संकट में मिलार्ड




पिछले वर्ष पहली बार इतिहास में देश का सर्वोच्च न्यायालय खुद को संकट में बता कर पूरे देश को संकट में डाल दिया था|सरकार से लेकर अफसर तक मंत्री से लेकर संत्री तक,जनता से लेकर नेता तक सब परेशान थे कि ये हो क्या गया ? जो सबके संकट दूर करता है वही आज संकट में है|इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था की न्यायपालिका खतरे में है|परंतु हाल ही में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट खतरे में दिख रहा है|हालांकि इस बार सुप्रीम कोर्ट खतरे में नहीं है खुद मिलार्ड खतरे में हैं| हुआ यह है कि किसी पूर्व महिला कर्मचारी ने मिलार्ड पर बड़े खतरनाक आरोप लगाए हैं यौन उत्पीड़न के|मतलब मी टू की सुनवाई के चक्कर में मिला मीलार्ड खुद मी टू के शिकार बन गये।पूरे मामले पर मिलार्ड को कहीं से सपोर्ट मिलता दिख नहीं रहा है जैसा कि पिछले बार उनके प्रेस कॉन्फ्रेंस पूरे देश में तहलका मचा दिया सभी विपक्षी पार्टियां उनके साथ खड़ी थी।परंतु इस मुद्दे पर सभी मौन साधे हैं।मिलार्ड का बयान भी स्पष्ट कुछ नहीं बता रहा।सिवाय इसके कि उनके खाते में छः लाख रुपये हैं। उनसे ये किसने पूछा कि उनके खाते में कितने रुपए हैं।इससे तो यही संदेश जा रहा है बात कुछ और है।इस मामले की सुनवाई के लिए एक निष्पक्ष बेंच गठित कर उन्होंने न्याय की उचित पहल अवश्य की।परंतु बेंच में उनके खुद के शामिल होने और न्यायिक आदेश का हिस्सा ना होना भी अनेक सवाल खड़े करता है।इस मसले पर कानूनविद् तथा पूर्व न्यायाधीशों की राय भी अलग अलग है पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढ़ा का कहना है कि चीफ जस्टिस को बेंच से अलग रहना चाहिए।वरिष्ठ कानूनविद् राकेश द्विवेदी भी उनसे सहमत हैं।परंतु कुछ न्यायाधीश, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के बेंच में शामिल रहने को उचित ठहराते हैं क्योंकि वह न्यायिक आदेश का हिस्सा नहीं बनेंगे जैसा कि उन्होंने पहले ही कहा है।पूरा मामला मी टू और ब्लैकमेल का लगता है।अब मी टू कितना सच है ?कितना झूठ ? ये तो आरोप लगाने वाली महिलाएं तथा इसका लाभ पाने वाली महिलाएं ही बता सकती हैं|परंतु कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न होना ना सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व का एक कड़वा सच है|भारत में मी टू का मुद्दा बड़े जोर शोर से उठा था परंतु कैबिनेट मंत्री एमजे अकबर पर आरोप लगे और उनके इस्तीफा देते ही यह मामला खत्म हो गया| ऐसे अभियान से क्या फायदा ? जिससे किसी व्यक्ति विशेष को निशाना बनाकर चलाया जाता हो।ठीक वैसे ही मिलार्ड पर आरोप लगाने की खबर भी कुछ चुनिंदा न्यूज़ पोर्टल पर ही भेजी गई जो खुद को आज का सबसे बड़ा हरिश्चंद्र घोषित कर बैठे हैं। जिनमें द वायर कारवांं, स्क्रॉल, द लीफलेट जैसी पोर्टले है। सभी को पता है इनकी मुख्य विचारधारा क्या है ?और ये किसके शह पर चलते हैं। मीडिया हाउस को भी बिना जांच-पड़ताल किए ऑनलाइन हिट्स और सनसनी बनने के लिए इस प्रकार के न्यूज़ को छापना उचित नहीं कहा जाएगा।मिलार्ड ने कहा कि कुछ लोग न्यायपालिका को निष्क्रिय करना चाहते हैं और उन्होंने बड़ी ताकतों की बात भी कही आखिर कौन है बड़ी ताकतें ? उनका खुलासा क्यों नहीं करते ?आप के कटघरे में तो क्या राजा, क्या रंक। क्या जन क्या राजन। सब आप के कटघरे में खड़े हो चुके हैं फिर किस बात का डर है आपको। देश की सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश पर इस प्रकार का आरोप लगना मुख्य न्यायाधीश पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसा ही है।आज भी हिंदुस्तान में कहीं भी कोई बात सच का सच और झूठ का झूठ करने के लिए, दूध का दूध पानी का पानी करने के लिए लोग अदालतों का दरवाजा खटखटाते हैं।क्योंकि उन्हें विश्वास होता है की अदालतों में उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।उस न्यायपालिका के न्यायाधीश पर इस प्रकार का आरोप लगना बहुत ही चिंताजनक है।