अबकी बार मोदी लहर नहीं सुनामी था









          (देवानंद राय)

लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही मोदी विरोधी तभी से कह रहे थे।अब मोदी वाली लहर नहीं है पर जब परिणाम आया तो चीखें निकल गई।सर छुपाने तक का जगह नजर नहीं आ रहा है।अब कह रहे हैं यह लहर नहीं सुनामी है जिसमें पूरा विपक्ष, बाबू- बबुआ, दीदी-भतीजा, कुनबा सहित बह चुका है| कहते हैं कि लहरें भले ही बहुत ज्यादा उठती हो पर वह ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाती| वर्ष 2014 का चुनाव भी कुछ ऐसा ही था विपक्ष संसद में विपक्ष कहलाने के लायक बचा ही नहीं था| फिर भी उसके अहंकार में कोई कमी नहीं आई| कमी सिर्फ जमीन से कटने में आई'जिसका परिणाम यह रहा कि उनकी पूरी राजनैतिक जमीन ही पैरों तले निकल चुकी है जिनकी बची है वह भी अगर सही ढंग से काम में नहीं लगे और फिर से जमीन से नहीं जुड़े तो सुरक्षित सीट का भी अमेठी जैसा हाल होगा। रायबरेली भले ही राजमाता जीत गई हो पर जीत का अंतर कम हो चला है यानी स्मृति जैसी कोई मेहनती नेता उस वंशवाद की राजनीति की भूमि पर मेहनत करें तो नई फसल उगा सकता है। जहां मोदी के सुनामी के तूफान में बंगाल में टीएमसी आधी बची है तो वाम दलों का तो इस तूफान में कुछ बचा ही नहीं वैसे उनके पास खोने के लिए कुछ था भी नहीं। कभी बंगाल देश में राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र हुआ करता था।परंतु आजादी के बाद जितने लोगों ने वहां शासन किया सभी ने अपने निजी स्वार्थ और अपने राजनैतिक जमीन को कब्जे में रखने के लिए बंगाल को धीरे-धीरे राष्ट्रीय राजनीति के पटल से हटा दिया| आप अगर इतिहास पर नजर डालें तो बंगाल आजादी के पहले ही भारतीय राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ चुका था याद करें 1896 में जब बंगाल के ही बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में पहली बार गाया गया था| तो वहीं 27 दिसंबर 1911 को उसी कोलकाता में कांग्रेस के फिर से हुए अधिवेशन में रविंद्र नाथ टैगोर जी द्वारा रचित राष्ट्रगान जन गण मन पहली बार ही गाया गया जिन्हें बाद में देश की आजादी के बाद 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा द्वारा क्रमशः राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रगान का दर्जा मिला| यह थी बंगाल की राष्ट्रीय राजनीति में पकड़ परंतु वर्तमान में बंगाल पूरे देश में अराजकता और तानाशाही का दूसरा नाम बन चुका है। पर नतीजों ने साफ कर दिया कि लोगों को बंगाल को कंगाल होते नहीं अपने पुराने "सोनार बांग्ला" को पाने को बेताब है| तो अब सपा-बसपा के भविष्य का संकट है मैंने पिछले कई लेखों में इस गठबंधन पर लिखा भी था इस गठबंधन से सिर्फ और सिर्फ बीएसपी को फायदा होने वाला है और हुआ भी वही बीएसपी का 0 से 12 सीट पाना उसके लिए संजीवनी बूटी पाने जैसा है| हाथी ने सुस्ती छोड़ थोड़ी तो उठने की कोशिश की पर साइकल तो पूरी तरह पंचर हो चुका है| अब देखना है कि अब वह फिर किसके सहारे उठने की कोशिश करती है पंजा का सहारा तो उसने पहले ही ले चुका हैऔर अब हाथी, साइकिल पर बैठकर उसने उसे पंचर कर छोड़ दिया।वही जाट नेता अजीत सिंह की तो मोदी सुनामी में उनकी खाट खड़ी हो गयी।अखिलेश जी बार-बार कह रहे थे कि 23 के बाद नया पीएम देंगे पर हकीकत यह है कि वे अपने परिवार के सीटों को भी नहीं बचा सके मैनपुरी में भी इस बार सीटों के अंतर ने काफी कुछ बिन कहे कह दिया है। तो वहीं देश की दिल कहे जाने वाली दिल्ली के चप्पे-चप्पे पर खिला कमल बतला रहा है कि किस प्रकार दिल्ली वालों ने झाड़ू से झाड़ूवालों की ही सफाई कर दी और देश का हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में तो मोदी मैजिक ने कुछ लोगों के साथ ऐसी ट्रेजडी की कि वह ताउम्र उसे याद रखेंगे महाराज के नाम से सुशोभित ज्योतिरादित्य गुना से हार गये, राहुल बाबा के साथ संसद में बैठते नजर नहीं आएंगे और ना बाबा उन्हें देखकर आंख मार पाएंगे पर शायद यह काम अब कोई और करें क्योंकि एक सीट कांग्रेस को भी मध्यप्रदेश में मिली है। छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया कहावत को पूरी तरह अपनाते हुए धान के कटोरे के नाम से मशहूर छत्तीसगढ़ ने 11 में से 9 सीटें दे दी तो वही पधारो मारो देश वाले ने ऐसा प्यार दिया कि 6 महीने पहले सरकार बनाने वाले सकते में आ गए पिछले बार 2014 में 25 में से 25 सीट देकर राजस्थान ने इतिहास रचा था अब की बार 25 में से 24 देखकर एक दमदार संदेश दिया है 25 में से एक सीट बीजेपी ने रालोपा पर को देकर गठबंधन के साथ राजस्थान के सबसे बड़े वोट बैंक जाट वोट बैंक को साध लिया यानी एक पंथ दो काज। गुजरात में 26 के साथ 26 सीटें जिता कर पार्टी में 2014 के प्रदर्शन को 2019 में भी बरकरार रखा और यह बताने की कोशिश की कि गुजरात बीजेपी के लिए सोमनाथ मंदिर जैसा ही है जिस पर न जाने कितने वार किए गए फिर भी वह गर्व के साथ ध्वजा फहराए भगवा ध्वज फहराए खड़ा है ठीक वैसे ही गुजरात में विधानसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव के बाद तक गए चाहे वह युवाओं के सहारे लेकर अल्पेश जिग्नेश, हार्दिक का आरक्षण के नाम पर बरगला करने की पूरी कोशिश की पर अंत तक भाजपा ने अपना किला सोमनाथ की तरह अटल और अजय रखा। वहीं चंद्रबाबू जो एग्जिट पोल के बाद आंध्र प्रदेश से पूरे देश को नाप रहे थे जनता ने उनको ही नाप दिया।अब आंध्र प्रदेश भी उनके पास नहीं रहा ।बीजेपी की 2019 की जीत ने एक नया विचार गाढ़ा है कि पहले कहा जाता था कि लहरों से मिली जीत ज्यादा दिनों तक नहीं टिकती पर "मोदी है तो मुमकिन है" ने ये सिद्धांत को ही बदल कर रख दिया और नई परिभाषा देते हुए कहा कि लहरों के बाद सुनामी आती है जिसमें लहरों पर सवाल करने वाले कहीं के नहीं रहते। मोदी जी ने राष्ट्रवाद का रंग कुछ ऐसे चढ़ाया कि गठबंधन के जातीय समीकरण के रंग फीके ही नहीं मोदी सुनामी में साफ हो चुके थे। फिर चाहे वह विश्वस्तरीय कुंभ का आयोजन हो या अयोध्या मसले पर अपनी बेबाक राय या सर्जिकल स्ट्राइक से एयर स्ट्राइक या सीमा पर मारने से लेकर घर में घुसकर मारने तक की रणनीति और इन्हें आम जन तक पहुंचाने का जबरदस्त मैनेजमेंट ने मोदी को वापस लाने में पूरी सहायता की। सबसे बड़ी बात जो "आम जन के मन में किसी दृढ़ विश्वास के तरफ बैठ चुकी है कि मोदी देश के लिए समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं परंतु विपक्ष उन्हें हटाकर सिर्फ अपने लिए करना चाहता है"| कांग्रेस के नए नवेले शिव भक्त बने,  जो कपड़े के ऊपर जनेऊ धारण करने वाले बाबा अपने ही आशीर्वाद से अपने ही पार्टी में भस्मासुर एक टीम तैयार कर रखी है जो हर चुनाव में उनकी पार्टी की लंका लगा देते हैं तो पहले खुद के इस्तीफा की उड़ी-उड़ी खबरें फैला कर सहानुभूति बटोरने से अच्छा है इन भस्मासुर को पहले ठिकाने लगाएं|    बीजेपी ने ये पूरा चुनाव प्रोफेशनल तरीके से लड़ा था हर चुनाव के लिए एक जबरदस्त और ठोस रणनीति की आवश्यकता होती है बीजेपी ने बिल्कुल वही किया हर चरण के लिए नए मुद्दे पर मुख्य फोकस राष्ट्रवाद और सरकारी योजनाओं को आमजन तक पहुंचाने की ताकत बन तो फिर खुले मंच से पीएम मोदी के द्वारा मुट्ठी बंद कर पाक को घर में घुसकर मारने की बात कहना और जनता भी उसी जोश और तेवर को खुद के भीतर देखना और रैलियों का लहरों की जगह सुनामी के तरह भर जाना ने बीजेपी को 2014 की लहर से बड़ी जीत दिलाते हुए 2019 में मोदी सुनामी की तरह भारतीय राजनीति मेंं फिर से छा जाने का भरपूर मौका दिया।









लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही मोदी विरोधी तभी से कह रहे थे।अब मोदी वाली लहर नहीं है पर जब परिणाम आया तो चीखें निकल गई।सर छुपाने तक का जगह नजर नहीं आ रहा है।अब कह रहे हैं यह लहर नहीं सुनामी है जिसमें पूरा विपक्ष, बाबू- बबुआ, दीदी-भतीजा, कुनबा सहित बह चुका है| कहते हैं कि लहरें भले ही बहुत ज्यादा उठती हो पर वह ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाती| वर्ष 2014 का चुनाव भी कुछ ऐसा ही था विपक्ष संसद में विपक्ष कहलाने के लायक बचा ही नहीं था| फिर भी उसके अहंकार में कोई कमी नहीं आई| कमी सिर्फ जमीन से कटने में आई'जिसका परिणाम यह रहा कि उनकी पूरी राजनैतिक जमीन ही पैरों तले निकल चुकी है जिनकी बची है वह भी अगर सही ढंग से काम में नहीं लगे और फिर से जमीन से नहीं जुड़े तो सुरक्षित सीट का भी अमेठी जैसा हाल होगा। रायबरेली भले ही राजमाता जीत गई हो पर जीत का अंतर कम हो चला है यानी स्मृति जैसी कोई मेहनती नेता उस वंशवाद की राजनीति की भूमि पर मेहनत करें तो नई फसल उगा सकता है। जहां मोदी के सुनामी के तूफान में बंगाल में टीएमसी आधी बची है तो वाम दलों का तो इस तूफान में कुछ बचा ही नहीं वैसे उनके पास खोने के लिए कुछ था भी नहीं। कभी बंगाल देश में राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र हुआ करता था।परंतु आजादी के बाद जितने लोगों ने वहां शासन किया सभी ने अपने निजी स्वार्थ और अपने राजनैतिक जमीन को कब्जे में रखने के लिए बंगाल को धीरे-धीरे राष्ट्रीय राजनीति के पटल से हटा दिया| आप अगर इतिहास पर नजर डालें तो बंगाल आजादी के पहले ही भारतीय राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ चुका था याद करें 1896 में जब बंगाल के ही बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में पहली बार गाया गया था| तो वहीं 27 दिसंबर 1911 को उसी कोलकाता में कांग्रेस के फिर से हुए अधिवेशन में रविंद्र नाथ टैगोर जी द्वारा रचित राष्ट्रगान जन गण मन पहली बार ही गाया गया जिन्हें बाद में देश की आजादी के बाद 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा द्वारा क्रमशः राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रगान का दर्जा मिला| यह थी बंगाल की राष्ट्रीय राजनीति में पकड़ परंतु वर्तमान में बंगाल पूरे देश में अराजकता और तानाशाही का दूसरा नाम बन चुका है। पर नतीजों ने साफ कर दिया कि लोगों को बंगाल को कंगाल होते नहीं अपने पुराने "सोनार बांग्ला" को पाने को बेताब है| तो अब सपा-बसपा के भविष्य का संकट है मैंने पिछले कई लेखों में इस गठबंधन पर लिखा भी था इस गठबंधन से सिर्फ और सिर्फ बीएसपी को फायदा होने वाला है और हुआ भी वही बीएसपी का 0 से 12 सीट पाना उसके लिए संजीवनी बूटी पाने जैसा है| हाथी ने सुस्ती छोड़ थोड़ी तो उठने की कोशिश की पर साइकल तो पूरी तरह पंचर हो चुका है| अब देखना है कि अब वह फिर किसके सहारे उठने की कोशिश करती है पंजा का सहारा तो उसने पहले ही ले चुका हैऔर अब हाथी, साइकिल पर बैठकर उसने उसे पंचर कर छोड़ दिया।वही जाट नेता अजीत सिंह की तो मोदी सुनामी में उनकी खाट खड़ी हो गयी।अखिलेश जी बार-बार कह रहे थे कि 23 के बाद नया पीएम देंगे पर हकीकत यह है कि वे अपने परिवार के सीटों को भी नहीं बचा सके मैनपुरी में भी इस बार सीटों के अंतर ने काफी कुछ बिन कहे कह दिया है। तो वहीं देश की दिल कहे जाने वाली दिल्ली के चप्पे-चप्पे पर खिला कमल बतला रहा है कि किस प्रकार दिल्ली वालों ने झाड़ू से झाड़ूवालों की ही सफाई कर दी और देश का हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में तो मोदी मैजिक ने कुछ लोगों के साथ ऐसी ट्रेजडी की कि वह ताउम्र उसे याद रखेंगे महाराज के नाम से सुशोभित ज्योतिरादित्य गुना से हार गये, राहुल बाबा के साथ संसद में बैठते नजर नहीं आएंगे और ना बाबा उन्हें देखकर आंख मार पाएंगे पर शायद यह काम अब कोई और करें क्योंकि एक सीट कांग्रेस को भी मध्यप्रदेश में मिली है। छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया कहावत को पूरी तरह अपनाते हुए धान के कटोरे के नाम से मशहूर छत्तीसगढ़ ने 11 में से 9 सीटें दे दी तो वही पधारो मारो देश वाले ने ऐसा प्यार दिया कि 6 महीने पहले सरकार बनाने वाले सकते में आ गए पिछले बार 2014 में 25 में से 25 सीट देकर राजस्थान ने इतिहास रचा था अब की बार 25 में से 24 देखकर एक दमदार संदेश दिया है 25 में से एक सीट बीजेपी ने रालोपा पर को देकर गठबंधन के साथ राजस्थान के सबसे बड़े वोट बैंक जाट वोट बैंक को साध लिया यानी एक पंथ दो काज। गुजरात में 26 के साथ 26 सीटें जिता कर पार्टी में 2014 के प्रदर्शन को 2019 में भी बरकरार रखा और यह बताने की कोशिश की कि गुजरात बीजेपी के लिए सोमनाथ मंदिर जैसा ही है जिस पर न जाने कितने वार किए गए फिर भी वह गर्व के साथ ध्वजा फहराए भगवा ध्वज फहराए खड़ा है ठीक वैसे ही गुजरात में विधानसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव के बाद तक गए चाहे वह युवाओं के सहारे लेकर अल्पेश जिग्नेश, हार्दिक का आरक्षण के नाम पर बरगला करने की पूरी कोशिश की पर अंत तक भाजपा ने अपना किला सोमनाथ की तरह अटल और अजय रखा। वहीं चंद्रबाबू जो एग्जिट पोल के बाद आंध्र प्रदेश से पूरे देश को नाप रहे थे जनता ने उनको ही नाप दिया।अब आंध्र प्रदेश भी उनके पास नहीं रहा ।बीजेपी की 2019 की जीत ने एक नया विचार गाढ़ा है कि पहले कहा जाता था कि लहरों से मिली जीत ज्यादा दिनों तक नहीं टिकती पर "मोदी है तो मुमकिन है" ने ये सिद्धांत को ही बदल कर रख दिया और नई परिभाषा देते हुए कहा कि लहरों के बाद सुनामी आती है जिसमें लहरों पर सवाल करने वाले कहीं के नहीं रहते। मोदी जी ने राष्ट्रवाद का रंग कुछ ऐसे चढ़ाया कि गठबंधन के जातीय समीकरण के रंग फीके ही नहीं मोदी सुनामी में साफ हो चुके थे। फिर चाहे वह विश्वस्तरीय कुंभ का आयोजन हो या अयोध्या मसले पर अपनी बेबाक राय या सर्जिकल स्ट्राइक से एयर स्ट्राइक या सीमा पर मारने से लेकर घर में घुसकर मारने तक की रणनीति और इन्हें आम जन तक पहुंचाने का जबरदस्त मैनेजमेंट ने मोदी को वापस लाने में पूरी सहायता की। सबसे बड़ी बात जो "आम जन के मन में किसी दृढ़ विश्वास के तरफ बैठ चुकी है कि मोदी देश के लिए समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं परंतु विपक्ष उन्हें हटाकर सिर्फ अपने लिए करना चाहता है"| कांग्रेस के नए नवेले शिव भक्त बने,  जो कपड़े के ऊपर जनेऊ धारण करने वाले बाबा अपने ही आशीर्वाद से अपने ही पार्टी में भस्मासुर एक टीम तैयार कर रखी है जो हर चुनाव में उनकी पार्टी की लंका लगा देते हैं तो पहले खुद के इस्तीफा की उड़ी-उड़ी खबरें फैला कर सहानुभूति बटोरने से अच्छा है इन भस्मासुर को पहले ठिकाने लगाएं|    बीजेपी ने ये पूरा चुनाव प्रोफेशनल तरीके से लड़ा था हर चुनाव के लिए एक जबरदस्त और ठोस रणनीति की आवश्यकता होती है बीजेपी ने बिल्कुल वही किया हर चरण के लिए नए मुद्दे पर मुख्य फोकस राष्ट्रवाद और सरकारी योजनाओं को आमजन तक पहुंचाने की ताकत बन तो फिर खुले मंच से पीएम मोदी के द्वारा मुट्ठी बंद कर पाक को घर में घुसकर मारने की बात कहना और जनता भी उसी जोश और तेवर को खुद के भीतर देखना और रैलियों का लहरों की जगह सुनामी के तरह भर जाना ने बीजेपी को 2014 की लहर से बड़ी जीत दिलाते हुए 2019 में मोदी सुनामी की तरह भारतीय राजनीति मेंं फिर से छा जाने का भरपूर मौका दिया।