दो से दोबारा की यात्रा




(देवानंद राय)

सालों पहले एक पार्टी लोकसभा चुनाव में मात्र और मात्र दो सीटें पाती है। क्या उस वक्त किसी ने कल्पना किया होगा कि कभी यह पार्टी पूरे देश में चुनाव जीत जाएगी ? इसका जवाब रहा होगा नहीं ! बिल्कुल नहीं ! ऐसा सोचना भी उस वक्त बेवकूफी होगी रही होगी |चलिए किसी ने 2004 के बाद दोबारा बीजेपी को जीवित होने का संभावना देखा था| इसका भी जवाब पहले वाले प्रश्न की तरह ना ही रहा होगा| पर राजनीति संभावनाओं का खेल है|जहाँँ 2004 का चुनाव जब बीजेपी का नारा फीलगुड जो उनके लिए वेरी बेड साबित हुआ और शाइनिंग इंडिया के चक्कर में बीजेपी पूरे इंडिया में खुद को ही खोजती नजर आई पर उस दो से लेकर इस ऐतिहासिक जीत और 2019 में दोबारा वापसी में। पहले उसने शुरुआत में अपना जनाधार खोया था पर बीजेपी ने अपने सिद्धांतों का आधार कभी नहीं खोया। राष्ट्र उसके लिए कल भी सर्वोच्च था जब स्वर्गीय श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जनसंघ की स्थापना की थी और राष्ट्रवाद तब भी उतना ही प्रखर और राष्ट्रभक्ति से लबालब था जब पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी थी ।आज भी राष्ट्र प्रथम और राष्ट्रवाद सर्वोपरि की संकल्पना बीजेपी में जीवंत है और उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने त्याग और तपस्या से बरकरार रखा है।आज पूरे भारत में एक बार फिर राष्ट्रवाद की भावना जो पिछले दस वर्षों में मौन हो चुकी थी कहीं उसकी लौ बुदबुदाहट के साथ खत्म होने वाली थी। जिसे लोग बस भूलने वाले ही थे।उस लौ को फिर से बीजेपी ने जलाया उसे बुझने नहीं दिया और इस बात पर तो अब विपक्ष के नेता भी मुहर लगा रहे हैं। अब तो शशि थरूर जैसे कांग्रेसी नेता भी कह रहे हैं कि हमें अब इस बात पर मंथन करना होगा कि राष्ट्रवाद पर सिर्फ बीजेपी का अधिकार ना हो यह बात बिल्कुल सही है कि देशभक्ति पर किसी विचारधारा या दल का अधिकार नहीं होता। पर "भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह" "भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जारी तक" जैसे नारों का स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति बताकर उसे अलग तरह के राष्ट्रवाद से जोड़ना भी कतई उचित नहीं है| जिन लोगों ने बीजेपी के राष्ट्रवाद को छद्म राष्ट्रवाद, उग्र राष्ट्रवाद और न जाने क्या क्या कहकर प्रोपेगंडा बनाया था ? जनता ने थोड़ा बहुत नहीं बल्कि खुलकर स्पष्ट कह दिया है असली जनादेश देकर बतला दिया है कि असली राष्ट्रवाद क्या है ?और वह किस तरह के राष्ट्रवाद के साथ है|1984 के आठवीं लोकसभा चुनाव को आज बीजेपी न भूली थी, ना कभी भूलना चाहेगी उस लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात्र दो सीट के पूरे देश में मिली थी।फिर 1996 में बीजेपी बड़े दल के रूप में उभरी परंतु मात्र संसद में 13 दिन के लिए। 13 दिन तक उन्होंने सरकार चलाई।पर "हार नहीं मानूंगा" को सत्य में बदलते हुए 1998 के 12वें लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का निर्माण हुआ और अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनी इसके बाद 1999 में हुए 13वें लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अर्थात राजद को पुनः पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ और उसने अपना पूरा कार्यकाल पूर्ण करके पहली बार गैर कांग्रेसी पार्टी बनने का गौरव प्राप्त किया जिसने केंद्र में 5 वर्ष पूरे किए और बीजेपी को यहीं से एक मजबूत पहचान मिलती हुई नजर आई फिर 2004 के आम चुनाव में हार और दस वर्ष के राजनीतिक वनवास के बाद बीजेपी ने जिस प्रकार मोदी मैजिक के सहारे वापसी की है और 2014 की जीत से बड़ी जीत 2019 में हासिल की है राजनीतिक पंडितों के लिए एक शोध का विषय हो सकता है। राजनीति बेशक कड़वाहट के लिए याद की जाती हो परंतु कभी-कभार कुछ लोगों के मुख से कुछ ऐसे भी सत्य निकल कर आ जाते हैं जो उस वक्त तो नहीं कुछ समय बाद अवश्य ही हकीकत में बदलते दिखाई देते हैं। 22 वर्ष पहले 1997 में वाजपेई जी की सरकार गिरने पर वाजपेई जी ने कहा जो कहा था वह सत्य होता दिख रहा आज के जी ने कहा था कि कांग्रेसी यह कतई ना भूले आज भले ही मेरी सरकार एक वोट के कारण गिर गयी और हमारी संख्या कम होने पर आज कांग्रेसी हम पर हंस रहे हैं पर यह कतई न भूले कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब पूरा देश कांग्रेस पर हंसेगा और पूरे देश में बीजेपी की सरकार होगी। आज की वास्तविकता, आज के हकीकत से उस बीते कल के शब्दों में मिलान कर देखिए तस्वीर एकदम सीधी और साफ नजर आएगी। 2019 में बीजेपी को मिली जीत एक के बाद एक नए रिकॉर्ड बनाते जा रही है जहां इस जीत के साथ बीजेपी 1984 में कांग्रेस के बाद अकेले 300 लोकसभा सीट जीतने वाली पहली पार्टी बनी तो वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेहरू तथा इंदिरा जी के बाद लगातार पूर्ण बहुमत से दोबारा निर्वाचित होने वाले प्रधानमंत्री भी बन गए। मोदी की यह जीत भारतीय राजनीति में एक अलग तरह का ट्रेड लाने वाली है। मोदी जी ने खुद को एक ऐसे नेता की तरह पेश किया जो जरूरी और साहसी कदम उठाने में राजनीतिक नफा-नुकसान नहीं देखता नहीं तो कौन ऐसा प्रधानमंत्री होगा ? जो अपने प्रथम कार्यकाल में ही नोटबंदी और जीएसटी जैसे देश के आम से लेकर खास तक को हिलाने वाले कठोर परंतु जरूरी कदम उठाता है|बीजेपी ने ना तो कभी मुसलमानों को ना तो धमकाया है ना  उनसे जबरदस्ती एकमुश्त एकतरफा वोट की मांग की पर पिछले कई दशकों से एक भ्रम फैलाया गया कि बीजेपी मुस्लिम विरोधी है।आज पूरे देश की मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक पर एक स्वर में मोदी जी के साथ हैं तो मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बनाकर उनके वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोग खुद राजनीति में अब अल्पसंख्यक बन चुके हैं। बीजेपी ने हर चुनाव दर चुनाव खुद को बदला है। खुद में बदलाव लाए मोदी और शाह की जोड़ी चाहे जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। परंतु इस जीत के पीछे उनकी जी तोड़ मेहनत भी है। यह जीत कोई अप्रत्याशित जीत नहीं है इसमें मोदी और शाह की सतत चलने वाली चुनावी रणनीति रैली और काम को धरातल तक पहुंचाने की जबरदस्त मैनेजमेंट भी है। तो वहीं दूसरी ओर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश की हर मिट्टी कांग्रेस में कभी रची बसी थी।आज देश के बीस राज्यों में वह शून्य में भी सिमट चुकी है ।ऐसा लगता है कि मानो आर्यभट्ट ने शून्य का आविष्कार कांग्रेस के लिए ही किया था। क्योंकि जिस प्रकार से उनके अध्यक्ष रैलियों में पूरे देश का गुणा-गणित गड़बड़ करते हैं जिन के आंकड़े सुनकर गणितज्ञ रो उठते हैं और  चुनावी गणित सेट करने वाले उनके एजेंट उनका परफारमेंस देख कर सो जाते हैं तो फिर उस कांग्रेस के लिए क्या कहा जाए ?जिन्होंने अपनी हार की पटकथा खुद ही लिखी है| चुनावी लड़ाई को उन्होंने खुद ऐसे लड़ाई बना दिया जैसे मानो उनकी घर की निजी संपत्ति पर किसी ने धावा बोल दिया| एग्जिट पोल के बाद तो कुछ लोग ऐसे एक्टिव हुए थे जैसे कुछ घंटों में वही प्रधानमंत्री बन जाएंगे उनमें से ही सर्व प्रमुख आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू थे जो दिल्ली के चंदाबाबू से लेकर अमेठी को न्याय दिलाने के चक्कर में वायनाड भाग जाने वाले राहुल बाबा से लेकर यूपी में बाबू-बबुआ का महागठबंधन के नाम पर ठगबंधन करने वाले अखिलेश-मायावती से लेकर सभी विपक्ष के नेताओं को एकजुट करने में लगे रहे और हुआ कुछ ऐसा कि "ना खुदा मिले ना विसाले सनम" केंद्र की तो बात ही छोड़िए वह अपने राज्य से भी खुद हाथ धो बैठे|सोशल मीडिया पर तो लोगों ने कुछ अलग तरह का ही माहौल बना रखा है।इस चुनाव में एक बात जो सबसे स्पष्ट हुई वह यह थी कि अब देश की नीति सिर्फ एलीट क्लास वालों के हाथ में नहीं रहने वाली सुदूर किसी गांव में बैठा हुआ नौजवान भी आज आपसे देश की नीति, विदेश नीति, राजनीति पर तर्क के साथ तथ्य के साथ आपके साथ बहस कर सकता है। यह उन चंद एसी में बैठ कर देश का एजेंडा सेट करने वाले पत्रकारों के लिए खतरे की घंटी भी है। सोशल मीडिया पर जहां एक ओर आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू अपना चांद खो चुके हैं तो वहीं जगमोहन रेड्डी को उभरता हुआ सितारा बताया जा रहा है और सबसे समझदार की श्रेणी में जनता नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे को रख रही है साथ में नवीन पटनायक भी इस श्रेणी में आते हैं और उनके साथ बीजेपी भी उड़ीसा में आई फैनी तूफान के चक्कर में राजनीति ना करके लोकतंत्र में एक नई मिसाल पेश की जो भारतीय राजनीति में कभी-कभार ही देखने को मिलता है। जिसका परिणाम नवीन पटनायक ने यह कहकर बतला दिया कि वह किसके साथ हैं उन्होंने कहा जो जीता वही सिकंदर और खुद की धरातल खोने के बाद रसातल की ओर जा रहे लालू परिवार, चौटाला परिवार, शरद पवार परिवार जो लोग राजनीति में सेवा के नाम से आए थे परंतु राजनीति में जमने के बाद उन्होंने राजनीति को परिवारिक सेवा का केंद्र बना दिया इनकी ऐसी दुर्गति होना जरूरी भी था।रामविलास पासवान का फिर से सदाबहार जीत हासिल करना यह बतलाता है कि वाकई में वे राजनीतिक जीत हासिल करने की यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हैं। वास्तव में 2019 की लड़ाई  टुकड़े टुकड़े गैंग और सबका साथ सबका विकास की बात कहने वालों के साथ थी। यह लड़ाई "खान मार्केट"और "विदेशी मीडिया" के दम पर मोदी के खिलाफ नफरत भरे एजेंडा बनाने वाले और गांव में बैठे युवा जो इस एजेंडा से खुलेआम लड़ रहा था निस्वार्थ देश सेवा में लगा था उसके साथ भी था। यह लड़ाई उन चंद समाज के ठेकेदारों के साथ ही था जो सरकारी योजनाओं में बंदरबांट फैलाते थे पर अब हर कोई उज्जवला कार्यक्रम के तहत सिलेंडर पा रहा है आधार से चुटकी में खाता खोल रहा है तो मोबाइल बैंकिंग से एक क्लिक में पैसों का ट्रांसफर कर रहा है ।वह अब लंबी लाइनों में खड़ा होना भूल चुका है पर अपने स्पष्ट जनादेश से  इन चंद समाज के ठेकेदारों और ठगबंधन के नेताओं के हार की लाइन लगा चुका है।कुल मिलाकर यह चुनाव एक नए राष्ट्र के निर्माण के लिए बीजेपी के द्वारा मोदी जी के नाम पर छोड़ा गया अश्वमेध घोड़ा था जो पूरे देश में निर्भीकता और निडरता के साथ चारों ओर दौड़ा और हर जगह विजयश्री दिलवाई।