बुनियादी जरूरतों के लिए आज भी संघर्षरत है भारत के मजदूर

(बाल मुकुन्द ओझा)


अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पूरे विश्व में 1 मई को मनाया जाता है। मजदूर हमारे समाज का वह तबका है जिस पर समस्त आर्थिक उन्नति टिकी होती है । वह मानवीय श्रम का सबसे आदर्श उदाहरण है । आज के मशीनी युग में भी उसकी महत्ता कम नहीं हुई है । उद्योग, व्यापार ,कृषि, भवन निर्माण, पुल एवं सड़कों का निर्माण आदि समस्त क्रियाकलापों में मजदूरों के श्रम का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है । मजदूर अपना श्रम बेचता है । बदले में वह न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करता है । उसका जीवन-यापन दैनिक मजदूरी के आधार पर होता है । जब तक वह काम कर पाने में सक्षम होता है तब तक उसका गुजारा होता रहता है । जिस दिन वह अशक्त होकर काम छोड़ देता है, उस दिन से वह दूसरों पर निर्भर हो जाता है । भारत में कम से कम असंगिठत क्षेत्र के मजदूरों की तो यही स्थिति है । असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की न केवल मजदूरी कम होती है, अपितु उन्हें किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी प्राप्त नहीं होती । महात्मा गांधी ने कहा था कि किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों और किसानों पर निर्भर करती है। उद्योगपति स्वय को मालिक या प्रबंधक समझने की बजाय अपने-आप को ट्रस्टी समझे ।


भारत में आज भी मजदूर रोटी कपडा और मकान की बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्षरत है। मजदूर नेता जॉर्ज फर्नांडिस की रेल का चक्का जाम करने की सफल हड़ताल के बाद मजदूर अपने अधिकारों के प्रति सावचेत होने लगे। उन्हें लगने लगा कि अपने बुनियादी हकों के लिए एक हो कर लड़ाई लड़ी गई तो सफलता निश्चित है। सातवें दशक में कई बार मजदूर आंदोलनों ने अंगड़ाई ली। विभिन्न विचार धाराओं से जुडी यूनियन एक हुई फलत मजदूरों का भला ही हुआ मगर उसके बाद मजदूर नेताओं के आपसी अहम् की लड़ाई तेज हो गई। फर्नांडिस ,ठेंगडी और वामपंथी नेताओं के अस्त होते ही मजदूर आंदोलन भी बिखर गया। आज कोई सर्वमान्य नेता नहीं होने के कारण मजदूरों की लड़ाई ठंडी पड़ गई है। इसके साथ मई दिवस का आयोजन भी रश्मि हो चला है।
अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के नाम से भी जाना जाता है । इसे पूरे विश्व भर में 1 मई को मनाया जाता है। मजदूरों के इस विश्वव्यापी आंदोलन से भारत भी अछूता नहीं रह सका। देश के स्वाधीनता आंदोलन में मजदूरों की उल्लेखनीय भूमिका रही। हमारे यहाँ मई दिवस का प्रथम आयोजन 1923 में हुआ। प्रथम मई को मद्रास के समुद्र तट पर आयोजित प्रथम मई दिवस के समारोह के अध्यक्ष मजदूर नेता श्री चेट्टीयार थे। इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर और संगठित रूप में इसका आयोजन 1928 में हुआ। उस समय से लेकर अब तक हमारे यहाँ मई दिवस का आयोजन प्रतिवर्ष बहुत उत्साह के साथ होता रहा है।
भारत में वर्तमान में एक दर्जन संगठन ऐसे हैं जिन्हें केंद्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है। भारतीय मजदूर संघ, हिंद मजदूर सभा, आल इंडिया ट्रेड यूनियन, लेबर प्रोग्रेसिव यूनियन, इंडियन ट्रेड यूनियन, इंडियन ट्रेड यूनियन काउंसिल, सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन, टेलीकॉम प्रोग्रेसिव यूनियन आदि शामिल हैं आजादी के बाद एस ए डांगे, ज्योतिर्मय बसु ,ए के गोपालन ,नंबूदरीपाद ,एस एम बनर्जी , वि वि गिरी ,ए पी शर्मा ,पीटर अलवारिस ,जॉर्ज फर्नांडिस, दाँतोपंत ठेंगड़ी दत्ता सामंत उमरावमल पुरोहित सरीखे मजदूर नेताओं ने मजदूरों की भलाई के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष किया और उन्हें सफलता भी मिली। मजदूरों को आवास की सुविधा मिली। भोजन का स्तर भी सुधरा। बच्चों को शिक्षा सहित रहन सहन के अच्छे अवसर मिले। मजदूरों के बड़े आंदोलन भी इस अवधि में देखने को मिले। भूख हड़ताल से भी देश गुजरा। कामगारों को अपने हक के लिए तमाम कुर्बानियां देनी पड़ी। इसका असर यह हुआ की मजदूर पढ़ लिखने लगा बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिली।
आजादी के बाद देश ने विज्ञान, कृषि, उद्योग , सूचना प्राद्योगिकी, तकनीक सहित अनेक क्षेत्रो में तरक्की की लेकिन इस तरक्की से कौसो दूर रहे मजदूर वर्ग को जीवन यापन के लिए आज भी कड़ी मशक्क्त से गुजरना पड़ता है । देश के विकास में मजदूर वर्ग का एक बड़ा योगदान होने के बावजूद भी मजदूर वर्ग की निजी जिंदगियाँ विकास से अछूती रही हैं । दुनियां के मजदूरों एक हो का नारा हमने बुलंद किया। अनेक श्रम कानून बनाकर मजदूर वर्ग के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। संगठित क्षेत्रों में मजदूरों को इसका लाभ भी मिला मगर असंगठित क्षेत्र के मजदूर आज भी रोटी कपडा और मकान के लिए तरस रहे है। आजादी के 70 वर्षों के बाद भी हम कामगारों को न्याय नहीं दिला पाए है। मगर असंगठित क्षेत्र के मजदूर आज भी अपने हकों से मरहूम है। आज उनके लिए फर्नांडीज ,गोपालन या ठेंगड़ी जैसा नेता नहीं है। आजादी के शुरू के 50 वर्षों में मजदूरों के हितों के लिए लड़ाई लड़ने वाले नेता थे मगर आज दूर दूर भी कोई संघर्षशील नेता दिखाई नहीं दे रहा है। अब तो मजदूरों को मई दिवस भूलना पड़ेगा या संघर्ष की कमान खुद को ही संभालनी पड़ेगी तभी मई दिवस का सपना पूरा होगा।