आनन्द रामायण महाकाव्य का लोकार्पण











नई दिल्ली। देववाणी परिषद्, दिल्ली द्वारा शनिवार को आयोजित एक भव्य समारोह में  "आनन्द रामायण" महाकाव्य का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। अंग्रेजी भाषा और साहित्य के सेवानिवृत्त आचार्य प्रो. गिरीन्द्र मोहन झा "हिमकर" द्वारा विरचित ग्रन्थ का विमोचन  करते हुए पद्म श्री प्रो. रमा कान्त शुक्ल ने कहा कि आज जब हिन्दी भाषा में महाकाव्यों  की सर्जना लगभग रुद्ध - सी हो गई है, ऐसे समय में  " आनन्द रामायण" महाकाव्य की रचना एक ओर श्री राम कथा की शाश्वतता एवं दूसरी ओर कविवर प्रो. झा के अदम्य साहस को प्रकाशित करती है। कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष , अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत विद्वान् प्रो. सुधी कान्त भारद्वाज ने " आनन्द रामायण " महाकाव्य के साहित्यिक सौष्ठव की सराहना करते हुए कवि की सर्जनात्मक प्रतिभा की भूरिशः प्रशंसा की। कवि भक्तमाल की रचनाओं को संस्कृत में अवतारित करने वाले विद्वान् श्री नाथमल शास्त्री जी ने "आनन्द रामायण" की छन्दोबद्धता की सराहना  करते हुए कविवर प्रो. गिरीन्द्र मोहन झा की लेखनी से भविष्य में भी ऐसी ही अनेकानेक सारस्वत कृतियों की अपेक्षा की। ध्यातव्य है कि प्रो. झा ने पूर्व में "विश्वामित्र", "आनन्द लोक",  " माला रामायण", " श्रीमद्भागवतवैकुण्ठम् " आदि प्रबंध-काव्यों की रचना कर उन्हें प्रकाशित किया  है। अंग्रेज़ी भाषा के प्रसिद्ध कवियों " शेली" और "कीट्स" पर शोध कर ख्याति अर्जित करने वाले प्रो. झा ने " रोज एंड थॉर्न्स" शीर्षक से स्वरचित आंग्ल - कविताओं का संकलन भी प्रकाशित किया था।
इस ग्रन्थ लोकार्पण कार्यक्रम में कई गणमान्य विभूतियाँ उपस्थित हुईं। विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे, सेण्ट स्टीफन्स कॉलेज, दिल्ली के प्राध्यापक डॉ, चन्द्र भूषण झा ने कवि एवं काव्य के विषय में अपने उद्गार व्यक्त किए। देववाणी परिषद् की संरक्षिका  श्रीमती  रमा शुक्ला ने  सभी अभ्यागतों का धन्यवाद - ज्ञापन करते हुए उन्हें अल्पाहार  कराया। पद्म श्री  प्रो. रमा कान्त शुक्ल ने वाल्मीकि रामायण, श्री रामचरितमानस, श्री राधेश्याम रामायण आदि के पाठ की लोक - परंपरा का स्मरण करते हुए लोगों को रामायण के सर्वकालिक मूल्यों को जीवन में अपनाने हेतु प्रेरित किया ।