नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि भारत भूषण आर्य ने अपने दोहों और शेरों पर जमकर वाह वाही लूटी। उन्होंने कहा "रंग पढ़ा, खुशबू पढ़ी, सौ सौ पढ़े गुलाब, तुझ को पढ़ कर कौन सी बाकी रही किताब।" कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रसिद्ध कवि एवं शिक्षाविद जगदीश व्योम ने कहा कि वह इस बात के गवाह हैं कि व्यक्ति चाहे सीमा के इधर का हो या उधर का, युद्ध की किसी भी तरह हिमायत नहीं करता। उन्होंने फरमाया कि "आहत है संवेदना, खंडित है विश्वास, जाने क्यों होने लगा, संताप का संत्रास।"
इस अवसर पर संस्थान की संरक्षिका एवं स्कूल की डायरेक्टर प्रिंसिपल डॉ. माला कपूर को हाल ही में हासिल की गई उपलब्धियों के लिए "क्रॉउन" पहना कर सम्मानित किया गया। डॉ. माला कपूर ने अपने संबोधन में कहा कि युद्ध की सबसे अधिक विभीषिका झेलने वाला जापान हिरोशिमा और नागासाकी को विस्मृत कर आगे बढ़ रहा है। गड़े मुर्दे उखाड़ने से बदबू ही बाहर आती है। शायर सुरेंद्र सिंघल ने कहा कि युद्ध एक मजबूरी हो सकती है लेकिन उन्माद मजबूरी नहीं होता। उन्होंने कहा " वाजिब है जंग से नफरत मेरे मन में, जलते हैं नागासाकी हिरोशिमा मेरे मन में"।
"मैं सोचता था यह दुनिया बदल ही डालूंगा, उतर चुका है नशा पर खुमार अभी बाकी है।" "वजह ना जंग की कोई बचेगी जिसके बाद, वह एक जंग आर पार की बाकी है।"
कार्यक्रम का संचालन आलोक यात्री ने किया। इस अवसर पर तरुणा मिश्रा, प्रवीण कुमार, वीरेंद्र कुंअर, सुभाष चंदर, कमलेश त्रिवेदी फर्रुखाबादी, राजमणि, मजबूर गाजियाबादी, स्नेह लता भारती, सुभाष यादव आदि बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित थे।