मामूली नहीं है मसूद पर मिली जीत






आतंकवाद के खिलाफ जारी निर्णायक लड़ाई में भारत को आखिरकार वह कामयाबी मिल ही गई जिसका अर्से से इंतजार था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को औपचारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत सैयद अकबरूद्दीन ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया है कि मसूद अजहर का नाम संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में जुड़ गया है। सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि इसके लिए सभी ने मिलकर पहल की और भारत के लिए यह एक बड़ी सफलता है। सैयद अकबरूद्दीन ने ट्वीट कर कहा कि इस फैसले में छोटे, बड़े सभी साथ आए और मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध सूची में शामिल करते हुए अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया गया। यह पूछे जाने पर कि क्या चीन ने अपना स्टैंड वापस ले लिया, अकबरूद्दीन ने कहा, 'हां, डन।' सच पूछा जाये तो मसूद के मसले पर भारत को हासिल हुई जीत बेहद ही असाधारण, उत्साहवर्धक और आतंक के खिलाफ निर्णायक है। यह तब संभव संभव हो पाया है जब चीन ने सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति में मसूद को ब्लैकलिस्ट करने के लिये लाए गए प्रस्ताव पर परंपरागत तौर पर हस्तक्षेप करने से अपने कदम पीछे खींच लिए। वह चीन ही था जो अब तक मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित किये जाने के प्रस्तावों पर बार-बार अड़ंगा लगा रहा था। वर्ना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की पिछले 10 साल में चार बार कोशिशें हो चुकी थीं। सबसे पहले 2009 में भारत ने प्रस्ताव रखा था। फिर 2016 में भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध परिषद के समक्ष दूसरी बार प्रस्ताव रखा। इन्हीं देशों के समर्थन के साथ भारत ने 2017 में तीसरी बार यह प्रस्ताव रखा। इन सभी मौकों पर चीन ने वीटो का इस्तेमाल कर ऐसा होने से रोक दिया था। आखिरकार बीते दिनों अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की ओर से जैश सरगना अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिये लाए गए प्रस्ताव पर चीन ने मार्च में भी अड़ंगा लगा दिया था। लेकिन अब चीन ने इस मामले में वैश्विक जनमत का सम्मान करते हुए अपना अड़ियल रूख बदल लिया और इस मामले में हस्तक्षेप करके पाकिस्तान के हितों की रक्षा करने से परहेज बरत लिया है। खूंखार आतंकी मसूद अजहर जैश-ए-मोहम्मद का सरगना है जो पाकिस्तान के बहावलपुर का रहने वाला है। मसूद अजहर को साल 1994 में श्रीनगर पर हमले की योजना बनाते हुए गिरफ्तार किया गया था। लेकिन, 1999 में कंधार विमान अपहरण कांड के बाद भारत सरकार को उसे रिहा करना पड़ा था। इसके अगले ही साल मार्च 2000 में हरकत-उल-मुजाहिदीन में विभाजन करावाकर उसने जैश-ए-मोहम्मद नाम से आतंकवादी संगठन बना लिया। मसूद अजहर भारत में अब तक कई आतंकी वारदातों को अंजाम दे चुका है। 13 दिसंबर 2001 को मसूद अजहर ने ही भारतीय संसद पर हमला कराया था। इससे पहले अक्टूबर 2001 में ही उसने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर भी आतंकी हमला कराया था। 2 जनवरी 2016 को पंजाब के पठानकोट में वायुसेना की छावनी पर हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड भी मसूद अजहर ही था। इसके अलावा, मसूद अजहर द्वारा संचालित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ही बीते 14 फरवरी को पुलवामा में सुरक्षा बलों के काफिले पर हुए आत्मघाती आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 40 जवान शहीद हो गए थे। वास्तव में देखा जाए तो मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया जाना भारत सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत है क्योंकि भारत काफी लंबे समय से और खास तौर पर 14 फरवरी को पुलवामा में सुरक्षा बलों के काफिले पर हुए आत्मघाती आतंकी हमले के बाद से इसके लिए जोर देता आ रहा है। लेकिन चीन और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों के कारण भारत की कोशिशें परवान नहीं चढ़ पा रही थीं। कायदे से देखा जाये तो आज चीन ने इस मामले में जिस स्वागतयोग्य रूख का प्रदर्शन किया है उसके पीछे भारत सरकार की कूटनीतिक कोशिशों का असर तो है ही, लेकिन इसमें पाकिस्तान की उस नीति का भी बड़ा असर है जिसके तहत वह सुधरने के बजाय सिर्फ सुधरने का दिखावा करके आतंक के मामले में दोहरी नीति अपना रहा है। इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि पाकिस्तान को चीन ने सुधरने के कई मौके दिये। हर बार उसने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर पाकिस्तान के हितों का बचाव किया ताकि पाकिस्तान सुधर जाए और उसकी फजीहत ना हो। लेकिन अब चीन को भी यह यकीन हो चला है कि पाकिस्तान की फितरत ही नहीं है सुधरने की। तभी तो उसने पाकिस्तान को सिर्फ अपने उपनिवेश सरीखा इस्तेमाल करने की राह पकड़ ली है और पाक की संप्रभु राष्ट्र के तौर पर छवि दर्शाने में अपनी मदद मुहैया कराना बेद कर दिया है। पाकिस्तान की नीतियों से चीन की नाराजगी का ही असर है कि वन बेल्ट वन रोड कांफ्रेस में शिरकत करने के लिये जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बीजिंग पहुंचे तो उन्हें टके का भाव भी नहीं दिया गया। उनकी अगवानी करने के लिये चीन का कोई बड़ा नेता एयर पोर्ट पर नहीं पहुंचा। यहां तक कि इस परियोजना के एवज में चीन से कर्ज की सौगात पाने की उनकी हसरत भी धरी रह गई और नए कर्ज के एवज में चीन ने पाकिस्तान के रेलवे स्टेशनों को अपने अधिकार में लेना आरंभ कर दिया है। वैसे भी श्रीलंका में हुए आतंकी हमले के बाद जिस तरह से पूरे विश्व में आतंकवाद के खिलाफ जो माहौल बना है उसे देखते हुए इस मसले पर आतंकी मुल्क के तौर पर पहचाने जा रहे पाकिस्तान का साथ देना चीन को काफी भारी पड़ सकता था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के तीन स्थाई सदस्यों द्वारा मसूद अजहर के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पर बाकी सभी देशों की पहले ही सहमति बन जाने के बाद चीन के लिये इस मामले में विश्व जनमत का अनादर करते रहना दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा था। उसके खुद ही विश्व मंच पर अलग थलग पड़ने की संभावना बनती जा रही थी। ऐसे में अब चीन ने मसूद के मामले में अड़ंगा लगाने से परहेज बरत कर साफ कर दिया है भारत के हितों के आड़े आने का उसका कोई इरादा नहीं है और खास तौर से आतंक के मसले पर तो कतई विश्व जनमत का अनादर नहीं कर सकता है।