इन हमलों की प्रारंभिक जांच में नेशनल तौहीद जमात नामक संगठन का नाम आ रहा है प्रारंभिक साक्ष्यों से भी ऐसा प्रतीत होता है उक्त संगठन ही इस घटना की जड़ है। लेकिन यहाँ हमारे देश भारत के लिए चिंता की बात यह है कि तमिलनाडु में इस संगठन की मौजूदगी है जो कि भविष्य में देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकता है भारत सरकार को इस संगठन की तत्काल बेहद बारीकी से ढंग से पड़ताल करवाना बहुत जरूरी है। साथ ही यह भी पड़ताल करना आवश्यक है कि आईएसआईएस की वास्तव में इन धमाकों व इस संगठन से रिश्तों की कोई भूमिका है क्या, और जड़ में जाकर यह भी देखना होगा कि आईएसआईएस की विचारधारा का असर इस संगठन पर कितना है, इसका सबका हमारी सुरक्षा व खूफिया ऐजेंसियों को बहुत ही बारीकी से पड़ताल करके सटीक आकलन करना होगा।
श्रीलंका में हुए इन बम धमाकों ने पिछ़ले 10 साल के लंबे समय से चले आ रहे शांति के दौर की धज्जियां उड़ा दी है। इसके साथ ही इस देश के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने के अंदर पसरा तनाव को भी विश्व समुदाय के सामने ला दिया है। श्रीलंका के यह भीषण आत्मघाती धमाके देश के उस हिंसक अतीत के दौर की यादें ताजा कर देते हैं, जब श्रीलंका के इतिहास में लगभग 25 वर्ष तक चले बहुत लम्बे जबरदस्त गृह युद्ध में 70,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। जिसके पश्चात वर्ष 2009 में श्रीलंका की सेना ने लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम (लिट्टे) को आखिरकार पराजित कर दिया था तब कही जाकर इस गृह युद्ध का अंत हुआ था तब से देश का माहौल बेहद अमनचैन शांति से चल रहा था और देश विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा था। जो कि भारत के संतोषजनक स्थिति थी।
हालांकि इन आत्मघाती धमाकों से बुरी तरह दहली श्रीलंका सरकार ने तत्काल ही कानून व्यवस्था व स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए तमाम प्रभावी कदम उठाए हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन ने इन धमाकों की जांच के लिए तीन सदस्यीय पैनल गठित कर दिया है। इसके अलावा उन्होंने तत्काल ही पुलिस एवं सुरक्षा बलों को लोगों को हिरासत में लेने और पूछताछ करने के लिए अतिरिक्त ताकत प्रदान की है और सरकार ने अस्थायी रूप से फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत तमाम सोशल मीडिया पर भी पाबंदी लगा दी थी। इस मामले की प्रारंभिक जांच में श्रीलंका सरकार ने नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) नामक एक नामालूम से कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन को इन हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया है। यह संगठन पिछ़ले वर्ष ही बौद्य मठों में मूर्तियों में तोड़-फोड़ करके चर्चा में आया था, लेकिन इस तरह के व्यापक हमलों का इसका कोई अतीत नहीं है। फिलहाल यही अंदाजा लगाया जा रहा है कि इन हमलों के लिए एनटीजे को वैश्विक स्तर पर आतंकवादी नेटवर्क से सहयोग मिला। हालांकि ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इन हमलों में मारे जाने वाले सभी आत्मघाती हमलावर श्रीलंका के ही नागरिक हैं। लेकिन इस तरह के सुनियोजित और समन्वित बेहद कारगर हमलों के बारे में यह तो मानना ही पड़ेगा कि बिना किसी बाहरी मदद के इस तरह के हमले किए जाना संभव नहीं है। इसलिए सुरक्षा ऐजेंसियों ने शक जाहिर किया है कि इन धमाकों के पीछे आईएसआईएस का हाथ हो सकता है। इसके पीछे सबसे बड़ा तर्क यह है कि सीरिया और ईराक में आईएसआईएस की तरफ से लड़ने वाले तकरीबन 100 श्रीलंकाई लड़ाके मौजूद हैं। इस तथ्य से ही इस शंका को बल मिलता है कि इन हमलों में आईएसआईएस का हाथ हो सकता है। जो कि श्रीलंका के साथ ही भारत की सुरक्षा के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती है।
सबसे बड़ी अफसोस की बात यह है कि श्रीलंका में राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के बीच मतभेदों के चलते इन हमलों के बारे में दी गयी सूचना पर कारगर कार्यवाही ना होना है। यह हमले श्रीलंका की सरकार व उसके खुफिया तंत्र की बहुत ही गंभीर विफलता है। इन हमलों से 10 दिन पहले श्रीलंका की सुरक्षा एजेंसियों को इस बाबत चेतावनी जारी दी गई थी कि एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन चर्चों पर आत्मघाती हमले की तैयारी कर रहा है। लेकिन इस चेतावनी पर राजनैतिक मतभेदों के चलते कोई कार्रवाई नहीं हुई। यही नहीं हमलों से एक दिन पहले भी यह चेतावनी दोहराई गई थी। भारत की तरफ से भी इस खतरे के बारे में श्रीलंका को बार-बार आगाह किया जा रहा था। लेकिन उसके बाद भी वहाँ की सरकार ने कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया। अभी तक जो नजर आता है, यह एक रणनीतिक विफलता है। इस गंभीर संकट की स्थिति में श्रीलंका का संस्थागत ढांचा पूरी तरह नदारद है। अगर एनटीजे के इस हमले में शामिल होने की बात सही है, तो यह श्रीलंका सरकार की और भी बड़ी रणनीतिक चूक है कि एक छोटे से संगठन से यह इतना बड़ा खतरा बन गया और इसकी किसी को भनक तक नहीं लगी।
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने स्पष्ट कर दिया है कि न तो उन्हें और न ही उनके किसी कैबिनेट सहयोगी को इस तरह के हमलों के बारे में खूफिया चेतावनी की कोई भी जानकारी राष्ट्रपति के द्वारा दी गई। इससे नजर आता है कि देश के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और उनके बीच चल रहा सत्ता संघर्ष में किस हद तक जा चुका है। राष्ट्रपति देश के रक्षा मंत्री भी हैं और सभी खुफिया एजेंसियां उन्हें ही रिपोर्ट करती हैं। श्रीलंका जैसे-जैसे चुनाव के नजदीक जाएगा, सिरिसेना और विक्रमसिंघें के बीच तनाव और गहरा होता जाएगा। राजपक्षे खेमा सिरिसेना को हटाकर उनकी जगह लेने के लिए इंतजार में है। यह खेमा इस बात को पूरी मजबूती के साथ उछालेगा कि तमिल विद्रोह (लिट्टे) से राजपक्षे किस तरह सफलतापूर्वक निपटे थे। भारत को ध्यान रखना होगा कि पड़ोसी देश के यह सब मनमुटाव भरे राजनैतिक उथलपुथल वाले हालात भारत के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती हो सकते है। इसलिए उसको लगातार इन हालातों पर नजर बना कर रखनी होगी और किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।
श्री लंका में हुए सीरियल बम धमाकों के बाद से ही देश के हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं। जहाँ एक तरफ मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ सुरक्षाबलों की तरफ से लगातार बहुत सख्त कार्रवाई की जा रही है तो अब वहीं देश में मुस्लिम विरोधी दंगे भी भड़क गए हैं। स्थिति को नियंत्रण में करने के उद्देश्य श्रीलंका सरकार ने सोमवार को पूरे देश में 6 घंटे के लिए रात का कर्फ्यू लागू करने की घोषणा की है। पुलिस के अनुसार राजधानी कोलंबो के ठीक उत्तर में कई जिलों में मुस्लिम विरोधी दंगे भड़क गए हैं। जिसके बाद शुरू में तीन जिलों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया था। हालांकि कुछ समय बाद पुलिस ने एक बयान में पूरे देश में कर्फ्यू लागू करने की घोषणा कर दी। यहाँ आपको यह बता दें कि जब से ईस्टर संडे धमाकों में स्थानीय मुस्लिम कट्टरपंथियों के शामिल होने का आरोप लगा है। तब से मुसलमानों और बहुसंख्यक सिंहली समुदायों के बीच हिंसा की छुटपुट घटनाओं का दौर शुरू हो गया था जिसके बाद अब फिर से श्रीलंका में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया है।
श्रीलंका दो करोड़ 14 लाख आबादी वाला देश है इस आबादी में ईसाई समुदाय दस प्रतिशत से भी कम है। यह अल्पसंख्यक समुदाय ही इन आत्मघाती आतंकी हमलों का मुख्य निशाना था। जिसके बाद श्रीलंका के हालात बहुत तेजी से पल-पल बदले है और हाल के दिनों में श्रीलंका में बहुत तेजी से सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है। लेकिन अब वैश्विक घटनाक्रम और श्रीलंका के स्थानीय घटनाक्रम टकराव पर अपना असर दिखा रहे है।
श्रीलंका के यह हालात भारत की सुरक्षा के लिए भी एक बहुत बड़ी गम्भीर चुनौती है। क्योंकि आजकल भारत में भी धार्मिक कट्टरपंथी बहुत हो गये भारत सरकार को उन पर लगातार पैनी नजर रखनी होगी। साथ ही अगर नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) वास्तव में ही इस आतंकी हमले की जड़ है, तो भारत सरकार को तमिलनाडु में इसकी मौजूदगी पर लगातार बहुत ही बारीकी नजर रखते हुए जांचना करना जरूरी होगा कि इस संगठन की गतिविधि संदिग्ध तो नहीं है। अगर इस हमले में आईएसआईएस ने वास्तव में कोई भूमिका निभाई है, तो आईएसआईएस के समाप्त होने के बावजूद उसकी विचारधारा के प्रचार, प्रसार व प्रभाव का भी आकलन भी भारत सरकार को करना होगा। भारत को इस आतंक की बेहद खतरनाक प्रवृत्ति से निपटने के लिए एक ठोस कारगर रवैया तैयार करना होगा जिसे कि आतंक के सौदागरों के हौसले को पस्त करके देश के आमजनमानस को सुरक्षित किया जा सके और कोई भी दुश्मन भारत को चुनौती ना दे सके।