पाकिस्तान- विनाश काले विपरीत बुद्धि






इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) का संस्थापक सदस्य होने के बावजूद अबू धावी में हुई संगठन के 57 सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत को बुलाए जाने और ‘गेस्ट आॅफ आॅनर’ का दर्जा दिये जाने से तिलमिलाए पाकिस्तान ने जैसा सलूक किया है और उसके साथ जैसा सलूक किया गया है वह निश्चित ही अप्रत्याशित है। इस पूरे वाकये ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि संगठन के सदस्य देशों ने पाकिस्तान का बहिष्कार किया है अथवा उसने बैठक का बहिष्कार किया है। यह बेहद ही ऐतिहासिक मौका है जब भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने इस बैठक में ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ के तौर पर हिस्सा लिया। वह भी तब जबकि यह दो दिवसीय बैठक पुलवामा हमले और उसके बाद बालाकोट में भारतीय वायुसेना की एयर स्ट्राइक के बाद हो रही है जबकि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। भारत ने जहां इस बैठक में पहली बार हिस्सा लिया है, वहीं पाकिस्तान ने भारत को आमंत्रित करने पर आपत्ति जताते हुए इसमें शिरकत करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद यहां पाकिस्तान की कुर्सी खाली रही। पाकिस्तान की खाली कुर्सी ही अपनेआप में यह बयान कर रही थी कि किस प्रकार विनाश का वक्त करीब आने के कारण पाकिस्तान की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। दरअसल अपने विचार से तो पाकिस्तान आतंकवाद के माध्यम से इस्लाम की सेवा ही कर रहा है। उसे यही पाठ अब तक तमाम इस्लामिक देशों को पढ़ाया हुआ होगा जिसके कारण भारत को इस्लामिक देशों की बैठक से अलग जाता रहा। यहां तक कि इस बैठक में शिरकत करने से रोक कर भारत को बीते समय में जलील भी किया जा चुका है। लेकिन अब ना तो वह वक्त है और ना ही माहौल। आज की तारीख में भारत की हकीकत की विश्व के सामने आ चुकी है और पाकिस्तान की भी। सबको पता चल चुका है कि आतंकवाद के द्वारा इस्लाम की सुरक्षा करने का जो झांसा पाकिस्तान देता आ रहा है उसकी हकीकत यही है कि मुस्लिम बहुल देश इरान और अफगानिस्तान भी पाकिस्तान द्वारा पोषित व संरक्षित आतंकवाद के कारण बुरी तरह पीड़ित हैं। यहां तक कि जिस भारत को इस्लामिक देश अब तक हिन्दू राष्ट्र मानते आ रहे थे उसकी हकीकत भी सबके सामने है कि यहां के साढ़े 18 करोड़ मुसलमान ना सिर्फ विश्व के किसी भी अन्य इस्लामिक देश के मुकाबले अधिक आजाद व खुशहाल हैं बल्कि उनके साथ किसी भी प्रकार कोई भेदभाव नहीं हो रहा है। इसके अलावा पाकिस्तान की चीन के साथ बढ़ती दोस्ती भी इस्लामिक देशों को नागवार गुजराना लाजिमी ही था क्योंकि चीन में उइगर मुस्लिमों के साथ किस कदर अमानवीय व दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है वह भी सर्वविदित ही है। इस सबके बीच भारत की वैश्विक कूटनीति का भी असर रहा है और पाकिस्तान की पस्त हो चुकी हालत का भी कि आज की तारीख में उसे काफी हद तक भिखारी देश के नजरिये से देखा जा रहा है। उसकी औकात इतनी ही बची है कि अगर प्रिंस सलमान ने अपने हालिया इस्लामाबाद दौरे के दौरान उसे जकात या खैरात के नाम पर भीख नहीं दी होती तो आज उसके पास अपने कर्ज का ब्याज चुकाने का भी पैसा नहीं था। दूसरी ओर भारत की वह हकीकत भी दुनिया जान चुकी है जिसके तहत भारत में आतंकवाद को किसी कौम, संप्रदाय अथवा जाति से जोड़कर नहीं देखा जाता है। तभी तो दो दिवसीय इस्लामिक सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए जब विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने जोर देकर कहा भी है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई किसी धर्म के विरूद्ध नहीं है और ये हो भी नहीं सकती। सुषमा के आज के भाषण ने इस्लामिक देशों की कई दुविधाओं को दूर किया है और भारत की सोच के बारे में उनकी राय निश्चित तौर पर बदली है। सुषमा का यह कहना भी बेहद प्रेरणादायक था कि जैसे की इस्लाम का मतलब अमन है और अल्लाह के 99 नामों में से किसी का मतलब हिंसा नहीं है। अल्लाह का मतलब ही शांति है। इसी तरह दुनिया के सभी धर्म शांति, करुणा और भाईचारे का संदेश देते हैं। सर्वधर्म समभाव की व्याख्या करते हुए आतंकवाद को मजहब की दीवार से अलग हटाते हुए सुषमा ने जिस तरह से आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता की जरूरत पर बल दिया है और पाकिस्तान का नाम लिए बगैर उसका हुक्का-पानी बंद किये जाने की जरूरत जताई है उससे इतना तो साफ है कि निकट भविष्य में पाकिस्तान को भारत की ओर से ऐसी चुनौती पेश की जानेवाली है जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं होगा। यह सही वक्त है कि पाकिस्तान सचेत हो और आतंक को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की अपनी कूटनीति में बदलाव लाए। पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए सुषमा का दो टूक शब्दों में यह कहना बेहद महत्वपूर्ण है कि अगर मानवता को बचाना है तो आतंकवाद को प्रश्रय और प्रोत्साहन देने वाले देशों से कहना होगा कि वे अपने यहां आतंकियों के सुरक्षित पनाहगाह बंद करें, उन्हें मिलने वाली वित्तीय मदद पर रोक लगाएं। सुषमा का यह कहना भी बेहद ही वाजिब है कि इस्लामिक सहयोग संगठन में सदस्य बनने की पूरी पात्रता भारत के पास है क्योंकि भारत की करीब 1.3 अरब आबादी में 18.5 करोड़ से अधिक तादाद मुसलमानों की है। यानि भारत ने तो इस मौके का इस्तेमाल करके दुनिया के इस्लामिक देशों तक अपनी सोच भी पहुंचाई और उन्हें यह भी बताया कि किस कदर आतंक का दानव अब मानवता को लीलने पर आमादा है। साथ ही अब समूचा विश्व यह जान और मान चुका है कि आतंकवाद की धारा पाकिस्तान से ही निकल रही है और अब इस्लामिक देश भी इस मसले पर पाकिस्तान से किनारा कर रहे हैं। यही वजह है कि ना तो इस्लामिक देशों ने पाकिस्तान द्वारा दी गई बहिष्कार की धमकी का संज्ञान लिया और ना ही उसके विचारों को जरा भी तवज्जो दी। लेकिन विनाश काले विपरीत बुद्धि का परिचय देते हुए पाकिस्तान ने जिस तरह से इस बैठक से दूरी बनाई उसके बाद अब नैतिक तौर पर भी वह इस्लामिक जगत से अलग थलग हो गया है। रही सही कसर चीन ने उससे दूरी बनाकर पूरी कर दी है और अब दुनिया का कोई देश नहीं है जो उससे हमदर्दी रखता हो। ऐसे में अब यह पाकिस्तान को ही तय करना है कि आत्मघाती राह पर चलकर उसे तबाह होना है या आतंक का सफाया करने के अभियान में विश्व के साथ जुड़कर शांति व विकास की मुख्यधारा में वापस लौटना है।