रेड लाइट पर अटका दिल्ली सरकार का ग्रीन बजट, एनसीआर के करोड़ों लोग हो रहे प्रभावित

दिल्ली की हवा सुधारने के लिए दिल्ली सरकार का ग्रीन बजट पिछले छह माह से रेड लाइट पर अटका पड़ा है। पुख्ता कार्ययोजना और विभागीय समन्वय न होने से इसकी कोई भी योजना सिरे नहीं चढ़ सकी है। ऐसे में सभी योजनाएं हवा-हवाई साबित हो रही हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अधिकारी भी दबी जुबान में इससे इन्कार नहीं कर रहे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण-संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) भी सरकार के इस लापरवाह रवैये से खासा नाराज है। मार्च में पेश किए गए ग्रीन बजट में सरकार ने ढाबों एवं रेस्तरां में कोयला तंदूर के स्थान पर इलेक्ट्रिक या गैस तंदूर के इस्तेमाल को प्रोत्साहन देने की घोषणा की थी। प्रति तंदूर पांच हजार रुपये की सहायता राशि का प्रस्ताव भी रखा था, लेकिन छह माह में एक भी रेस्तरां या ढाबे में ऐसा नहीं हो पाया है। दस केवीए या इससे ज्यादा की क्षमता के डीजल जेनरेटर का इस्तेमाल करने वाले व्यवसायियों को इलेक्ट्रिक जेनरेटर के लिए प्रोत्साहित करने की योजना थी। तीस हजार रुपये तक की सहायता राशि देने का प्रस्ताव भी रखा गया, लेकिन यह योजना भी कागजी यूपी की नामी ही रह गई। आठ सितंबर को दिल्ली सरकार ने आरडब्ल्यूए एवं स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर एक ही दिन में लाखों पौधे लगाने का दावा किया, जबकि मानसून के लिए तय किए गए पौधरोपण के लक्ष्य की अवधि को बढ़ाकर अब वर्ष भर कर दिया गया है। जोनापुर, आया नगर, डेरा मांडी, बेला फार्म, नामी यूनिवर्सिटी में विदेशी व भारतीय गढ़ी मांडू पॉकेट ए और अलीपुर में सिटी फॉरेस्ट व सेंट्रल रिज में वॉकिंग ट्रैक विकसित करने का प्रस्ताव भी अभी तक बजट की फाइलों में ही है। सरकारी कार्यालयों में वायु प्रदूषण के स्तर की जानकारी देने के लिए एक हजार इंडोर डिस्प्ले पैनल लगाने, वर्लड बैंक की टीम के परामर्श से वायु प्रदूषण की अचानक बढ़ने वाली मात्रा के पूर्वानुमान को लेकर मॉडल विकसित करने तथा औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषणकारी ईंधन के बजाय पीएनजी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने और एक लाख रुपये की सहायता देने संबंधी प्रस्ताव भी सिरे नहीं चढ़ सके। एक हजार इलेक्ट्रिक बसों को लेकर भी हाल ही में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल यह बयान दे चुके हैं कि पहली खेप 2019 की दूसरी तिमाही तक आ पाएगी। पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त परिवहन, ऊर्जा और लोक निर्माण से संबद्धित भी ऐसी कई योजनाएं हैं, जो ग्रीन बजट का हिस्सा होने के बावजूद अधर में लटकी हैं। डीपीसीसी के एक आला अधिकारी ने स्वीकार किया कि ग्रीन बजट की अधिकांश योजनाओं पर काम शुरू नहीं हो पाया है। प्रोत्साहन राशि संबंधी योजनाओं के लिए भी ज्यादातर में कोई आवेदन नहीं आया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अपर निदेशक डॉ. एस के त्यागी बताते हैं कि इलेक्ट्रिक या गैस तंदूर लगवाने व डीजल जनरेटर को स्वच्छ ईंधन में परिवर्तित करने सहित ग्रीन बजट की सभी योजनाओं के लिए पुख्ता कार्ययोजना और कारगर नेटवर्क चाहिए, जबकि जमीनी स्तर पर सरकार छह माह में भी इसके लिए खास तैयारी नहीं कर पाई है। आप सरकार के भरोसे प्रदूषण से जंग जीतना संभव नहीं। ईपीसीए के अध्यक्ष भूरेलाल के अनुसार दिल्ली की आप सरकार के भरोसे प्रदूषण से जंग जीतना कभी संभव नहीं रहा। खुद से कुछ करना तो दूर की बात, सरकार को जो दिशा-निर्देश दिए जाते हैं उन पर अमल करने में भी हमेशा आनाकानी वाला रवैया रहता है। ग्रीन बजट की योजनाएं तो वैसे भी हवा-हवाई ही हैं। इसलिए अगर उन पर छह माह में कोई काम नहीं हुआ तो हैरत की कोई बात नहीं है। -मेट्रो स्टेशनों के पास लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए डीएमआरसी के बेड़े में 905 इलेक्टिक फीडर वाहन शामिल करने की योजना।