकर इंदिरा और राजीव तक ने अपने खून-पसीने से सींचा हो, उसी कांग्रेस के मौजूदा शीर्ष कर्णधार कहीं ऐसी भाषा में बात करें जिससे विश्व मंच पर पाकिस्तान का पक्ष मजबूत हो और भारत के हितों का बंटाधार होने की नौबत आए? वास्तव में देखा जाए तो भाजपा संगठन और मोदी सरकार को सवालों व आरोपों के कठघरे में खड़ा करने की कोशिश में कांग्रेस ने विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर देशहित को नुकसान पहुंचाने वाली भाषा में बोलने की जो राह पकड़ ली है, वह इससे कतई अपेक्षित नहीं है। बेशक कांग्रेसियों को यह खुशफहमी होगी कि विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों को लेकर मोदी सरकार पर सवालों की बौछार करने से धुर भाजपा विरोधी मतदाताओं का समर्थन हासिल हो जाएगा लेकिन अगर ऐसा होता तो मौजूदा राजनीति में राष्ट्रीय स्तर पर विकल्पहीनता की स्थिति हर्गिज दिखाई नहीं पड़ती। यानि ना तो कांग्रेस की बातें मतदाताओं को लुभा पा रही हैं और ना ही मतदाताओं की नब्ज पकड़ पाने में कांग्रेस के कर्णधारों को कामयाबी मिल पा रही है। आखिर कैसे भारत के मतदाता ऐसी बातों से सहमति जता सकते हैं जिससे पाकिस्तान को अपना भारत विरोधी एजेंडा आगे बढ़ाने में सहूलियत मिलती हो। दरअसल कांग्रेस को यह समझ ही नहीं आ रहा कि मोदी विरोध की राह कब और कैसे देश विरोधी मंजिल की ओर बढ़ जाती है। तभी तो कांग्रेसी भी मोदी सरकार पर ऐसे ही इल्जाम लगाते हैं जैसी बातें पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ प्रचारित की जाती हैं। मसलन उरी में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर में अंजाम दिये गये सर्जिकल स्ट्राइक को पाकिस्तान भी नकारता रहा और कांग्रेसी भी इसे सरकार का झूठ करार देते रहे। उस सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत पाकिस्तान भी मांगता रहा है और कांग्रेसी भी मांगते रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि पुलवामा में 14 फरवरी को सुरक्षा बलों के काफिले पर हुए आत्मघाती आतंकी हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविर को ध्वस्त किये जाने के मामले में भी कांग्रेस की भाषा वही रही जैसी बातें पाकिस्तान की ओर से कही जा रही थीं। मसलन चुनावी लाभ के लिये मोदी सरकार द्वारा सेना का इस्तेमाल किये जाने की बात पाकिस्तान भी कह रहा था और सेना के शौर्य का राजनीतिकरण किये जाने का आरोप कांग्रेस भी लगा रही थी। बालाकोट में आतंकियों को हुए जान-माल के नुकसान की बात को पाकिस्तान भी नकार रहा था और कांग्रेसी भी। यहां तक कि अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा जैश सरगना मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकियों की सूची में शामिल किये जाने के मसले पर भी भारत सरकार को इस सफलता का श्रेय देने से पाकिस्तान भी इनकार रहा है और कांग्रेस भी। भारत सरकार को चिढ़ाने व खिझाने के लिये मजबूती से इस बात का उल्लेख पाकिस्तान भी कर रहा है और कांग्रेस भी कर रही है कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के क्रम में पुलवामा हमले की बात तो संयुक्त राष्ट्र ने कही ही नहीं है। हालांकि, राजनीतिक लाभ के लिये मोदी सरकार को सवालों के कठघरे में खड़ा करने का तो कांग्रेस को पूरा अधिकार है लेकिन पाकिस्तान की बातें दोहरा कर विश्व मंच पर भारत का पक्ष कमजोर करने का समर्थन कैसे किया जाए? और ऐसे में अगर धुर मोदी विरोधी भी कांग्रेस के पक्ष में खड़े होने से परहेज बरतने लगें तो इसके लिये किसी अन्य को जिम्मेवार कैसे ठहराया जा सकता है? सच्चाई तो यह है कि ना तो अच्छे वक्त में भगवान किसी को अपने हाथ से मालपुआ खिलाते हैं और ना ही बुरे वक्त में लाठी लेकर उसके पीछे मारने के लिये दौड़ते हैं। बल्कि होता यह है कि अच्छे वक्त में इंसान की बुद्धि इतनी बेहतर रहती है कि उसके आस पास के लोग प्रसन्न होकर उसे मालपुआ खिलाते हैं और बुरे वक्त में उसकी बुद्धि ऐसी भ्रष्ट हो जाती है कि वही लोग उसे लाठियां लेकर खदेड़ते व दौड़ाते हैं। यानि वक्त अच्छा चल रहा है या बुरा इसका निर्णय अपने ही बुद्धि और विवेक से होता है। बुद्धि अच्छी होगी तो बातें और हरकतें लोगों को लुभाएंगी और बुद्धि खराब होगी तो बातों और हरकतों के कारण ही जूते पड़ेंगे। ऐसा ही हो रहा है कांग्रेस के साथ।