कार्यक्रम का शुभारंभ शशि पाण्डेय के मधुर कण्ठ से सरस्वती वन्दना का सस्वर वाचन से हुआ। कार्यक्रम में देश के विभिन्न प्रान्तों से आये हुए मनीषियों ने भारतीय समाज में किस प्रकार से प्रत्येक वर्ग का संवर्धन किया जा सकता है उस पर विचार विमर्श किया। इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विश्व विख्यात संस्कृत विद्वान् पद्मश्री डॉ रमाकांत शुक्ल ने प्राचीन और वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर प्रकाश डालते हुए सुधार हेतु समाधान प्रस्तुत किया। संत कबीरदास की बात करते हुए उन्होंने *भाती में भारतम्* गीत से सम्पूर्ण सभागार को मन्त्रमुग्ध कर दिया। मुख्य वक्ता सुजीत कुंतल भारत के उत्थान में समरसता,सद्भाव ,और शिक्षा साहित्य के माध्यम से *तमसोमय ज्योतिर्गमय* का मार्ग प्रस्तुत करते हुए ज्ञान की क्रांति लाने की बात कही। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डॉ आर डी पालीवाल ने शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किये। भदोही की डॉ कामिनी ने कहा कि बाल्यकाल से नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए। इस सभागार में देश के विभिन्न भागों से आये कवियों ने अपने कविता पाठ के माध्यम से देश में व्याप्त कुरीतियों और भ्रष्टाचार की ओर संकेत किया। हल्द्वानी से सौम्या दुआ, मेरठ से प्रदीप त्यागी, डॉ ईश्वरचन्द्र गंभीर, दिल्ली से संगीता शर्मा व आर एस अरोड़ा के कविता पाठ से सभागार करतल ध्वनि से ओत- प्रोत हो गया। विशिष्ट अतिथियों में -डॉ कामायनी शर्मा कानपुर, गोपाल तुलस्यान कानपुर,साध्वी हरिप्रिया हिमाचल से, विजयलक्ष्मी भट्टाचार्य दिल्ली से ,डॉ परमजीत कौर कानपुर, डॉ विदुषी शर्मा दिल्ली से ।
डॉ कामिनी वर्मा सहित देश के विख्यात साहित्यकारों व शिक्षाविदों को किया गया सम्मानित