संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पर अधारित(बाल मुकुन्द ओझा)
मोदी सरकार संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट पर खुश हो सकती है। इस रिपोर्ट में भारत में गरीबी विरुद्ध लड़ाई में भारत सरकार के प्रयासों की सराहना की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति से बड़ी संख्या में लोग गरीबी के दलदल से बाहर निकल आए हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006 से 2016 के बीच रेकॉर्ड 27.10 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। खाना पकाने के ईंधन, साफ-सफाई और पोषण जैसे क्षेत्रों में मजबूत सुधार के साथ बहुआयामी गरीबी सूचकांक वैल्यू में सबसे बड़ी गिरावट आई है। गरीबी के खिलाफ लड़ाई में यूपीए सरकार की प्रगति को भी रेखांकित किया जाना चाहिए क्योंकि 2006 से 2014 तक देश में यूपीए की सरकार कार्यरत थी।
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2019 नामक रिपोर्ट गुरुवार को जारी की गई । रिपोर्ट में 101 देशों में 1.3 अरब लोगों का अध्ययन किया गया। इसमें 31 न्यूनतम आय, 68 मध्यम आय और 2 उच्च आय वाले देश थे। विभिन्न पहलुओं के आधार पर ये लोग गरीबी में फंसे थे यानी गरीबी का आकलन सिर्फ आय के आधार पर नहीं बल्कि स्वास्थ्य की खराब स्थिति, कामकाज की खराब गुणवत्ता और हिंसा का खतरा जैसे कई संकेतकों के आधार पर किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2006 से 2016 के बीच 27.10 करोड़ लोग, जबकि बांग्लादेश में 2004 से 2014 के बीच 1.90 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। इसमें 10 चुने गए देशों में भारत और कम्बोडिया में एमपीआई मूल्य में सबसे तेजी से कमी आई और उन्होंने सर्वाधिक गरीब लागों को बाहर निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 में भारत के करीब 64 करोड़ लोग (55.1 प्रतिशत) गरीबी में जी रहे थे, जो संख्या घटकर 2015-16 में 36.9 करोड (27.9 प्रतिशत) पर आ गई। इस प्रकार, भारत ने बहुआयामी यानी विभिन्न स्तरों और उक्त 10 मानकों में पिछड़े लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
इससे पूर्व हाल ही में अमेरिकी शोध संस्था की ओर से भारत में गरीबी को लेकर जारी आंकड़े मोदी सरकार को सुकून देने वाले थे । रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पिछले कुछ साल में भारत में गरीबों की संख्या बेहद तेजी से घटी हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि भारत के ऊपर से सबसे ज्यादा गरीब देश होने का ठप्पा भी खत्म हो गया है। देश में हर मिनट 44 लोग गरीबी रेखा के ऊपर निकल रहे हैं। यह दुनिया में गरीबी घटने की सबसे तेज दर है। यह दावा अमेरिकी शोध संस्था ब्रूकिंग्स के ब्लॉग, फ्यूचर डेवलपमेंट में जारी रिपोर्ट में किया गया। रिपोर्ट के अनुसार देश में 2022 तक 03 फीसदी से कम लोग ही गरीबी रेखा के नीचे होंगे। वहीं 2030 तक बेहद गरीबी में जीने वाले लोगों की संख्या देश में न के बराबर रहेगी।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो वर्ष 2004 से 2011 के बीच भारत में गरीब लोगों की संख्या 38.9 फीसदी से घट कर 21.2 फीसदी रह गई। वर्ष 2011 में भारत में लोगों की क्रय क्षमता 1.9 डॉलर (करीब 125 रुपये) प्रति व्यक्ति के करीब रही। रिपोर्ट के मुताबिक अत्यंत गरीबी के दायरे में वह आबादी आती है जिसके पास जीवनयापन के लिए रोजाना 1.9 डॉलर (करीब 125 रुपये) भी नहीं होते। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि देश में तेज आर्थिक विकास के चलते गरीबी घटी है।
विश्व बैंक के मुताबिक दुनिया में करीब 76 करोड़ गरीब हैं इनमें भारत में करीब 22.4 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं। भारत के 7 राज्यों छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और यूपी में करीब 60 प्रतिशत गरीब अबादी रहती है। 80 प्रतिशत गरीब भारत के गांवों में रहते हैं। लोकसभा में भारत सरकार द्वारा दी गई एक जानकारी के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या सवा सौ करोड़ से ज्यादा है। इसमें करीब 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) जीवनयापन करते हैं। इनमें से अनुसूचित जनजाति के 45 प्रतिशत और अनुसूचित जाति के 31.5 प्रतिशत के लोग इस रेखा के नीचे आते हैं।
विभिन्न स्तरों पर गरीबी खत्म किये जाने के दावे स्वतंत्र विश्लेषक सही नहीं मानते है। मगर यह अवश्य कहा जा सकता है कि पिछले एक दशक में गरीबी उन्मूलन के प्रयास जरूर सिरे चढ़े है। सरकारी स्तर पर यदि ईमानदारी से प्रयास किये जाये और जनधन का दुरूपयोग नहीं हो तो भारत शीघ्र गरीबी के अभिशाप से मुक्त हो सकता है।