संभावित हार की अस्वीकार्यता






इन दिनों समूचा विपक्ष ईवीएम में हेराफेरी किये जाने की ही रट लगाए हुए है। यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि चुनाव आयोग ने पहले तो मतदान का पूरा कार्यक्रम भाजपा की सुविधा के अनुरूप तय किया उसके बाद भाजपा के हाथों का खिलौना बन कर उसने पूरे चुनाव के दौरान तमाम ऐसे फैसले किये जिसका भाजपा को लाभ और विपक्ष को नुकसान हो। अब मतदान समाप्त हो जाने के बाद ईवीएम में गड़बड़ी और हेराफेरी की जा रही है ताकि भाजपा की जीत को पूरी तरह सुनिश्चित किया जा सके। इस आरोपों को मजबूती देने के लिये कभी विदेश से संचालित न्यूज पोर्टल को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करके उस पर प्रसारित ऐसी झूठी, मनगढंत, पूर्वाग्रही और शरारती को सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल किया जा रहा है जिसमें भाजपा की जीत की संभावनाओं की इकलौती वजह ईवीएम में गड़बड़ी व हेराफेरी को बताया जा रहा है तो कभी जहां-तहां ईवीएम बरामद होने की झूठी खबरों को हवा देकर यह बताने का प्रयास किया जा रहा है भाजपा ने मतदान के बाद ईवीएम को बदल दिया है। हालांकि बीते पांच सालों से विपक्ष लगातार ईवीएम का रोना रो रहा है और अपनी हर पराजय का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ रहा है। हालांकि जब भाजपा विपक्ष में तब यही काम भगवा भी करता था और उस दौरान तो ईवीएम में हेराफेरी की संभावनाओं को लेकर बकायदा किताब तक प्रकाशित करा दी गई थी। लेकिन उन दिनों सत्तारूढ़ कांग्रेस ठीक उसी प्रकार ईवीएम की इज्जत बचाने के लिये मोर्चा खोला करती थी जैसा इन दिनों मौजूदा शासक कर रहे हैं। दरअसल ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ना सबसे आसान भी होता है और इसके बाद आगे के सवालों को भी दफन कर दिया जाता है। वर्ना कोई भी दल कैसे स्वीकार कर सकता है कि जनता द्वारा नकारे जाने के कारण उसे चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। अगर यह स्वीकार कर भी लिया जाए तो अगला सवाल उठेगा कि जनता ने नकारा क्यों? या फिर अपनी अलोकप्रियता को स्वीकार करके कार्यकर्ताओं का मनोबल गिराना भी किसी भी दल के लिये काफी मुश्किल हो सकता है। ऐसे में सबसे बेहतर है कि ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ दिया जाए। इससे उन लोगों की सहानुभूति मिलने की भी संभावना रहती है जिन्होंने आरोप लगाने वाले दल के पक्ष में मतदान किया होता है और विरोधी विजेता पक्ष की जीत का जायका खराब करना भी आसान हो जाता है। यह वजह है कि विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने भी यही किया और अब मौजूदा विपक्षी भी यही कर रहे हैं। लेकिन सवाल है कि क्या वास्तव में ईवीएम में हेराफेरी कर पाना संभव है? इसका जवाब सीधे तौर पर कहें तो ना में ही दिया जा सकता है। दरअसल अगर ईवीएम में हेराफेरी या गड़बड़ी की बात करें तो इसे दो स्तर पर अंजाम देने का इल्जाम लगाया जाता है। पहला नजरिया यह बताता है कि ईवीएम को हैक कर लिया जाए अथवा उसमें तकनीकी हेराफेरी कर दी जाए ताकि बटन कोई भी दबाया जाए मगर वोट किसी खास दल के खाते में ही दर्ज हो। लेकिन ईवीएम में ऐसी गड़बड़ी कर पाना संभव ही नहीं है। अव्वल तो उसे ऐसा बनाया जाता है कि अगर उसे खोलकर तकनीकी हेरफेर का जुगाड़ करने की कोशिश भी की गई तो वह तत्काल काम करना बंद कर देगा। इसके अलावा ना तो उसे इंटरनेट से जोड़ा जा सकता है और ना ही ब्लूटुथ या बेतार तकनीक से छेड़ा जा सकता है। ऐसे में यह एक तरह से मिट्टी के गुल्लक सरीखा ही है जिसमें जो भी सिक्का डाला जाएगा वह उसी स्वरूप में निकलेगा और अगर गुल्लक के छेद से छेड़खानी की गई तो वह किसी काम का ही नहीं बचेगा। हालांकि इसके बावजूद ईवीएम को हैक किये जाने के आरोपों की सत्यता से लोगों को वाकिफ कराने के लिये बीते दिनों चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को एक खुला चैलेंज दिया था कि वे इसे हैक करके दिखाएं। इसके लिये तीन दिन का समय भी दिया गया और कोई भी दल अपना इंजीनियर भेजकर यह दिखाने के लिये स्वतंत्र था कि वास्तव में ईवीएम को हैक करना या उसमें तकनीकी हेरफेर करना संभव है। लेकिन चुनाव आयोग के इस चैलेंज को स्वीकार करना किसी भी दल के लिये संभव नहीं हुआ क्योंकि अंदरखाने सबको यह मालूम ही है कि ऐसा कर पाना संभव ही नहीं है। लेकिन इसके बाद भी ईवीएम के माध्यम से गड़बड़ी के आरोपों की बौछार लगातार होती रही। अब कहा जा रहा है कि मतदान में इस्तेमाल किये गये असली ईवीएम को बदलने की कोशिश हो रही है। लेकिन इस आरोपों को भी कतई सच नहीं माना जा सकता है क्योंकि हर बूथ पर मतदान आरंभ होने से पूर्व प्रत्याशियों द्वारा नामित एजेंटों के सामने निर्वाचन अधिकारी ईवीएम को चालू करके शून्य वोट दिखाते हैं और उस रिपोर्ट पर संतुष्ट होने के बाद एजेंट भी हस्ताक्षर करते हैं। उसके बाद मतदान की शुरूआत होती है और मतदान संपन्न होने के बाद एजेंटों के सामने ही ईवीएम के डिस्प्ले पर यह दर्शा दिया जाता है कि बूथ पर कितने वोट पड़े। इस पर भी एजेंटों और निर्वाचन अधिकारियों के दस्तखत के बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है और सील पर भी एजेंटों के दस्तखत मौजूद रहते हैं। उस ईवीएम का नंबर भी एजेंटों को नोट करा दिया जाता है और उसके बाद सुरक्षा बलों के साथ उसे स्थानीय प्रशासन द्वारा बनाए गए स्ट्रांग रूम में जमा करा दिया जाता है। स्ट्रांग रूम में ईवीएम के रहने के दौरान एक तरफ तीन स्तरीय सुरक्षाबलों का पहरा रहता है और दूसरी ओर हर प्रत्याशी को अपना तीन एजेंट चैबीसों घंटे स्ट्रांग रूम पर नजर रखने के लिये नामित करना होता है जो रूम के बेहद करीब मौजूद रहते हैं। स्ट्रांग रूम में किसी को घुसने की इजाजत नहीं होती सिवाय एक प्रशासनिक अधिकारी के जो अंदर जाकर प्रतिदिन यह देख लिया करता है कि कहीं स्ट्रांग रूम के भीतर आग, पानी, बिजली या किस अन्य वजह से ईवीएम की सुरक्षा को कोई खतरा तो नहीं है। यानि इतनी सावधानी के बाद तो सवाल ही नहीं उठता कि ईवीएम में किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी या हेर फेर किया जा सके। और अब तो वीवीपैट के कारण मतदाता यह भी देख लेते हैं कि उसका वोट सही दर्ज हुआ है या नहीं। पूरे देश में आज तक एक भी मतदाता ने यह शिकायत नहीं की है कि उसका वोट किसी अन्य के खाते में गया हो। इसके बाद भी अगर अपनी हार को खुले दिल से स्वीकार करने के बजाय ईवीएम के बहाने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उंगली उठाई जा रही है तो यह ना सिर्फ दुखद बल्कि लोकतंत्र के लिये शर्मनाक भी है।