राफेल सौदे पर रार

राफेल सौदे पर रार फांस से राफेल लड़ाकू विमान की खरीद को कांग्रेस ने जिस तरह एक बार फिर तूल दिया, उससे यही ध्वनित हो रहा है कि उसने इस रक्षा सौदे को संदिग्ध करार देने की ठान ली है। हैरत नहीं कि वह इस सौदे में कथित गड़बड़ी को चुनावी मुद्दा बनाने की फिराक में हो। यह अजीब है कि जहां भाजपा राफेल सौदे पर राहुल गांधी के संसद में दिए गए बयान को गुमराह करने वाला बताकर उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने को कह रही है, वहीं कांग्रेस भी रक्षामंत्री और प्रधानमंत्री पर इसी तरह का आरोप जड़कर उनके खिलाफ ऐसा ही प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। यह जितना विचित्र है उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण भी, क्योंकि इससे कोई भी अनजान नहीं हो सकता कि भारतीय वायुसेना को सक्षम लड़ाकू विमानों से लैस करने की सख्त जरूरत है। इससे खराब बात और कोई नहीं हो सकती कि सस्ती राजनीति इस जरूरत की पूर्ति में बाधा बने। कायदे से रक्षा खरीद को आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति का जरिया नहीं बनाया जाना चाहिए, लेकिन अपने देश में इसके उलट ही अधिक होता है। राफेल सौदे को लेकर जारी आरोप-प्रत्यारोप के बीच आम जनता के लिए यह जानना कठिन है कि किसकी बात कितनी सही है? इस सौदे में गोपनीयता के प्रावधान के चलते सरकार सब कुछ सार्वजनिक भी नहीं कर सकती, लेकिन वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि इस मामले में कांग्रेस को उसे कठघरे में खड़ा करने का मौका रक्षामंत्री के उस बयान से ही मिला, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह राफेल की रकम का विवरण देंगी। बाद में उन्होंने गोपनीयता के प्रावधान का जिक्र करके ऐसा करने से इनकार कर दिया। कांग्रेस की मानें तो इस सौदे में गोपनीयता के प्रावधान का दावा गलत है, लेकिन उसके दावे को भारत सरकार ही नहीं, फांस सरकार भी खारिज कर रही है। फांस सरकार का तो यहां तक कहना है कि गोपनीयता का प्रावधान उसी समय से है, जब 2008 में मनमोहन सरकार के समय राफेल विमानों की खरीद तय की गई थी। यह सही है कि संवेदनशील रक्षा सौदों में सब कुछ सार्वजनिक नहीं किया जा सकता और आम तौर पर लड़ाकू विमानों की कीमत इसलिए नहीं बताई जाती, क्योंकि ऐसा करने से विशेषज्ञों को यह अंदाजा लगाने में आसानी होती है कि उसमें क्या खासियत होगी? चूंकि आजकल लड़ाकू विमानों की एक खासियत उनका परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम होना भी होता है, इसलिए यह मांग ठीक नहीं कि सरकार राफेल सौदे को उजागर करे, लेकिन इस सौदे की कीमत संबंधी विवरण इस शर्त के साथ विभिन्नू दलों के सांसदों वाली किसी विशेष समिति के संज्ञान में लाया जा सकता है कि उसे एक निश्चित समय तक सार्वजनिक न किया जाए। रक्षा सौदों में गोपनीयता के प्रावधानों से इनकार नहीं, लेकिन तथ्य यह है कि आज के युग में युद्धक सामग्री की गोपनीयता कुछ ही समय तक बनाए रखी जा सकती है।