बदली हुई संसद से बड़ी उम्मीदें
इस बार संसद का स्वरूप काफी बदला हुआ सा है। 17वीं लोकसभा का गठन ऐसा हुआ है जिसमें सरकार पहले से अधिक हावी है और विपक्ष टूटा, बिखरा और हतोत्साहित है। ऐसे में अब सदन का गणित बहुमत के बजाय सर्वमत से निर्धारित होना तय है जिसकी बानगी लोकसभा अध्यक्ष के चयन के मामले में दिख भी रही है जिसमें ओम बिरला का नाम आगे किये जाने का विपक्ष के भी कई दलों ने समर्थन करने से परहेज नहीं बरता है। वैसे भी इस बार सदन में युवा शक्ति और महिला शक्ति का बोलबाला दिख रहा है। 17 वीं लोकसभा में 267 नए सदस्य हैं। साथ ही सबसे महतवपूर्ण है कि इस बार लोकसभा में रिकॉर्ड 78 महिला सदस्य चुनाव जीत कर आई हैं जिनमें पहली बार चुनी गई 46 महिला सांसद हैं। यह भी अपने आप में एक रिकार्ड है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी हाल की श्रीलंका यात्रा के दौरान एक सार्वजनिक बैठक में इस बात पर गर्व जताया कि इस बार के आम चुनावों में बड़ी तादाद में युवाओं और महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। शायद इसी का नतीजा रहा कि इस बार लोकसभा की कुल शक्ति में 14 .6 प्रतिशत हिस्सेदारी महिला सांसदों की है। लोकसभा में आज तक इतनी बड़ी तादाद में कभी महिलाओं की हिस्सेदारी नहीं रही है। साथ ही इस बार के चुनाव में कुल ग्यारह करोड़ ऐसे मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया जो इस बार के चुनाव से पहले ही बालिग हुए हैं। इसकी छाप सदन की तस्वीर पर दिख रही है क्योंकि नए सदन में कयोंझार (एसटी) निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुई बीजू जनता दल की 25 वर्षीय चंद्रमणि मुर्मू सबसे युवा सदस्य बन कर आई हैं।  उनके बाद 17 वीं लोकसभा में बीजेपी की सबसे युवा सांसद के रूप में दक्षिण बेंगलुरु की 28 वर्षीय तेजस्वी सूर्या हैं। जाहिर है कि संसद में युवाओं और महिलाओं की बड़ी भागीदारी का असर भी दिखेगा। “सबका साथ, सबका विकास एवं सब का विश्वास” के नारे के साथ आम चुनावों में ऐतिहासिक व प्रचंड जीत दर्ज कराकर दोबारा सरकार बनाने वाले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार किस दिशा में आगे बढ़ेगी इसका पूरा परिचय संसद के मौजूदा बजट सत्र में मिल जाएगा जो सांसदों के शपथ ग्रहण की औपचारिक प्रक्रिया के साथ आरंभ हो चुका है। निर्वाचित सदस्यों द्वारा अधिकृत शपथ-ग्रहण समारोह की समाप्ति के बाद 20 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद लोकसभा तथा राज्यसभा यानी दोनों सदनों की साझा बैठक को सम्बोधित करेंगे जिसमें वे सरकार के भविष्य की कार्ययोजनाओं की रूपरेखा की झलक भी दिखाएंगे। आगामी वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए केंद्रीय बजट पांच जुलाई को लोकसभा में पेश किया जायेगा। इसके बाद दोनों सदनों को किये गए राष्ट्रपति के सम्बोधन के प्रति सभा धन्यवाद-प्रस्ताव पर चर्चा करेगी। इस चर्चा में सरकार के सभी मंत्री शिरकत करें और अगले 100 दिनों में किए जाने वाले कामकाज की जानकारी देने के अलावा यह बताएंगे कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की दशा-दिशा कैसी रहेगी। पांच सप्ताह से अधिक समय तक चलने वाले बजट सत्र का समापन 26 जुलाई को होगा लेकिन यह सत्र सरकार की आगामी नीतियों का परिचय देने के अलावा कई मामलों में बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है। वैसे भी मोदी सरकार की दूसरी पारी से लोगों की उम्मीदें परवान पर हैं क्योंकि तपती गर्मी को मात देते हुए देश भर में व्यस्त चुनावी अभियान के दौरान न सिर्फ भाजपा बल्कि समूचे राजग गठबंधन के स्टार चुनाव अभियानकर्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार देश के आम जनमानस को इस बारे में पूरी तरह आश्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि उनकी पहली सरकार का लक्ष्य था लोगों की आवश्यकताएं पूरी कराना और दूसरी सरकार का मकसद होगा देश व समाज के सामान्य जनों की आकांक्षाओं को पूरा करना। मोदी सरकार की बहुत सी कल्याणकारी योजनाओं के जमीन पर साकार होने से उनकी विश्वसनीयता जमीनी स्तर पर दिखी और इसी का नतीजा रहा कि राष्ट्रीय स्तर पर एक स्पष्ट जनमत की प्रवृत्ति दिखी जिसमें भाजपा को पहले से भी अधिक सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि विपक्ष का जाति आधारित गठबंधन अप्रभावशाली इससे यह भी संकेत मिलता है कि मतदाता एक पार्टी तथा स्पष्ट सन्देश वाले एक नेता को प्राथमिकता तो देते ही हैं, साथ ही वे शासन और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली एक अस्थिर सरकार से भी चैकन्ना हैं। राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका कम हो चुकी है,  हालांकि राज्य स्तर के चुनावों में उनकी प्रासंगिकता बनी हुई है।  मोदी की जीत का मुख्य कारण निर्धनों में उनकी विश्वसनीयता का होना है जिसके लिए स्वास्थ्य बीमा, जनधन योजना के तहत बैंक खाते खोलना और किसानों को आर्थिक सहायता देने के अलावा रसोई गैस तथा बिजली कनेक्शन देने वाली कल्याणकारी योजनाओं की एक झड़ी ने सभी तरह की बाधाओं को पार करते हुए मोदी के पक्ष में एक बड़ा वोट बैंक का निर्माण करने में मदद दी। बीजेपी ने मोदी को सशक्त नेतृत्वकर्ता व राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ कतई समझौता नहीं करने वाले और कठोर निर्णय लेने में सक्षम नेता के रूप में पेश किया। रही-सही कसर पुलवामा तथा बालाकोट की घटना ने इस विश्वसनीयता में वृद्धि करके पूरी कर दी। इस बार के चुनाव में बीजेपी की जीत ग्रामीण तथा शहरी भारत में एक नए उच्च गतिशील मतदाताओं के बड़े वर्ग के उत्थान को रेखांकित करती है। इस जीत के साथ जुड़ी जन आकांक्षाओं को समझते हुए प्रधानमंत्री ने एस. जयशंकर को विदेश मंत्री का कार्यभार सौंपकर राजनीतिक जगत को आश्चर्यचकित कर दिया है। गौरतलब है कि वे जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव थे। उनकी नियुक्ति सरकार में उच्चतम स्तर पर दूसरे दर्जे का प्रवेश तथा मंत्री की भूमिका में टेक्नोक्रैट के प्रवेश का द्वार खोलती है। इस तरह टीम मोदी ने शासन के  नए तौर-तरीकों की ओर कदम बढ़ाया है जिससे मतदाताओं के विश्वास को पूरा किया जा सके। इस लिहाज से संसद के इसी सत्र में यह पता चल जाएगा कि अगले पांच साल में मोदी सरकार देश को किन रास्तों से होते हुए किस ऊंचाई पर ले जाने वाली है।