*नारी*






       *नारी*

                        

एक नारी, 

जो केवल नारी पहचान का अंग,

बनकर,अपने मे

नारी होने पर गर्व करती है ।

मन मे दम्भ और दुर्भाव रखकर । 

पहिरन और श्रृंगार में मात्र सजती है 

एक नारी जो दूसरे घर की नारी को ही डायन होने की आरोप लगाती हैं,

बिना कोई कारण, 

अपने जैसे ही नारी की वैश्या और कुलटा उपमा देती  है, 

उन से प्रतिशोध की भावना रखती है,

नहि ! 

वह नारी नही है , 

मेरी समझ मे तो नारी, 

मेरी सद्ज्ञान में तो नारी, 

मै जिन्हे जानती हुँ

और सुनते आई हुँ,

वह नारी ,

श्रम और पसीना  का पर्याय है, 

वेदना और व्यथा की आँगन है, 

उन्हे किताब  मे सीमित नहीं

सदकर्म से सम्मान करे 

सारी दुनियाँ, 

नारी जीवन है, 

जीवन को मत भूलो, समझो नारी की दुनिया को

नारी बिना यह दुनिया एक पल भी नहि टिकेगी  ।

नारी तो सागर है भावना 

और प्रेरणा की महासागर 

समय चेतना की व्यवहार 

और सज्ञान से पूर्ण सन्तान स्नेह सें स्निग्ध सचेत दयालु 

प्रतिरोध क्षमता से परिपूर्ण

आँसु कें जगह शब्द, 

हार की जगह जीत 

ईर्ष्या की जगह सद्भाव  वाली माता है वह सृजना की धरती

स्नेह से जीवन भरने की उनकी शक्ति, किसी का शोकेस का मोहताज नहीं, 

सन्तान जन्माने के मशीन मात्र नहीं उनकी मनोदशा को समझे सभी, 

उन्हे आवरण कें खोल मे सजाकर न लिखे कोई । 

देवी बनाकर पूजे नहीं,

नारी को सम्मान करे सभी, 

इसिलिए, 

नारी 

मै तुम्हे श्रृष्टि की जननी होने का सुनना चाहती हुँ ।

 

 

जिबिका ' अश्रु '

गंगटोक, सिक्किम