आत्मघाती है इमरान खान का इस्लाम प्रेम




(विष्णुगुप्त)

पाकिस्तान की आज जो दुर्गति हुई है उसके पीछे इस्लाम ही एक बडा कारण रहा है, पाकिस्तान की पूरी सोच इस्लाम की परिधि में ही घूमती-फिरती रही है। सैन्य या असैन्य किसी शासक ने कभी भी पाकिस्तान की इस्लामिक सोच से मुक्त होने की कोशिश नहीं की है जबकि पाकिस्तान के अंदर में भी यह बात बडे स्तर पर उठ रही है कि पाकिस्तान को दुनिया के अंदर में अगर अपनी पैठ बनानी है, दुनिया के अंदर में अगर अपनी छवि सुधारनी है और भारत जैैसे पडोसियों का मुकाबला करना है तो फिर इस्लाम की परिधि से बाहर ही निकलना पडेगा, नही ंतो फिर पाकिस्तान के अंदर में जारी रहेगी अराजकता, पाकिस्तान के अंदर में सैन्य शक्ति की अनुदारता भी जारी रहेगी, पाकिस्तान के अंदर जेहादी संस्कृति भी जारी रहेगी, पाकिस्तान के अंदर में बेरोजगारी जारी रहेगी, पाकिस्तान के अंदर में भूखमरी जारी रहेगी, पाकिस्तान के अंदर में इस्लाम के अंदर ही फिरकों की लडाई जारी रहेगी, ऐसी लड़ाइयां हिंसा और आतंकवाद को बढावा देती रहेगी। क्या यह सही नहीं है कि इस्लाम के नाम पर बना और इस्लाम की कसौटी पर चल रहा पाकिस्तान आज इस्लामिक मजहबी समस्या से ही त्रस्त नहीं है, पाकिस्तान के अंदर में इस्लाम के नाम पर क्या कई संप्रभुत्ताएं आपस में नहीं लड रही हैं? पाकिस्तान के अंदर में क्या कई संप्रभुत्ताओं की विखंडनकारी मांगे नहीं उठ रही हैं।

पाकिस्तान के वर्तमान शासक इमरान खान पर भी इस्लाम का भूत सवार है, जियाउल हक की तरह अब इमरान खान भी इस्लाम के प्रति अति रूझान को दर्शा रहे हैं, इस्लाम को अपनी सत्ता और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति से जोड कर न केवल देख रहे है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय जगत को भी इस्लाम को लेकर आरोपित कर रहे हैं। सिर्फ पाकिस्तान के अंदर ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से बाहर भी इस्लाम के कथित तौर पर अनादर को लेकर मुखर हो रहे हैं। इसका उदाहरण आॅग्नाइजेशन आफ इस्लामिक कंट्रीज यानी ओआईसी का इस्लामिक कान्फ्रेंस है। जगहाहिर है कि  आॅग्नाइजेशन आफ इस्लामिक कंट्रीज मुस्लिम देशों की अंतर्राष्ट्रीय गिरोहबाजी है और यह अंतर्राष्ट्रीय गिरोहबाजी हर समस्या और हर विचार को सिर्फ और सिर्फ इस्लाम के नजरिये से देखती है। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि  आॅग्नाइजेशन आफ इस्लामिक कंट्रीज की 14 वीं बैठक में इमरान खान ने ऐसी कौन सी खतरनाक बात कही है जो उनका इस्लाम के प्रति अति रूझान की मानसिकता को दर्शाती है। इमरान खान ने  आॅग्नाइजेशन आफ इस्लामिक कंट्रीज की 14 बैठक को संबोधित करते हुए खासकर पश्चिम देशों यानी यूरोप और अमेरिका को इस्लाम विरोधी घोषित कर दिया, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इमरान खान ने यहां तक कह डाला कि अमेरिका और यूरोप इस्लाम का अनादर कर रहे हैं, इसलिए इस्लाम को मानने वाले लोगों में गुस्सा है। अमेरिका और यूरोप के खिलाफ इस्लामिक देशों की एकजुटता जरूरी है। इमरान खान ने अपील कर डाली कि अंतिम पैगबंर हजरत मुहम्मद को अनादर करने वालों के खिलाफ मुस्लिम देशों को कडा रूख अख्तियार करना चाहिए। पाकिस्तान के अंदर में ही कई ऐसे मुस्लिम समूह हैं जो हजरत मुहम्मद को पैगबंर तो मानते हैं पर अंतिम पैगम्बर नहीं। अहमदिया मुस्लिम समूह पर पाकिस्तान में हिंसा इसी लिए बरपायी जाती है कि वह मुस्लिम समूह हजरत मुहम्मद को अंतिम पैगम्बर नहीं मानता है।

सबसे बडी चिंता की बात कश्मीर और फलस्तीन पर इमरान खान की इस्लामिक सोच है।  आॅग्नाइजेशन आफ इस्लामिक कंट्रीज की बैठक में इमरान खान ने कहा कि कश्मीर में जारी संघर्ष आतंकवाद नहीं है, यह इस्लाम की लडाई है, इमरान खान ने फलस्तीन की लडाई को इस्लामिक घोषित कर दिया। ऐसे अगर देखे तो इमरान खान के भाषण और नजरिये में कुछ भी नया नहीं है, पाकिस्तान के हर शासक अब तक सिर्फ और सिर्फ इस्लाम के नजरिये से ही शासन करते रहे हैं, कश्मीर पर उनका नजरिया इस्लामिक ही रहा है। इस्लाम की कसौटी पर कश्मीर को हडपने की नीति पाकिस्तान की कोई नयी नहीं है, आजादी के तुरंत बाद ही पाकिस्तान ने यह खेल-खेलना शुरू कर दिया था। यह सही है कि इस खेल में पाकिस्तान को आधी सफलता मिली थी। कश्मीर का एक बडे भाग पर पाकिस्तान का कब्जा है। पर यह भी सही है कि इस्लाम की कसौटी पर पाकिस्तान पूरे कश्मीर को हडप नहीं सका, हर युद्ध में पाकिस्तान ने पराजय झेली है। प्रत्यक्ष युद्ध छोडकर आतंकवाद के भरोसे कश्मीर लुटने की नीति भी असफल हुई है। दुनिया अब कश्मीर पर पाकिस्तानी प्रोपगंडा को जान-समझ चुकी है। दुनिया के अंदर से पाकिस्तान को कश्मीर के प्रश्न पर कोई ठोस समर्थन नहीं मिल रहा है और न ही भविष्य में मिलने की कोई आशंका है।

फलस्तीन की लडाई को इस्लाम से जोडने पर नुकसान किसको होगा? इमरान खान ने इस विषय पर सोचा नहीं होगा? नुकसान तो फलस्तीनियों का ही होगा। इजरायल के हाथ कौन बांध कर रखे हुए हैं, फलस्तीन पर हिंसा बरपाने से इजरायल को कौन रोकता है? क्या मुस्लिम देशों में इतनी शक्ति है कि इजरायल को फलस्तीन में रोक कर देख ले। जाहिर तौर पर दुनिया की मुस्लिम देशों में यह शक्ति है नहीं, इजरायल की सैन्य शक्ति और बैज्ञानिक शक्ति तथा राष्ट्रभक्ति की शक्ति के सामने दुनिया के मुस्लिम देश कहीं भी नहीं ठहरते हैं। इतिहास इसका प्रत्यक्षदर्शी है। सीरिया-मिश्र के नेतृत्व में मुस्लिम देशों ने फलस्तीन की आजादी को लेकर इजरायल के साथ युद्ध किये थे। मुस्लिम दुनिया की पराजय हुई थी। इजरायल ने मिश्र और सीरिया के एक बडे भूभाग पर कब्जा जमा लिया था, बाद में सीरिया और मिश्र ने इजरयाल के साथ समझौता कर अपने भूभाग वापस लिये थे। सबसे बडी बात पश्चिम देशों ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का फलस्तीन पर दृष्टिकोण मानवीय रहा है। पूरी दुनिया मानवीय दृष्टि से ही फलस्तीन के संघर्ष को देखती है। दुनिया की जनमत फलस्तीन के पक्ष में और इजरायल के विरोध में खडा रहती है। दुनिया की जनमत की शक्ति के सामने ही इजरायल दबा होता है। अमेरिका और यूरोप ही इजरायल के हाथ बांध कर रखे हुए हैं। अमेरिका और यूरोप के देश अगर इजरायल के हाथ बांध कर नहीं रखे होते तो फिर इजरायल की हिंसा कभी रूकती ही नही। ईरान से लेकर सउदी अरब तक एक से बढकर एक इस्लामिक धनी देश है पर फलस्तीन की आबादी को आर्थिक सहायता नहीं देते हैं। जानना यह भी जरूरी है कि फलस्तीन के पास अपनी कोई खास अर्थव्यवस्था नहीं है। फिर प्रश्न यह उठता है कि फलस्तीन की आबादी का चुल्ला जलता कैसे हैं। अमेरिका और यूरोप अगर आर्थिक सहायता न दे तो फिर फीलिस्तीनियों का न तो चुल्हा जलेगा और न ही उन्हे भुखमरी से मुक्ति मिलेगी। इमरान खान फलस्तीन की लडाई को इस्लामिक लडाई कह कर फीलिस्तीनियों का ही नुकसान कर रहे हैं।

इस्लाम की कसौटी पर पूरी दुनिया में पाकिस्तान की छवि कैसी हैं? यह भी विचारणीय विषय है। इस्लाम की कसौटी पर पाकिस्तान की छवि एक बर्बर, अमानवीय, हिंसक और आतंकवादी देश की है। सिर्फ भारत, अमेरिका या फिर यूरोप की ऐसी सोच नहीं है बल्कि मुस्लिम देशों की सोच ऐसी ही है। पाकिस्तान से अफगानिस्तान-ईरान जैसे मुस्लिम देश भी त्रस्त हैं। पाकिस्तान के आतंकवादी अफगानिस्तान और ईरान में कैसी हिंसा और अराजकता फैला कर रखे हुए है, यह भी जगजाहिर है। कई मुस्लिम देश भी पाकिस्तानियों को अपने यहां वीजा देने से प्रतिबंधित कर चुके हैं। ऐसे मुस्लिम देशों को पाकिस्तानी आबादी की आतंकवादी मानसिकता से डर होता है। सबसे बडी बात यह है कि इस्लाम की कसौटी पर कोई मुस्लिम देश पाकिस्तान को मदद करने के लिए तैयार क्यों नहीं होता है। आज पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर खडा है, इमरान खान कोटरे लेकर भीख मांगने के लिए घूम रहे हैं पर कोई आर्थिक सहायता देने के लिए तैयार नहीं है। मुस्लिम देश भी इस्लाम की कसौटी पर पाकिस्तान के दिवालिया हो चुकी अर्थव्यवस्था की मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। इमराखन खान के संबंध में आम धारणा यह विकसित हुई है कि सेना और आतंकवादी समूहों की देन हैं। सेना और आतंकवादी समूहों के समर्थन हासिल कर इमरान खान प्रधानमंत्री बने हुए हैं।

        इमरान खान से भी बडी उम्मीद थी कि तुर्की के आतार्तुक मोहम्मद कमाल पासा की तरह पाकिस्तान को इस्लामिक परिधि से बाहर निकालने का पराक्रम को दिखायेंगे और पाकिस्तान के अंदर मजहब आधारित जाहिलियत को समाप्त कर सहिष्णुतावादी संस्कृति की स्थापना करेंगे। इमरान खान अगर इस्लाम की कसौटी को छोडकर मानवता और विज्ञान की कसौटी पर चलेंगे तो फिर उनकी और पाकिस्तान की छवि निखरेगी, पाकिस्तान की वर्तमान समस्याओ का हल भी संभव है।