फिर यूपी से ही उम्मीदें

बीते लोकसभा चुनाव में अकेले उत्तर प्रदेश से ही 73 सीटें जीतने की बदौलत केन्द्र में अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली भाजपा के लिये इस बार भी बेहद आवश्यक है कि वह यूपी में अपने प्रदर्शन को मजबूती से दोहराए। देश को अस्सी सीटें देने वाले इस सूबे का केन्द्र की राजनीति पर पड़नेवाले निर्णायक प्रभाव का ही नतीजा रहा है कि प्रधानमंत्री पद पर अधिकांश वक्त इस सूबे से चुने जानेवालों का ही कब्जा रहा है। इसलिये यूपी की जीत से दिल्ली की राह खुलने के इतिहास को ना तो अब तक बदला जा सका है और ना ही इससे समझौता करने की हिम्मत मौजूदा सरकार की है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देने से ठीक पहले राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में आयोजित भाजपा के दो दिवसीय राष्ट्रीय महाधिवेशन में जीत का शंखनाद करते हुए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केन्द्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का दावा किया है। शाह ने भाजपा की दोबारा जीत की राह एक बार फिर यूपी से ही खुलने का भरोसा जताते हुए पार्टी को यह विश्वास दिलाया है कि इस बार सूबे में पार्टी को पिछली बार की 73 सीटों के मुकाबले 74 सीटें प्राप्त होंगी लेकिन वह 72 हर्गिज नहीं होगी। शाह ने यूपी में ऐतिहासिक जीत के प्रति पूर्ण भरोसा जताते हुए बताया कि भाजपा को घेरने के लिये यूपी में गठबंधन हुआ है जो पूरी तरह ढकोसला ही है। कल तक जो लोग साथ नहीं बैठते थे वे आज गठबंधन कर रहे हैं। शाह के मुताबिक विरोधियों की यह रणनीति ही प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और भाजपा की जमीनी मजबूती का सबसे बड़ा प्रमाण है। शाह ने बताया कि बीते विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और सपा का गठबंधन हुआ था और तब भी भाजपा ने अकेले दम पर 325 सीटों पर जीत दर्ज कराई थी। शाह की मानें तो वे लगातार यूपी के कार्यकर्ताओं से संपर्क बनाए हुए हैं और उन्होंने पार्टी को आश्वस्त किया कि इस बार के लोकसभा चुनाव में पिछली बार के मुकाबले अधिक सीटें ही भाजपा जीतेगी। वास्तव में देखा जाए तो यूपी में भाजपा की राह रोकने के महत्व को विपक्ष भी बखूबी समझ रहा है और यही वजह है कि कि इस इलाके में कोई कमजोरी नहीं छोड़ना चाहता है। तभी तो जब गैर-भाजपाई ताकतों को यह महसूस हुआ कि यूपी में कांग्रेस के लिये छोड़ी जानेवाली सीटों पर भाजपा की जीत आसान हो सकती है तो सपा-बसपा ने कांग्रेस को ही किनारे करने से गुरेज नहीं किया है। बेशक मायावती और अखिलेश को यह बेहतर पता हैकि राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा को रोकने के लिये कांग्रेस को साथ लेने के अलावा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है। लेकिन यह मजबूरी तब सामने आएगी जब चुनाव का नतीजा आ चुका होगा और भाजपा को न्यूनतम सीटों पर रोकने में कामयाबी मिल चुकी होगी। लेकिन यह तब ही संभव हो सकता है कि गैरभाजपाई ताकतें हर सूबे में अपनी मजबूती दिखाएं और अधिकतम सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब हों। इसके लिये यूपी में आवश्यक था कि कांग्रेस को किनारे लगाया जाए वर्ना उसकी जमीनी कमजोरी बाकियों के पूरे किये कराए पर पानी फेर सकती थी। इसी सोच के तहत मायावती और अखिलेश ने चुनाव पूर्व गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं करने का फैसला किया हैजिससे भाजपा की चिंताएं बढ़ना स्वाभाविक है। लेकिन अधिवेशन के मंच का इस्तेमाल करते हुए भाजपा अध्यक्ष ने इस चुनौती को भी जिस तरह से खारिज करने की कोशिश की है वह वास्तव में अपने कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने का प्रयास ही है। इसी सोच के तहत शाह ने विधानसभा चुनाव में बनाए गए भाजपा विरोधी गठबंधन को मिली करारी शिकस्त भी याद दिलाई है और पिछले लोकसभा चुनाव में मिली भाजपा को ऐतिहासिक जीत की यादें ताजा करके कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने का भी प्रयास किया है। साथ ही शाह ने तमाम ऐसे मुद्दे उठाए हैं जो पार्टी की मूल विधारधारा से भी जुड़े हैं और मोदी सरकार की सफलता से भी। अधिवेशन में दिये गये अपने अध्यक्षीय संबोधन में जहां एक ओर उन्होंने मोदी सरकार की उपलब्धियों का विस्तार से गुणगान किया वहीं विरोधियों द्वारा भाजपा को घेरने के लिये अपनायी जा रही रणनीतियों की भी जम कर खबर ली। शाह के अनुसार इस बार का चुनाव एक धर्म युद्ध है जिसमें सिर्फ भाजपा नहीं जीतेगी बल्कि भारत का जीतना जरूरी है। उन्होंने पानीपत की लड़ाई का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह 130 युद्ध लगातार जीतनेवाले मराठाओं की अहमद शाह अब्दाली के हाथों इकलौती हार के खामियाजे के तौर भारत को 200 साल की गुलामी झेलनी पड़ी ठीक वैसी ही दूरगामी प्रभाव वाली लड़ाई इस बार लोकसभा चुनाव में होनी है। शाह ने नागरिकता रजिस्टर और नागरिकता कानून से जुड़े राष्ट्रवादी मसलों पर विपक्ष के रूख को देशविरोधी करार देते हुए कहा कि अवैध घुसपैठियों के प्रति विपक्ष की संवेदना ऐसी दिख रही है मानो वे इनके मौसेरे भाई हों। शाह ने अयोध्या के राम मंदिर मुद्दे को भाजपा के लिये आस्था का सवाल बताते हुए कहा कि कांग्रेस हर तरह से राम मंदिर की राह में रोड़े अटका रही है लेकिन हम चाहते हैं कि मंदिर उसी जगह बने और इसी साल बने। शाह ने राफेल खरीद के मसले पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा मोदी सरकार पर किये जा रहे हमलों का जवाब देते रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में दिये गये अपने भाषण में तथ्यों के साथ हर सवाल का जवाब दे दिया है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस सौदे को अपनी क्लीन चिट दे दी है। लिहाजा पार्टी के कार्यकर्ताओं को इस बात पर गर्व होना चाहिये कि मोदी सरकार ने बीते पांच साल के कार्यकाल में एक भी ऐसा काम नहीं किया है जिससे उन्हें शर्मिंदा होना पड़े। शाह ने राहुल की बेचैनी को अगस्ता घोटाले के राजदार क्रिश्चन मिशेल के कबूलनामे से जोड़ते हुए कहा कि मिशेल मामा द्वारा किये जाने वाले खुलासों की संभावना से राहुल डर गए हैं इसलिये वे प्रधानमंत्री मोदी पर दबाव बनाने के लिये झूठे आरोप मढ़ रहे हैं। राफेल की पूरी हकीकत सबको पता है और संसद में इस मसले को उठाकर राहुल ने चैबे से छब्बे बनने की कोशिश की थी लेकिन दूबे बनकर बाहर निकलना पड़ा। इसके अलावा जिस मसले पर कार्यकताओं को विरोधियों का सबसे अधिक ताना सुनना पड़ता है उस मसले को भी एक अलग नजरिये से प्रस्तुत करते हुए उन्होंने आर्थिक अपराध करके देश से फरार हो जाने वालों का जिक्र करते हुए कहा कि जो भी भागे हैं वे चैकीदार की डर से भागे हैं लेकिन इस बात में कोई  शक नहीं है कि उन्हें यह चैकीदार निश्चित ही पकड़ कर वापस ले आएगा।