ज्ञान का भण्डार है पुस्तक

( बाल मुकुन्द ओझा)


पुस्तकों को बुक-शेल्फ या अल्मारी से बाहर निकालने की चर्चा एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है। इस बार प्रधानमंत्री ने रेडियो पर मन की बात में पुस्तकों की चर्चा छेड़ी है। आज के युवा ने पुस्तकों को भूल कर मोबाइल को हाथ में पकड़ लिया है। उसे प्रेमचंद, शरत चंद्र, मन्मथ नाथ गुप्त, और विमल मित्र के नाम का ज्ञान नहीं है। पुस्तकों के नाम पर वह केवल अपनी पाठ्य पुस्तकों को जानता है। उससे आगे केवल इंटरनेट की दुनियां को पहचानता है। किस्से कहानिया, उपन्यास, कविता आदि साहित्य विधाओं को नहीं पहचानता। प्रधानमंत्री ने पुस्तकों की चर्चा कर देशवासियों का ध्यान खींचा है। प्रधानमंत्री ने बिना किसी अकादमिक आयोजन के पढ़ने, और पढ़ते ही रहने की बात कही है, इस बात के लिए उनकी तारीफ की जानी चाहिए। पुस्तकों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। अच्छी पुस्तकें न केवल ज्ञान का भंडार होती हैं अपितु एक अच्छी दोस्त भी होती हैं। आज जरुरत इस बात की है की आलमारियों में बंद पड़ी पुस्तकों को बाहर निकाल कर जिंदगी का अहम् हिस्सा बनाया जाये ताकि देश और दुनियां का बेहतर ज्ञान हो सके। अच्छी पुस्तकें हमें रास्ता दिखाने के साथ-साथ हमारा मनोरंजन भी करती हैं। वह हमसे लेती कुछ भी नहीं है मगर देती ज्ञान का अपार भंडार।
आज इंटरनेट का भूत युवा पीढ़ी पर सवार है। आज का युवा प्रेमचंद को नहीं जानता। महादेवी वर्मा, दिनकर, विमल चटर्जी, मन्मथनाथ गुप्त, शरत चंद्र को नहीं पहचानता। इसका एकमात्र कारण हमारी शिक्षा प्रणाली है। स्कूल में पुस्तकालय है मगर वहां किशोर नहीं जाता। उसे मोबाइल की लत लग गयी है। अध्यापक भी पुस्तकालय जाने को प्रेरित नहीं करता इसलिए वह किसी नामचीन लेखक को नहीं जानता। पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी मित्र थी मगर अब नहीं है। स्कूल की छोड़ों घर पर अभिभावक भी उन्हें अच्छी पुस्तकों से परिचित नहीं करवाते। युवा के लिए पाठ्यपुस्तक या कोचिंग की पुस्तकें ही सब कुछ है। कालजयी रचनाकार बाबू देवकी नंदन खत्री की पुस्तकों का ज्ञान भी नहीं है। पुस्तकें अब पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रही है। चिंतन की बात तो यह है की पुस्तकें कैसे पुस्तकालय से बाहर निकले और युवा का रुझान इनके प्रति कैसे हो यह विचारने की बात है।
अगर सच्ची दोस्ती चाहिए तो किताबों को दोस्त बना लो क्योंकि वो कभी दगा नहीं देती है और ना ही झूठ के रास्ते पर चलती। लेकिन इंटरनेट के युग में व्यक्ति किताबों से काफी दूर हो गया है। पुस्तकें हमारे जीवन को सही दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और हमेशा हमारे साथ एक सच्चे दोस्त की तरह रहती हैं, बशर्ते हमारे अंदर पढ़ने और सीखने का जज्बा हो। एक जमाना था जब किताबें सभी की अच्छी दोस्त हुआ करती थीं। जैसे-जैसे डिजिटलाइजेशन बढ़ता गया किताबें भी हमसे दूर होती चली गईं। अब किताबों की जगह मोबाइल, कंप्यूटर आदि इंटरनेट माध्यमों ने ले ली है।
आज का युवा पुस्तक का मतलब पाठ्यपुस्तक ही समझता है। स्कूल और कॉलेज में पुस्तक लाइब्रेरी जरूर है मगर उसमें जाने का समय विद्यार्थी के पास नहीं है। कक्षा में विषयों के पीरियड अवश्य होते है खेलकूद का भी समय होता है मगर पुस्तक पढ़ने अथवा पुस्तकालय का कोई पीरियड नहीं होता। अध्यापक भी बच्चों को पुस्तक या सद साहित्य पढ़ने संबंधी कोई जानकारी नहीं देते। यही कारण है कि इन्टरनेट के इस युग में हम पुस्तक को भूल गए है। पढ़ने का मतलब इस संचार क्रांति में इन्टरनेट ही रह गया है युवा चैबीसों घंटे हाथ में मोबाइल लिए इन्टरनेट पर चैट करते मिल गाएंगे। वे पुस्तक से परहेज करने लगे है मगर मोबाइल को रिचार्ज करना नहीं भूलते।
पुस्तक या किताब लिखित या मुद्रित पेजों के संग्रह को कहते हैं।, पुस्तकें ज्ञान का भण्डार है। पुस्तकें हमारी दुष्ट वृत्तियों से सुरक्षा करती हैं। इनमें लेखकों के जीवन भर के अनुभव भरे रहते हैं। अच्छी पुस्तकें पास होने पर उन्हें मित्रों की कमी नहीं खटकती है वरन वे जितना पुस्तकों का अध्ययन करते हैं । पुस्तकें उन्हें उतनी ही उपयोगी मित्र के समान महसूस होती हैं। पुस्तक का अध्ययन मनन और चिंतन कर उनसे तत्काल लाभ प्राप्त किया जा सकता है। कहानियों के जरिये बच्चे बहुत सी नई चीजों को सीखते हैं। पुस्तकों का अध्ययन कम हो गया है। पुस्तकें ज्ञान की भूख को मिटाती है। किताबें संसार को बदलने का साधन रही हैं। जीवन में पुस्तकें हमारा सही मार्गदर्शन कराती हैं। एकान्त की सहचारी हैं । वे हमारी मित्र हैं जो बदले में हम से कुछ नहीं चाहती । वे साहस और धैर्य प्रदान करती हैं । अन्धकार में हमारा मार्ग दर्शन कराती हैं ।