बदनीयती से नहीं प्यार से आगे बढे

(बाल मुकुन्द ओझा)


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में प्रचंड बहुमत के बाद अपने नेक इरादे जग जाहिर कर दिए है। मोदी ने कहा देशवासियों ने मुझे जो दायित्व दिया है, इसे मेरा वादा, संकल्प या प्रतिबद्धता मानिए। आपने फिर से मुझे जो काम दिया है, आने वाले दिनों में मैं बदइरादे से या बदनीयत से कोई काम नहीं करूंगा। काम करते-करते गलती हो सकती है लेकिन बद-इरादे या बद-नीयत से कोई काम नहीं करूंगा। आपने मुझे इतना बड़ा भरोसा दिया है कि मैं मेरे लिए कुछ नहीं करूंगा.और तीसरी बात, मेरे समय का पल-पल, मेरे शरीर का कण-कण सिर्फ और सिर्फ देशवासियों के लिए है।
मोदी का देशवासियों को यह विश्वास हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती को दर्शाता है। इतने जबरदस्त बहुमत के बाद भी मोदी को अभिमान छू भी नहीं गया यह बहुत अच्छी और बड़ी बात है। दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने जनादेश का सम्मान करते हुए मोदी को बधाई दी और कहा वे नफरत के खिलाफ प्रेम और प्यार की बात करेंगे।
निश्चय ही हमारे नेताओं ने नफरत के चुनावी बोलों के विरुद्ध सहिष्णुता की बात कह कर न केवल अपने कद को बढ़ाया है अपितु लोकतान्त्रिक मान मर्यादा को भी आगे बढ़ाया है। यह सत्य है भारत सदा सर्वदा से प्यार और मोहब्बत से आगे बढ़ा है। हमारा इतिहास इस बात का गवाह है हमने कभी असहिष्णुता को नहीं अपनाया। हमने सदा सहिष्णुता के मार्ग का अनुसरण कर देश को मजबूत बनाया। आज एक बार फिर हमारे कर्णधार नेताओं ने एक स्वर से प्यार और मोहब्बत की बोली बोल कर देशवासियों को विश्वास दिलाया है की देश की प्रगति और सहिष्णुता के मामलों में वे एक है और एक होकर ही देश को आगे बढ़ाएंगे।
सहिष्णुता का अर्थ है सहन करना और असहिष्णुता का अर्थ है सहन न करना। सब लोग जानते हैं कि सहिष्णुता आवश्यक है और चाहते हैं कि सहिष्णुता का विकास हो। सहिष्णुता केवल उपदेश या भाषण देने मात्र से नहीं बढ़ेगी। सहिष्णुता भारतीय जनजीवन का मूलमंत्र है। मगर देखा जा रहा है कि समाज में सहिष्णुता समाप्त होती जारही है और लोग एक दूसरे के खिलाफ विषाक्त वातावरण बना रहे है जिससे हमारी गौरवशाली परम्पराओं के नष्ट होने का खतरा मंडराने लगा है। सहिष्णुता को लेकर लोकसभा चुनावों के दौरान देश की सियासत गरमाई। नेताओं के जहरीले बयानों और भाषणों से वातावरण विषाक्त हुआ। इससे हमारी लोकतांत्रिक परम्परायें कमजोर और क्षतिग्रस्त हुई हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पदों पर विराजमान व्यक्तियों सहित देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए जिस प्रकार की शब्दावली का उपयोग और प्रयोग हुआ वह हम सब के लिए बेहद चिंता और निराशाजनक है। सोशल मीडिया इसमें सबसे आगे है जहाँ ऐसे ऐसे शब्दों को देखा जा रहा है जिनकों इस आलेख में लिखा जाना कतई मुनासिब नहीं है। इसके लिए कोई एक पक्ष दोषी नहीं है। इस मैली गंगा में सभी अपना हाथ धो रहे है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर हो रही बहस घृणास्पद और निम्नस्तरीय है।
जीवन में आगे बढ़ने के लिए सहनशील होना आवश्यक है। सहनशीलता व्यक्ति को मजबूत बनाती है, जिससे वह बड़ी से बड़ी परेशानी का डटकर मुकाबला कर सकता है। अक्सर देखा जाता है हम छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा कर देते हैं, जिससे बात आगे बढ़ जाती है और अनिष्ट भी हो जाता है। ऐसी ही छोटी-छोटी बातों को मुस्कुराते हुए सुनने वाला व्यक्ति ही सहनशील है। सहनशीलता का शब्दिक अर्थ है शरीर और मन की अनुकूलता और प्रतिकूलता को सहन करना। मानव व्यक्तित्व के विकास और उन्नयन का मुख्य आधार तत्व सहिष्णुता है। स्वयं के विरूद्ध किसी भी आलोचना को स्वीकार नहीं करना मोटे रूप में असहिष्णुता है। सहिष्णुता मनुष्य को दयालु और सहनशील बनाती है वहीं असहिष्णुता मनुष्य को अहंकारी बनाती है। अहंकार अंधकार का मार्ग है जो मनुष्य और समाज का सर्वनाश कर देती है।
सहिष्णुता ही लोकतंत्र का प्राण है। मनुष्य को सहनशील और संस्कारी बनाने के लिए प्रारम्भ से ही सहिष्णुता की शिक्षा दी जानी चाहिये ताकि वे बड़े होकर चरित्रवान और संस्कारी बने। हम बड़ी बड़ी बातें सहनशीलता की अवश्य करते है मगर उस पर अमल नहीं करते। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने कथनी और करनी के भेद को मिटाकर सही मायनों में सहिष्णुता को अपनाएं तभी देश और समाज को आगे बढ़ा पाएंगे।