चुनाव आयोग का अभूतपूर्व कदम






पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान हो रहे हिंसक वारदातों और अशांति के बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा के बाद चुनाव आयोग ने सख्त रुख अपनाया है। चुनाव आयोग ने अब बंगाल के 9 संसदीय क्षेत्रों में चुनाव प्रचार पर बैन लगा दिया है। आयोग के फैसले का सीधा प्रभाव सातवें चरण के चुनाव पड़ेगा जिसके तहत दमदम, बारासात, बशीरहाट, जयनगर, मथुरापुर, जादवपुर, डायमंड हार्बर, दक्षिण और उत्तरी कोलकाता में अब सीधे वोटिंग ही होगी। यह प्रतिबंध गुरुवार रात 10 बजे से लागू माना जाएगा। वास्तव में देखा जाये तो इस बार लोकसभा चुनाव में कई अप्रत्याशित चुनौतियों के अलावा चुनाव आयोग को अपनी निष्पक्षता व पारदर्शिता पर देश-दुनिया के भरोसे को बरकरार रखने के लिये भी जूझना पड़ा है। विपक्ष की ओर से ईवीएम में गड़बड़ी का जो आरोप लगाया जाता रहा है वह सीधे तौर पर चुनाव आयोग के कामकाज पर सवाल खड़ा करना ही है। मतदान की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के अलावा चुनाव आयोग को यह भी साबित करना पड़ा है कि वह किसी के दबाव में नहीं है। हालांकि इस चुनौती से निपटने के लिये और विपक्षी दलों के भरोसे और विश्वास को कायम रखने के लिये चुनाव आयोग को कई ऐसे कदम भी उठाने पड़े जो सत्तारूढ़ भाजपा को नागवार भी गुजरे। मसलन अमित शाह के रोड शो में हुई हिंसा के मामले को लेकर लिये भाजपा ने सूबे की ममता सरकार के साथ ही चुनाव आयोग की नीतियों व कार्यप्रणाली को भी बराबर का दोषी करार दिया है। भाजपा ने सीधे शब्दों में चुनाव आयोग के कामकाज पर उंगली उठाते हुए कहा है कि वहां उसके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है और उसको परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। भाजपा ने सवालिया लहजे में पूछा कि जब दो दिन पूर्व ही ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से अपने भाषण में धमकी दी कि मैं इंच-इंच बदला लूंगी तो उसी वक्त चुनाव आयोग ने इसका संज्ञान क्यों नहीं लिया? ममता के प्रचार को प्रतिबंधित क्यों नहीं किया गया? भाजपा के मुताबिक जिन प्रदेशों में व्यवस्थाएं ठीक हैं वहां तो चुनाव सही तरीके से हो रहे हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में उत्पात मचा हुआ है और वहां चुनाव आयोग मूक दर्शक बनी हुई है। पार्टी ने स्पष्ट शब्दों में चुनाव आयोग से जानना चाहा कि आखिर उसने ऐसे दो अलग मानक क्यों बनाए हुए हैं जिसमें देश भर में जितने हिस्ट्रीशीटर हैं, पैरोल पर हैं या फरार हैं, इन्हें चुनाव के दौरान हिरासत में लिया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में 107 का बांड लेकर छोड़ दिया जाता है। भाजपा ने चुनाव आयोग से शीघ्र हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए अनुरोध किया है कि कम से कम वे यह सुनिश्चित करें कि सातवें चरण का मतदान पूरी तरह निष्पक्ष हो। भाजपा की ये बातें इसलिये भी गंभीर हो जाती हैं क्योंकि यह किसी अन्य ने नहीं बल्कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने औपचारिक व सार्वजनिक तौर पर कही। शाह ने पश्चिम बंगाल में उनके रोड शो पर तृणमूल कांग्रेस द्वारा किये गए हमले, आगजनी और पथराव पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए ममता दीदी और तृणमूल सरकार पर जम कर हमला बोला। साथ ही, चुनाव आयोग द्वारा पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए सभी छः चरणों के मतदान में तृणमूल समर्थकों द्वारा की गई व्यापक हिंसा पर मूकदर्शक बनने का आरोप लगाते हुए आश्चर्य व्यक्त किया कि आखिर चुनाव आयोग कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा? शाह ने चुनाव आयोग की रीति-नीति को अपने सीधे निशाने पर लेते हुए कहा कि जिस प्रदेश में व्यवस्थाएं ठीक हैं वहां तो चुनाव सही तरीके से हो रहे हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में, जहां उत्पात मचा हुआ है, चुनाव आयोग मूक प्रेक्षक बनी हुई है। शाह ने दलील दी कि देशभर में जितने हिस्ट्रीशीटर हैं, पैरोल पर छूटे हैं या फिर फरार हैं, इन्हें चुनाव के दौरान हिरासत में लिया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में 107 का बांड लेकर छोड़ दिया जाता है। आखिर चुनाव आयोग ने ऐसे दो मानक क्यों बनाए? पश्चिम बंगाल में एक भी हिस्ट्रीशीटर को चुनाव के समय हिरासत में नहीं लिया गया, चुनाव आयोग और उनके पर्यवेक्षक इस पर मौन क्यों हैं? पर्यवेक्षक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जब तक गुंडों को हिरासत में नहीं लिया जाता, तब तक पश्चिम बंगाल में सही से चुनाव नहीं हो सकते, इस तरह की रिपोर्ट पहले से है तो चुनाव आयोग ने अपराधियों  को हिरासत में लेने के आदेश पारित क्यों नहीं किये? शाह ने साफ शब्दों में कहा कि यदि इसी प्रकार से चुनाव होने हैं तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवालिया निशान खड़ा होता है। शाह ने चुनाव आयोग से अपील करते हुए कहा कि वह कम से कम यह सुनिश्चित करे कि सातवें चरण का मतदान पूरी तरह निष्पक्ष हो। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि दो दिन पूर्व ही ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से अपने भाषण में धमकी दी कि मैं इंच-इंच बदला लूंगी तो उसी वक्त चुनाव आयोग ने इसका संज्ञान क्यों नहीं लिया? ममता के प्रचार को प्रतिबंधित क्यों नहीं किया गया? यानि विपक्ष की ओर से तो चुनाव आयोग को जली-कटी सुननी ही पड़ रही थी लेकिन अब सत्तारूढ़ दल ने भी सीधे तौर पर उसकी ओर आरोपों की बौछार कर दी। ऐसे में स्वाभाविक था कि आयोग को कड़ा और बड़ा कदम उठाना पड़ता। ऐसे में अब आयोग ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए ऐतिहासिक कदम उठाने की जो पहल की है वह आवश्यक भी था और अपेक्षित भी। लेकिन आयोग ने पश्चिम बंगाल के मामलों को कितनी गंभीरता से लिया है इसका सहज अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है उसका चाबुक सिर्फ राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार पर ही नहीं चला है बल्कि उसने उन अधिकारियों पर भी कड़ी कार्रवाई की है जो सूबे के हालातों को संभालने और शांतिपूर्ण व निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित कराने में नाकाम रहे। आयोग ने एडीजी सीआईडी राजीव कुमार को हटाकर गृह मंत्रालय से अटैच कर दिया गया है वहीं प्रिंसिपल सेक्रेटरी गृह और स्वास्थ्य मंत्रालय को भी हटा दिया है जिन पर चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का आरोप है। हालांकि अब चुनाव का अंतिम चरण ही बचा है लिहाजा इस बार प्रचार पर प्रतिबंध लगाने के लिये इस्तेमाल की गई धारा 324 को आगे नजीर के तौर पर ही पेश किया जा सकेगा। लेकिन आयोग ने साफ कर दिया है कि ऐसा पहली बार हुआ है लेकिन अंतिम बार नहीं।